गोदाम, चेक पोस्ट, बाइपास के उद्घाटन के लिए मोदी की सौ रैलियाँ

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केरल में 13 किमी बाइपास का उद्घाटन तो मुंबई में भारतीय सिनेमा के राष्ट्रीय संग्रहालय के नए भवन का उद्घाटन। सिल्वासा में मेडिकल कालेज की आधारशिला रखी तो मणिपुर के साओमबंग में भारतीय खाद्य निगम के गोदाम का उद्घाटन। ओडिशा में छह नए पासपोर्ट सेवा केंद्रों का शुभारंभ तो मणिपुर में एकीकृत चेकपोस्ट का उद्घाटन। ओडिशा के नील माधव और सिद्धेश्वर मंदिर के नवीनीकरण और सुन्दरीकरण का शुभारंभ तो केरल के तिरुवनंतपुरम में एक पट्टिका का अनावरण कर स्वदेश दर्शन योजना का शुभारंभ। साइंस कांग्रेस,वाइब्रेंट गुजरात, शॉपिंग फ़ेस्टीवल का उद्घाटन। हजीरा में टैंक में बैठ कर फ़ोटो खींचाई तो मुंबई में मेट्रो के नए चरणों की आधारशिला।
पाँच साल में सरकार के काम के विज्ञापन पर पाँच हज़ार करोड़ से अधिक ख़र्च करने और लगातार रैलियाँ करते रहने के बाद भी प्रधानमंत्री सरकारी ख़र्चे से सौ रैलियाँ कर लेना चाहते हैं। आचार संहिता से पहले उन्होंने सौ रैलियाँ करने की ठानी है। इस लिहाज़ से सौ ज़िलों में उनकी रैली की तैयारी चल रही होगी। एक रैली पर कितना सरकारी ख़र्च आता है इस लिहाज़ से उनके कार्यकाल में हुई सभी रैलियों का हिसाब मिल जाता तो हम जान पाते कि प्रधानमंत्री ने सिर्फ रैलियाँ करने में कई हज़ार करोड़ फूँक डाले हैं।
रैली करना प्रधानमंत्री का अधिकार है। लेकिन वे इसे काम समझ कर करने लगे हैं। जिन चीज़ों की सूची शुरू में गिनाई उनके शिलान्यास से लेकर उद्घाटन का काम उनके मंत्री और सांसद कर सकते थे। लेकिन जब प्रधानमंत्री मंदिर के नवीनीकरण के काम का शुभारंभ करने ओडिशा चले जा रहे हैं तो स्वदेश दर्शन योजना की पट्टिका लगाने केरल चले जाएँ तो फिर इन रैलियों की प्रासंगिकता पर सवाल उठना चाहिए। ये सभी सरकारी रैलियाँ हैं। इसलिए तरह तरह की योजनाएँ शामिल की जा रही है ताकि जनता को लगे कि प्रधानमंत्री काम से उसके शहर आ रहे हैं।
पिछले एक महीने में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रमों की प्रेस विज्ञप्तियाँ पढ़ें तो पता चलेगा कि इस वक़्त पोस्ट ऑफ़िस से लेकर बाइपास तक का उद्घाटन प्रधानमंत्री ही कर रहे हैं। पत्र सूचना कार्यालय PIB ने वेबसाइट पर सारी विज्ञप्तियाँ प्रकाशित की हैं। बेशक कई जगहों पर बड़ी योजनाएँ है मगर कई ऐसी हैं जिनका ज़िक्र अभी-अभी किया।
आगरा की रैली में गंगाजल की योजना का शिलान्यास तो समझ आता है लेकिन पूरे आगरा शहर में सीसीटीवी लगाए जाने की योजना की आधारशिला प्रधानमंत्री रखेंगे यह समझ नहीं आता है। यह काम तो स्थानीय सांसद के हिस्से आना चाहिए था। भाषण में प्रधानमंत्री कहते हैं कि सी सी टी वी लगने से आगरा को विश्वस्तरीय स्मार्ट सिटी बनने में मदद मिलेगी! सच्ची ! सी सी टी वी से कोई शहर स्मार्ट सिटी हो सकता है तो हर खिलौने और कपड़े की दुकान को स्मार्ट शॉप घोषित कर देना चाहिए क्योंकि वहाँ सीसीटीवी लगा है। एटीएम को स्मार्ट एटीएम घोषित कर देना चाहिए क्योंकि वहाँ सीसीटीवी लगा है!
शिलान्यास और उद्घाटन की सूची इसलिए लंबी की जा रही है ताकि उसे सरकारी कार्यक्रम का आवरण दिया जा सके। मगर बारीक डिटेल देखने से लगता है कि प्रशासन किसी तरह उनकी रैली को सरकारी बनाने के लिए योजनाएँ जुटा रहा है। क्योंकि इस वक़्त इन रैलियों का आयोजन तो सरकारी ख़र्चे से ही हो रहा है।
प्रधानमंत्री 20 राज्यों की 122 संसदीय सीटों पर सौ रैलियाँ करेंगे। एक ख़बर के अनुसार फ़रवरी तक पचास रैलियाँ ख़त्म कर लेंगे। ऐसा लगता है कि किसी डॉक्टर ने दवा की तरह रैलियों की संख्या लिख कर दे दिया है। एक रैली सुबह और एक रैली शाम को कर लें आप बेहतर फील करेंगे। लगेगा कि आपके पास काम है। लोगों को भी लगेगा कि आपके पास काम है। इसीलिए प्रधानमंत्री कभी आगरा होते हैं तो कभी बोलांगीर तो कभी सिलवासा तो कभी कोल्लम।
आचार संहिता के बाद उनकी दौ से तो कम रैलियाँ नहीं होंगी। हाल के विधानसभा चुनावों में भी पचीस तीस रैलियाँ हो चुकी होंगी। लगता है उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ दिया है । उनके लिए पीएमओ बस अड्डे के समान रह गया है। वे एक रैली से दूसरी रैली के बीच बस बदलने या कपड़े बदलने पीएमओ आते हैं। वहाँ पहुँच कर किसी विदेशी मेहमान से मिलकर अगली रैली के लिए निकल जाते हैं।
एक रैली करने में प्रधानमंत्री को कम से कम पाँच घंटे तो लगते ही होंगे। आना-जाना, भाषण की तैयारी करना बहुत बातें होती हैं। आप इस औसत से खुद हिसाब कर लें।
सौ रैलियाँ करने में पाँच सौ घंटे लगेंगे। यानी बीस दिन। तो हिसाब कहता है कि नए साल के पहले तीन चार महीने के बीस दिन वे कोई काम नहीं करेंगे। सरकारी कर्मचारी की छुट्टी भी 28 दिनों की होती है। फिर भी ये बात प्रधानमंत्री ही कह सकते हैं कि वे दिन-रात काम करते हैं। चालीस लाख से अधिक कर्मचारी, सत्तर के आस-पास मंत्री, अनेक सचिव, संयुक्त सचिव फिर भी प्रधानमंत्री ही दिन-रात काम करते हैं। सवाल है कि बाकी लोग फिर क्या करते हैं कि वे प्रधानमंत्री को गोदाम और चेकपोस्ट के उद्घाटन के लिए भेज देते हैं ? क्या प्रधानमंत्री के पास इतना समय है? या उन्होंने यही समझ लिया है कि काम का मतलब भाषण होता है।

नोट: यह लेख वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार के फ़ेसबुक पेज से लिया गया है