गुरुमेहर कौर का यह इंटरव्यू अंग्रेजी वेबसाइट ‘livemint’ की पत्रकार ‘Natasha Badhwar’ ने लिया है, हम उसको हिंदी पाठकों की सहूलियत के लिए शब्दशः पब्लिश कर रहे है.
गुरुमेहर कौर जो कुछ दिन पहले अपने एक विडियो की वजह से चर्चा में आई थी. डीयू की स्टूडेंट और अब एक किताब लिखी है ‘Small Acts Of Freedom’.
गुरुमेहर कौर की इस पहली किताब में तीन पीढ़ियों की कहानी है- इनकी नानी, माँ और स्वयं गुरुमेहर. इन सबने मौत जैसे दुःख सहे और मजबूत बनकर उभरी. गुरुमेहर कहती है कि ‘ उसकी माँ ने उसके साथ भुत बहस की कि वह उनके बारे में क्यों लिख रही है जबकि अपने और अपने फ्रेंड्स, टेनिस और अपनी कॉलेज के बारे में क्यों नहीं लिखती? तब मैंने कहा कि आपकी स्टोरी ही तो मेरी स्टोरी है’
गुरुमेहर स्वयं आत्मविश्वास से भरपूर एक यंग लेडी की तरह दिखती है. उनके इस रौब के आगे उन्हें कोई सलाह देने में भी डर सा लगता है.
जब मैंने उसे यह बताया कि मैंने बुक की पहले प्रदत कॉपी को पढ़ लिया है उसने मुझे अपनी आवाज़ में हँसी से पूछा,“क्या यह अच्छी किताब है?” आप जानते हैं, यहां तक कि मेरी मां ने इसे अभी तक नहीं पढ़ा है.
मैंने कहा कि ‘इस किताब ने मुझे कई बार रुलाया’.
मुझे याद नहीं है कि किसी भी लेखक ने इस तरह के तेजस्वी स्पष्टता के साथ एक दर्दनाक बच्चे के दृष्टिकोण से मुझे दुनिया दिखाया है. गुरुमेहर जब तीन साल की गुलगुल थी तब इन्होने अपने खुद के कश्मीर में कारगिल युद्ध के दौरान 1999 में अपने पिता की मृत्यु की स्थिति को समझने के लिए संघर्ष किया था. कैसे उनके पिता ने वापस लौटने के वादे को नहीं निभाया?
“यह किताब लिखना कितना मुश्किल था?” मैंने उससे पूछा.
मैंने अपने संपादक को बहुत सारे सुबह 3 बजे कॉल किए. मैं कहूंगी कि यह बहुत मुश्किल था. मैं इस किताब को हमेशा से ही लिखना चाहती थी. मुझे एहसास नहीं हुआ कि भावनाओं की श्रृंखला के संदर्भ में यह इतना थकाऊ होगा. लिखने का अर्थ है कि हर पल को पुन: याद करना जो कि आप भूल चुके हो.
मैंने इस पुस्तक का अधिकांश भाग तीसरे सेमेस्टर में लिखा है. मई शाम को 5 बजे तक क्लास अटेंड करती. फिर शाम को कुछ कॉलेज का काम समाप्त करती. फिर रात को 10 बजे से 4 बजे तक इस किताब को लिखती. फिर अगली सुबह 8 बजे फिर से क्लास. महीनों तक मेरा यही रूटीन था.
मुझे लगता है कि पहली बार मैं ठीक से तब सोयी जब मेरे संपादक ने मुझे बताया कि किताब प्रिंट करने के लिए गई है.
2017 में, टाइम मैगजीन की अगली पीढ़ी के नेताओं की सूची में गुरमेहर को ‘Free-Speech Warrior’ के रूप में दिखाया था. वह उन कुछ लोगों में से एक थी जिन्हें नई दिल्ली में बराक ओबामा के टाउन हॉल में भाग लेने के लिए चुना गया था. TED Talks India में एक स्पीकर के रूप में इन्होनें अपनी आवाज उठाने की शक्ति और जोखिम के बारे में बात की थी.
2017 में गुरुमेहर को भारत-पाकिस्तान के एक विडियो को लेकर इनको बुरी तरह ट्रोल किया गया था.
वह कहती है, “यह सिर्फ तुम्हारे साथ क्या हुआ इसके बारे में ही नहीं है’ यह इसके बारे में भी कि आप प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया कैसे करते हैं. मैं पीछे हटकर माफ़ी मांग सकती थी या चुप हो सकती थी. लेकिन ऐसा करना मेरे परिवार के लोगों का अपमान होता. मेरा अपना जीवन नफरत से लेकर प्रेम और क्षमा वाला रहा है. मई एसा हर किसी में देखना चाहती हूँ. यदि मैं एसा कर सकती हूँ तो कोई और क्यों नहीं?
“मेरे पिता की ज्यादा यादें मेरे पास नहीं हैं, लेकिन मेरे पास कुछ बहुत ही अच्छी यादें हैं जो आज मुझे एक इंसान के रूप में ढालती है. मैं उनकी तरह बनना चाहती हूँ क्योंकि सभी ने कहते हुए सुना है कि मैं एक बहादुर सिपाही की एक बहादुर बेटी हूं. जब मैं छोटी थी तो सोचती थी कि हिंसक होना और किसी को मारना ही बहादूरी है. लेकिन मैंने बाद में अपनी नानी और माँ से बहादूर होने की नई परिभाषा सीखी. वे चाहती थी कि मैं और मेरी बहन उनकी तरह ही जिंदगी में साहसी और दृढ़निश्चयी बने.
ऑनलाइन नफरत, धमकियों, लेबल और मीडिया के हमले से उबरने के लिए, गुरुमहर पिछले साल 10 दिनों के लिए विपश्यना के लिए चली गयी थी. वह एक नए सिरे से शांति के साथ लौटी और अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखी.
मैं एक आदर्शवादी, एक खिलाड़ी, एक युद्ध नहीं चाहने वाली. मैं एक नाराज, प्रतिशोधी युद्धाधिकारी और बेचारी नहीं हूं. मैं युद्ध नहीं चाहती क्योंकि मैं इसकी कीमत जानती हूं; ये बहुत कीमती है. विश्वास कीजिये मुझे बेहतर इसकी कीमत कोई नहीं जनता क्योंकि मैं भुगतभोगी हूँ.
गुरमरहर कहती है कि लेखन का मेरे पास एक टूल है. मैं इसी हथियार का प्रयोग करना चाहती हूँ. मैं किसी और को मेरी कहानी नहीं बताती. मैं अपने नेरेटिव पर नियंत्रण रखती हूँ. इस पर मैं बहुत जिद्दी हूँ. आप अभिमानी भी कह सकते हैं. मुझे लगता है कि मैं बेहतर जानती हूं.
डीयू के श्री राम कॉलेज की गुरु मेहर एक छात्र (जिसको पर्यापत क्लास अटेंड कर पेपर में बैठना है) और एक लेखक (जिसको लिटरेचर फेस्टिवल अटेंड करने है) के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है.
जब गुरमेहर से पूछा आप केवल अपनी पीढ़ी के लिए ही नहीं, बल्कि आप के पुराने लोगों के लिए आशा की प्रतीक बन गई हैं. क्या यह आपको भारी लगता है?
“मैं इसके बारे में सोचने की कोशिश नहीं करती. जिस दिन मैं सोचने बैठती हूँ और उन सभी चीजों के बारे में सोचता हूँ जो लोग मुझे अच्छे या बुरे रूप में देखते हैं, तो मैं पागल हो जाऊंगी”. मैं केवल उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करता हूं जो मेरे नियंत्रण में हैं, और अन्य लोगों के विचार नहीं हैं.
यह मेरी जिंदगी है. मैंने इसके बारे में बहुत गहराई से सोचती हूँ. मुझे भी आजादी का आभास है. किताब लिखी जा चुकी है, अब मैं इसे पाठकों पर छोड़ती हूँ.