मुख्य बात यह है कि आरटीआई का जवाब नहीं देने के लिए यह बहाना बनाया गया है कि इससे संसाधनों का गैरआनुपातिक डायवर्सन होगा। आरटीआई जनता का अधिकार है जो भाजपा और प्रधानमंत्री द्वारा भ्रष्ट प्रचारित कांग्रेस सरकार और पार्टी ने देश की जनता को दिया है। ईमानदार सरकार उसका पालन करने में इस मामले में कितनी लाचार है इसपर चर्चा करने से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि पीएम केयर्स जिस मकसद से बनाया गया है वह प्रधानमंत्री कार्यालय का काम है ही नहीं। अगर आरटीआई के तहत जवाब देने से संसाधनों का डायवर्सन होगा तो धन वसूलने, बटोरने, संभालने और खर्च करने में भी होगा। इसलिए पहली ही स्थिति में सरकार को यह काम नहीं करना चाहिए था। पर सरकार ने इसके लिए भ्रष्टाचार, कमीशन या दलाली की परिभाषा ही अघोषित रूप से बदल दी।
निश्चित रूप से यह लाचारी 56 ईंची सीने जैसी ही हवा हवाई है वरना सरकारी कर्मचारियों की क्या कमी या इतने बड़े फंड को संभालने के लिए कुछ लोग क्यों नहीं रखे जाने चाहिए जब देश में लाखों की संख्या में योग्य बेरोजगार उपलब्ध हैं। वैसे भी अगर इस फंड का ऑडिट होता है, जो कानूनन होना ही चाहिए और चार्टर अकाउंटेंट को फीस दी जाती है तो वह भी ऐसे तमाम काम कर सकता है। और भले फीस ज्यादा लगे, पीएमओ में संसाधन नहीं है तो यह काम चार्टर्ड अकांटैंट फर्म को सौंपा जा सकता है, सौंपा जाना चाहिए। बशर्ते नीयत हो।
आयकर नियमों के अनुसार यह या ऐसी तमाम जानकारी हर आदमी से मांगी जाती है। कई मामलों में उनसे भी जिनकी कुल आमदनी कर योग्य नहीं है। फिर प्रधानमंत्री कार्यालय यह दलील कैसे दे सकता है? आरटीआई के मामले में भी पुराने फैसले हैं जो कहते हैं कि ऐसे बहाने स्वीकार्य नहीं हैं।
आरटीआई कानून में एक धारा के तहत उन वैध कारणों का उल्लेख है जिसकी वजह से सूचना देने से मना किया जा सकता है। दूसरी ओर, यह भी कहा गया है कि कोई सूचना अमूमन उसी रूप में मुहैया कराई जाएगी जिस रूप में मांगी जाएगी।