मुंबई लोकल के महिला कंपार्टमेंट से लेकर फोटो जर्नलिज्म तक का सफर, भारत की पहली परलैंगिक फोटोजर्नलिस्ट है जोया थॉमस लोबो
करीब 10 सालों तक मुंबई लोकल के लेडीज कंपार्टमेंट में भीख मांगती थी जोया, आज पूरे भारत और अपने जैसे अन्य लोगों के लिए बन चुकी है एक अच्छी उदाहरण
जोया ने अपनी प्राथमिक शिक्षा एक कॉन्वेंट स्कूल से प्राप्त की। बाद में, 5वीं कक्षा में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। क्यूंकि वो एक क्रिस्टन है, इसलिए जोया को इंग्लिश अच्छी आती है।
जीवन का चुनौतीपूर्ण काल
11 साल की उम्र में उन्हें यह पता लगा कि वह बाकी सभी लोगों से काफी अलग है। मगर वही पुरानी सामाजिक मानसिकता, ” कि लोग क्या कहेंगे?” के डर से उन्होंने यह बात किसी से नहीं बताई। “महिम कपड़ा बाजार में पालन पोषण हुआ, जो रेलवे लाइन के समीप है। मां विधवा थी और मेरे साथ मेरी एक छोटी बहन को भी उसे संभालना होता था।” जोया बताती है।
अकसर जोया का परिवार अपना ठिकाना बदल दिया करता था। उसी क्रम में जब वे लोग माहिम के ही एक दूसरे इलाके में गए, तो जोया को कुछ लोग ऐसे मिले, जो उसके साथ सहज थे और जिनके साथ जोया अपनापन महसूस करती थी।
लगभग एक दशक तक महिला कंपार्टमेंट में भीख मांगा-जोया1
7 साल की नाजुक उम्र में जोया को उसकी गुरु से मुलाकात हुई, जिनका नाम सलमा था। सलमा ने ही जोया को एक परलैंगिक के रूप में स्वीकार किया। सलमा ने जोया को अपने ग्रुप से मिलाया, जिनके साथ जोया काफी सहज महसूस करती थी। जोया उसी ग्रुप में शामिल भी हो गई।जोया सलमा को गुरु इसलिए मानती है, क्योंकि उन्होंने हर बारीकी सिखाई थी। यहां तक कि एक परलैंगिक व्यक्ति को किस तरह ताली बजानी चाहिए, कैसे लोगों से मिलना चाहिए, हर चीज।
जोया की मां को जब पता लगा कि वह एक ग्रुप में भीख मांगती है तब उन्हें बहुत चिंता हुई। जोया बताती है,” शुरू में मेरी मां भी मेरे साथ ही सफर किया करती थी, ताकि मेरे साथ कोई अनहोनी न हो जाए। बाद में उन्होंने मुझे अकेला छोड़ दिया। मगर उसके 1 महीने बाद ही उन्होंने मुझे वापस से अपना लिया।
“2016 में मां के गुजरने के बाद 2018 तक जोया ने ट्रेनों में घूम घूमकर भीख मांगा। सुबह के वक्त वह खार से सैंटाक्रूज के बीच सफर किया करती थी और लेडीज कंपार्टेम्ट में घुमा करती थी। शाम में बांद्रा से ट्रेन लेकर माहिम और माटुंगा तक, वहा से मलाड और फिर वापस। सुबह बहुत जल्दी और रात को अधिक लेट ट्रेन नहीं लेती थी, क्यूंकि पुलिस का खतरा रहता था।
भीख मांग कर गुजारा किया
आम दिनों में जोया लगभग 500 से 800 रुपए तक कमा लेती थी। वहीं पर्व त्योहार के मौकों पर 1500 तक की कमाई हो जाती थी। जोया अधिक से अधिक बचत करने में रहती थी। कभी लंच में वड़ा – पाव, कभी कुछ स्ट्रीट साइड चाइनीज, आदि खाकर जोया ने गुजारा किया है।
जोया और फोटोजर्नलिज्म
जोया कहती है ” मेरी फोटो जर्नलिस्ट बनने की शुरुआत भी एक मुंबई लोकल से ही हुई थी। मैंने बांद्रा स्टेशन के बाहर कुछ प्रवासी मजदूरों को आंदोलन करते देखा था, जिसके बाद मैं तुरंत घर से अपना कैमरा लाई और उसे तस्वीरों में कैद किया। इसी के बाद बड़े प्रकाशन वालों ने मेरी फोटो को सिलेक्ट किया।
“साल 2018 में एक दिन टाइमपास के लिए वह यूट्यूब पर ‘हिजड़ा शाप की वरदान’ का पहला भाग देख रही थी। इस दौरान, जोया ने फिल्म में युक्त कई कमियों और खामियों को कमेंट सेक्शन में लिखा। जिसके बाद उसे इसी फिल्म के दूसरे भाग में अभिनय करने का मौका मिला। इस अभिनय के लिए जोया को अवॉर्ड भी मिले। उसी अवॉर्ड फंक्शन में एक लोकल कॉलेज के मीडिया एजेंसी ने जोया को नोटिस किया और उसे एक रिपोर्टर का जॉब ऑफर किया।
जोया को प्रेस कार्ड तो मिल गया, मगर उसे आगे क्या करना है नहीं पता था। वह फिर से पहले की तरह भीख मांगने लगी। कुछ दिनों बाद, उसने अपने अब तक के बचाए हुए सभी पैसे जोड़ें, जो करीब ₹30000 थे और उसने बोरा बाजार से एक सेकंड हैंड कैमरा ले लिया।
जोया ने अपना पहला कैमरा अपने भीख मांगे पैसों से ही लिया था। उसे खास चीज को अपने पास कैद करके रखने का मन करता था जिसके कारण उसने फोटोजर्नलिज्म में अपने कदम रखें।
फोटोजर्नलिज्म की बारीकी
“2019 में एक पिंक रैली का कवरेज करते वक्त मैंने दिव्यकांत सोलंकी को देखा। दिव्यकांत, यूरोपियन प्रेसफोटो एजेंसी के सीनियर फोटो जर्नलिस्ट है। उनसे ही मैंने फोटोजर्नलिज्म की कई सारी बारीकियां सीखी है।” जोया ने बताया।
आज जोया की लगभग 4000 फॉलोअर्स वाली इंस्टाग्राम अकाउंट पर 350 पोस्ट है जिनमें समाज की स्थिति, वाइल्डलाइफ जानवर, आदि कई सारे विषयों से संबंधित उम्दा लेवल की फोटोग्राफी देखने को मिलती है।