हर कश्मीरी, अलगाववादी या चरमपंथी नहीं है

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“कश्मीर” – एक ऐसा नाम, जिसका नाम आते ही राष्ट्रवाद हिचकोले मारने लगता है. एक ऐसी जगह जिस पर लिखने से पहले आपको कई बार सोचना पड़ता है. वो जगह जिसके बारे में लिखने से पहले आप ये सोच लें, कि हो सकता है आपकी देशभक्ति को कटघरे में खड़ा कर दिया जायेगा. वो जगह जिसके बारे में लिखते ही आपको पाकिस्तान परस्त घोषित किया जा सकता है.
वो कश्मीर जो बेशक हम भारतीयों का है, पर अफ़सोस कुछ लोग कश्मीरियों को भारतीय समझते ही नहीं. फिर राष्ट्रवाद का ऐसा जूनून कि एक लोकतांत्रिक देश में रहकर, खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताने वाले हम भारतीय उनके विरोध प्रदर्शनों को भी सहन नही कर पाते हैं. हद तो तब हो जाती है, जब उनके लिए मानवाधिकार ( ह्यूमन राइट्स ) की बात करना, देश के खिलाफ़ किये जाने वाले कृत्यों से जोड़कर दिखाया जाने लगता है.
ज़रा सोचियेगा ! क्या अपने ही देश के नागरिकों के हक़ की आवाज़ उठाना देशविरोधी कार्य है ? क्या भारत के एक राज्य के नागरिकों और उसी राज्य के अलगाववादियों व चरमपंथियों के बीच फर्क नहीं होना चाहिए. आतंकवादियों और चरमपंथियों को बिलकुल न बख्शा जाये, पर क्या आम नागरिकों और प्रदर्शनकारियों को मार देना जायज़ है?
हद तो तब हो जाती है, जब सोशलमीडिया में अपनी देशभक्ति को साबित करने के लिए कुछ राजनीतिक लोग और उनके प्रशंसक भी हर हत्या को जायज़ ठहराने लगते हैं. वहीं कुछ राजनेता और उनके प्रशंसक सारे कश्मीरियों को अलगावावाद और आतंकवाद से जोड़ देते हैं. नाम कश्मीर का लिया जाता है, साधा शेष भारत की राजनीति को जाता है. किसी भी राजनीतिज्ञ को कश्मीरियों की फ़िक्र नहीं है. हो भी क्यों न ? आखिर कश्मीर का नाम आते ही हमारा राष्ट्रवाद जो हिचकोले मारने लगता है.
मैंने पहले भी कहा है, और फिर कहता हूँ, जिस तरह कश्मीर भारत का हिस्सा है उसी तरह कश्मीरी भी भारतीय ही हैं. पर कश्मीरियों के प्रति शेष भारतीय आमजन का रवैया क्या उन्हें दिल से भारतीय बना पायेगा. क्या आम कश्मीरी नागरिको आप  अलगाववादियों और चरमपंथियों से अलग देखना शुरू करेंगे ? कश्मीर में आतंकवादी हमलों और प्रदर्शनों के बाद देश की कई यूनिवर्सिटी और कॉलेज में कश्मीरी छात्रों के साथ कई बार मारपीट के किस्से सामने आ चुके हैं. क्या ये रवैया उन्हें अलग दिखाने या उनके दिमाग में भारत को लेकर अलग दिखने की भावना को बढ़ावा नहीं देता होगा.
अब आते हैं, विरोध प्रदर्शन और सेना के मामलों पर. किसी भी लोकतांत्रिक देश में विरोध प्रदर्शन उसके लोकतांत्रिक होने का सुबूत है. हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करते हैं, और हम हैं. हमारे देश के हर राज्य के नागरिकों को सरकार के विरुद्ध अपना रोष जताने और प्रोटेस्ट करने का आधिकार प्राप्त है. लोकतंत्र भी यही कहता है. देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन के बाद विरोध करने वाले उग्र होते हैं. पर क्या वहां पर उग्र होने वाली भीड़ पर कभी ऐसे बन्दूक चलाते देखा गया, क्या आप और हम बुलंदशहर के स्याना थाने में हुई घटना को भूल गए. जिस तरह से वहां विरोध प्रदर्शन हुए, उस दौरान अगर वैसे ही गोलियां चलवा दी जातीं, जैसे कश्मीर में चलवाई जाती हैं. तब पूरे देश में हल्ला मच जाता.
अब आईये ताज़ा घटना पर, कश्मीर में चरमपंथियों के विरुद्ध सुरक्षा बल कार्यवाही कर रहे थे. उस दौरान कुछ नागरिक भी सुरक्षा बलों की बन्दूक का निशाना बन गए. मारे गए आम नागरिकों के लिए जो लोग आवाज़ उठा रहे हैं, कुछ लोग उन्हें देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं. जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उन्हें ये जान लेना चाहिए कि जिस तरह कश्मीर हमारे देश का हिस्सा है, हमें हमारी सेना पर गर्व है, एक सैनिक के शहीद होने में दिल में जो दर्द होता है. उसी तरह कश्मीरी नागरिक भी भारतीय हैं, अगर कोई कश्मीरी नागरिक मरता है, तो वो कश्मीरी एक भारतीय नागरिक ही मरता है. और हाँ आम कश्मीरी नागरिक और अलगाववादियों व चरमपंथियों के बीच फर्क करना सीख लो.

जय हिन्द, जय भारत
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