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इन मौतों की आदत हो चुकी है हमें

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डाक्टर बनते बनते रिपोर्टर बन गए धीरेन्द्र की आवाज कंपकंपाती है ‘कुल 61 की मौत हुई है भईया,25 आज’, मैं मन में सोचता हूँ फिर भी पिछले साल से कम है.
थोड़ी सी चुप्पी के बाद दोबारा फोन मिलाता हूँ ‘यार ये 25 नवजात थे,यह कैसे हुआ? इस पर काम करो? कुछ हलचल है मेडिकल कालेज में? नहीं भईया, आप तो जानते हैं इन मौतों की आदत पड़ चुकी है,मैं अचानक फोन टेबल पर रखता हूँ कुछ देर में ही वो डिस्चार्ज हो जाएगा… मौत की भी आदत सी हो जाती है.
किसी और की वाल पर बेवफाई के किसी किस्से पर कमेन्ट करने के बाद एक साथी मेरे फेसबुक वाल पर आता है और आते ही सवाल दागता है क्या यह ताज़ी है? मैं अचकचाता हूँ क्या मौत बासी भी होती है? हाँ यह ताज़ी है, ताज़ी मौतें …मैं ऊपर से नीचे तक अपनी पूरी टाइमलाइन पढ़ डालता हूँ केवल मौत, मौत. उसकी भी क्या गलती ,वो ऐसे ही सवाल तो करेगा ….
अब कवितायेँ नहीं लिख पाता पहले लिखता था. अब ज्यादा देर किसी से बात भी नहीं कर पाता,उकताहट होती है.अब तस्वीरें भी नहीं खींचता .अब केवल डरता हूँ ,सोचता हूँ शाम ढले तो हर बच्चा घर की चौखट में हो ,ट्रैफिक लाईट को आँखे दिखा एक्सीलेटर पर पाँव रखी हर औरत शाम का दिया जलाने घर पहुँच जाए ,हर पिता के कंधे का झोला घर पहुँचने पर भारी हो और वो घर के भीतर जब घुसे उसके चेहरे पर मुस्कराहट खिली हो.
मेरे सारे डर केवल इसी बात से जुड़े हैं कि यह सब चीजें न हुई तो ? अफ़सोस , इस देश में ऐसा अक्सर नहीं होता . दूसरों को केवल मौत की कहानियाँ सुनाने वाला खबरनवीस भला और क्या लिखे?
एक दूसरा आदमी पूछता है ‘कही ब्रेकिंग नहीं चल रही, कन्फर्म करें’, मैं यमराज हूँ क्या जो मौतों को कन्फर्म करूँ? फिर कौन हूँ मैं? एक सच्चाई आपको बता दूँ यह जो आप अचकचा कर इन मौतों पर हैरानी दिखाते हो न वो केवल आप दिखाते हो. जो जनता और जिस जनता के बच्चे मरते जा रहे हैं जो खबरनवीस लिखते जा रहे हैं उनके लिए यह हैरानियाँ नहीं लाती.
सोच लिया है जल्द ही फेसबुक छोड़कर चला जाऊँगा ,वैसे भी अब कम आता हूँ .यह मुश्किल बढाने वाली चीज है . बहुत सारे काम बचे हैं जो उन क्रांतियो से ज्यादा जरुरी है जिन्हें मैं देख रहा हूँ जिनमे मैं भी कभी कभी शामिल हो जाता हूँ .
-बनारस डायरी

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