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इस चित्रकार ने पहली बार हिंदू देवी-देवताओं को आम इंसानों जैसा दिखाया था

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भारत के प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा का 29 अप्रैल को 170वां जन्मदिन है. राजा रवि वर्मा पहले चित्रकार माने जाते हैं जिन्होंने देवी-देवताओं को आम इंसानों जैसा दिखाया. भारतीय धर्मग्रंथों, पुराणों, महाकाव्यों में दिए गए पात्रों, देवी-देवताओं की कल्पना करके उनको चित्रों की शक्ल में ढाला. हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्‍तेमाल उनके चित्रों में दिखता है.
राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 को केरल के एक छोटे से गांव किलिमन्नूर में हुआ. पांच वर्ष की छोटी-सी आयु में ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारंभ कर दिया था.उनके चाचा भी एक कलाकार थे जिन्होंने राजा रवि वर्मा की प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारंभिक शिक्षा दी.चौदह वर्ष की आयु में वे उन्हें तिरुवनंतपुरम ले गये जहाँ राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा हुई. बाद में चित्रकला के विभिन्न आयामों में दक्षता के लिये उन्होंने मैसूर, बड़ौदा और देश के अन्य भागों की यात्रा की.
उन्होंने पहले पारंपरिक तंजावुर कला में महारत प्राप्त की और फिर यूरोपीय कला का अध्ययन किया.
वाटर कलर पेंटिंग में राजा रवि वर्मा को महारत हासिल थी जिसे उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध कलाकार रामा स्वामी नायडू से सीखा था वहीं ऑइल पेंटिंग की बारीकियां इन्होनें डच चित्रकार ओडॉर जेंसन से सीखी थी.
राजा रवि वर्मा की चित्रकला की विशेषता
राजा रवि वर्मा ने देवी-देवताओं की पेंटिंग बनाने के लिए आॅयल कलर्स यानी तैलीय रंगों का सहारा लिया. उनकी सारी प्रसिद्ध पेंटिंग्स इनसे ही बनाई गई थीं. चित्रकला की इस शैली में रंग निखर कर आता है और इसे सालों तक सुरक्षित जा सकता है.आलोचक भी मानते हैं कि उनके जैसी ऑयल पेंटिंग बनाने वाला दूसरा चित्रकार इस देश में आज तक नहीं हुआ.
उन दिनों बंगाल स्कूल के चित्रकारों ने. रवि वर्मा को चित्रकार मानने से इंकार कर दिया था. क्योंकि वो भारतीय चरित्रों की पेंटिंग्स बनाते थे. पर पेंटिंग टेक्निक यूज करते थे अंग्रेजो की. इसके बावजूद भी राजा रवि वर्मा चित्र लोगों में खासे लोकप्रिय थे.
राजा रवि वर्मा ने सरस्वती, लक्ष्मी, उर्वशी-पुरुरवा, नल-दमयंती, जटायु वध और द्रौपदी चीरहरण जैसे सैकड़ों पौराणिक कथानकों को भी अपने कैनवास पर उतारा था. उनसे पहले देवी-देवताओं का चित्रण मंदिरों में मूर्तियों के रूप में होता था. कोई यदि इनकी पेंटिंग बनाता भी था तो वह इतनी बारीकी से नही बनाई जाती थीं. उन्होंने न केवल यादगार चित्र बनाए बल्कि अपनी प्रेस से इन पेंटिंग्स की हजारों-लाखों प्रतियां छपवाकर उन्हें सस्ते में आम लोगों के बीच बेचा. इसी का परिणाम हुआ कि उनकी ज्यादातर रचनाएं भारतीयों के जेहन में गहरे पैठने में कामयाब रही.

उपलब्धियां

1873 में चेन्नई के एक पेंटिंग एग्जीबीशन में रवि वर्मा की पेंटिंग ‘मुल्लप्पू चूटिया नायर स्त्री’ (चमेली के फूलों से केशालंकार करती नायर स्त्री) को पहला ईनाम मिला था. उसी साल इस पेंटिंग को वियना(आस्ट्रिया) के एग्जीबीशन में भी ईनाम मिला. इसके बाद से रवि वर्मा को विदेशों में भी पहचाने जाने लगा. 1893 में जब स्वामी विवेकानंद शिकागो गए थे तब शिकागो में ही विश्व चित्र प्रदर्शनी लगी थी. जिसमें राजा रवि वर्मा की दस पेंटिंग्स लगाई गई थी.
अक्टूबर 2007 में उनके द्वारा बनाई गई एक ऐतिहासिक कलाकृति, जो भारत में ब्रिटिश राज के दौरान ब्रितानी राज के एक उच्च अधिकारी और महाराजा की मुलाक़ात को चित्रित करती है, 1.24 मिलियन डॉलर (लगभग 6 करोड़) में बिकी है. इस पेंटिंग में त्रावणकोर के महाराज और उनके भाई को मद्रास के गवर्नर जनरल रिचर्ड टेंपल ग्रेनविले को स्वागत करते हुए दिखाया गया है.ग्रेनविले 1880 में आधिकारिक यात्रा पर त्रावणकोर गए थे जो अब केरल राज्य में है. विश्व की सबसे महंगी साड़ी राजा रवि वर्मा के चित्रों की नक़ल से सुसज्जित है. बेशकीमती 12 रत्नों व धातुओं से जड़ी, 40 लाख रुपये की साड़ी को दुनिया की सबसे महंगी साड़ी के तौर पर ‘लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड’ में शामिल किया गया है.
1904 में ब्रिटिश सरकार ने रवि वर्मा को ‘केसर-ए-हिंद’ से नवाजा था. ये भारतीय नागरिको के लिए. उस टाइम का सबसे बड़ा सम्मान था. किसी कलाकार के तौर पर वो पहले थे. जिन्हें ये सम्मान मिला.

पेंटिंग्स से जुड़े विवाद

राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स का विवादों से भी खूब नाता रहा है. उन पर  हिंदू कट्टरपंथियों ने कई तरह के आरोप लगाए थे. सबसे बड़ा आरोप धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने का था. कहा गया कि रवि वर्मा की पेंटिंग में जो देवियां होती हैं उनका चेहरा उनकी प्रेमिका ‘सुगंधा’ से मिलता है. वह शादीशुदा थी जिनके बारे में यह भी कहा गया कि वह एक वेश्या की बेटी थीं. विरोधियों का आरोप था कि राजा रवि वर्मा एक वेश्या की बेटी को देवी के रूप में चित्रित कर उन्होंने हिंदुओं की भावना को ठेस पहुंचायी है.
उर्वशी और रंभा के अर्द्धनग्न चित्रों को लेकर उन पर अश्लीलता के भी आरोप लगाए गए थे. हालांकि लंबी बहस के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन पर लगाए गए ये सभी आरोप खारिज कर दिए. लेकिन इस चक्कर में उन्हें काफी आर्थिक नुकसान हो गया था. बताया जाता है कि गुस्साए लोगों ने उनकी मुंबई स्थित प्रेस को भी जला दिया था. उसमें न केवल मशीन बल्कि कई बहुमूल्य चित्र भी जल गए थे. हालांकि कई लोग अग्निकांड वाली बात को सच नहीं मानते. उनके जीवन पर ‘रंगरसिया’ नाम की फ़िल्म भी आई थी,जिस पर भी काफी विवाद हुआ था.

आधुनिक भारतीय चित्रकला के जन्मदाता

आधुनिक भारतीय चित्रकला को जन्म देने का श्रेय राजा रवि वर्मा को जाता है. उनकी कलाओं में पश्चिमी रंग का प्रभाव साफ नजर आता है. उन्होंने पारंपरिक तंजावुर कला और यूरोपीय कला का संपूर्ण अध्ययन कर उसमें महारत हासिल की थी. उन्होंने भारतीय परंपराओं की सीमाओं से बाहर निकलते हुए चित्रकारी को एक नया आयाम दिया. बेशक उनके चित्रों का आधार भारतीय पौराणिक कथाओं से लिए गए पात्र थे, लेकिन रंगों और आकारों के जरिए उनकी अभिव्यक्ति आज भी प्रासंगिक लगती है.
उन्होंने उस समय में खुलेपन को स्वीकार किया, जब इस बारे में सोचना भी मुश्किल था.राजा रवि वर्मा ने इस विचारधारा को न सिर्फ आत्मसात किया, बल्कि अपने कैनवास पर रंगों के माध्यम से उकेरा भी.यही कारण रहा कि उनकी कलाकृतियों को उस समय के प्रतिष्ठित चित्रकारों ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. फिर भी उन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा और बाद में उन्हीं चित्रकारों को उनकी प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा.उन्होंने अपनी चित्रकारी में प्रयोग करना नहीं छोड़ा और हमेशा कुछ अनोखा और नया करने का प्रयास करते रहे.

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