ज़करिया खान मूलतः पेशावर जिले से आए एक खूबसूरत पश्तून मर्द थे और भारतीय फिल्मों में अभिनय करते थे, स्क्रीन पर उन्हें जयंत नाम दिया गया था। बंबई में बांद्रा की जिस सोसायटी में रहते थे वहीं उर्दू के मशहूर शायर अख्तर-उल ईमान भी रहा करते थे। उत्तर प्रदेश के बिजनौर से ताल्लुक रखने वाले अख्तर-उल ईमान को न केवल ‘वक़्त’ और ‘धर्मपुत्र’ जैसी फिल्मों का स्क्रीनप्ले लिखने के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुके थे, सन 1966 में उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी हासिल हुआ था।
फिर एक दिन अमजद ने शहला से पूछा, “तुम्हें पता है तुम्हारे नाम का क्या मतलब होता है? इसका मतलब होता है गहरी आँखों वाली। ” फिर कहा, “जल्दी से बड़ी हो जाओ क्योंकि मैं तुमसे शादी करने जा रहा हूँ।”
कुछ दिनों बाद अख्तर-उल ईमान के पास बाकायदा शादी का प्रस्ताव पहुँच गया। ईमान साहब ने साफ़ मना कर दिया क्योंकि शहला अभी छोटी थी, अमजद खान गुस्से में पागल हो गए और उसी शाम शहला से बोले, “तुम्हारे बाप ने मेरी पेशकश ठुकरा दी! अगर यह मेरे गांव में हुआ होता तो मेरे परिवार वाले तुम्हारी तीन पीढ़ियों को नेस्तनाबूद कर देते।”
अख्तर-उल ईमान अपनी बेटी को अच्छे से पढ़ाना लिखाना चाहते थे जिसके लिए उसे अमजद खान की आशिकी की लपटों से दूर रखा जाना जरूरी था। शहला को आगे की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ भेज दिया गया, शहला जितने दिन भी अलीगढ़ में रही अमज़द ने रोज उसे एक चिठ्ठी भेजी, शहला भी उसे जवाब लिखा करती थी। फिर यूं हुआ कि शहला बीमार पड़ी और उसे वापस बंबई आना पड़ा।
अमजद को पता था शहला को चिप्स अच्छे लगते थे, तो शहला को हर रोज चिप्स के पैकेट मिलने लगे। दोस्ती बढ़ी तो दोनों ने एक एडल्ट फिल्म ‘मोमेंट टू मोमेंट’ भी साथ देखी। फिर अमजद के माँ-बाप की तरफ से शादी का प्रस्ताव गया तो अख्तर-उल ईमान मान गए। 1972 में उनकी शादी हुई, अगले साल जिस दिन उन्हें ‘शोले’ ऑफर हुई उसी दिन उनका बेटा शादाब पैदा हुआ।
‘शोले’ की सफलता ने दोनों की जिन्दगी बदल डाली, फिल्म के रिलीज के कुछ दिन बाद दोनों एक दफा हैदराबाद पहुंचे। एयरपोर्ट से अमजद को पिक करने के लिए पुलिस की जीप आई, रोड के दोनों तरफ लोगों की भीड़ थी, शहला ने अमजद से पूछा, “क्या ये लोग तुम्हारे आने के इन्तजार में खड़े हैं?” अमजद ने सपाट चेहरा बनाते हुए कहा, “हाँ! कालिदास की बीवी भी अपने पति को बेवकूफ ही समझती थी।”
27 जुलाई 1992 को दुनिया से चले जाने पहले अमजद को कुल 51 साल का जीवन मिला। और शहला को उनका कुल बीस बरस का साथ, इस प्रेम कहानी की एक जरूरी डीटेल तो मुझसे छूट ही गयी, जब शहला अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर अलीगढ़ से बंबई आई थीं तो उन्हें अमजद ने फारसी का ट्यूशन पढ़ाया था। पढ़ाई-लिखाई में बढ़िया रेकॉर्ड रखने वाले गब्बर को फारसी भाषा में फर्स्ट क्लास फर्स्ट मास्टर्स डिग्री हासिल थी।