स्वतंत्रता सेनानी जो अंग्रेजों की सेना में रहा

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आज से करीब 75 साल पहले हमारे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कई लोगों ने अहम भूमिका निभाई थी। कुछ लोगों को तो सभी याद रखते हैं, मगर उनमें से कुछ ऐसे भी थे जिन्हें बहुत कम लोग जानते भी है। उन्हीं सेनानियों में से एक थे बलवंत सिंह।

आज के दिन बलवंत सिंह (Balwant Singh) का जन्म दिवस मनाया जाता है। उन्होंने 10 साल ब्रिटिश सेना (British Army) में होकर भी अंत में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत छेड़ी थी। उसके बाद अपनी आखिरी सांस तक वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ते रहे थे।

जीवन से जुड़ी बातें

शहीद बलवंत सिंह का जन्म 16 सितंबर 1882 को जालंधर (Jalandhar) के खुर्दपुर गांव में हुआ था। शुरू से ही वह एक गर्म खून वाले व्यक्ति थे। क्योंकि उस वक्त भारत पर अंग्रेजों का शासन था, इसलिए वह ब्रिटिश सेना में शामिल हो गए।

वहां उन्होंने 10 साल तक अपना अतुल्य योगदान दिया। मगर कुछ कारणों से उन्होंने सन् 1905 में सेना को अपना त्यागपत्र (Resignation) सेना के अधिकारियों को सौंप दिया। इसके बाद वह कई धार्मिक कार्यों में व्यस्त हो गए। वह अपना जीवन शांतिपूर्ण तरीके से जीना चाहते थे।

कैसे बने स्वतंत्रता सेनानी?

ब्रिटिश सेना को त्यागपत्र देने के बाद अपने धार्मिक कार्यों के कारण एक बार उन्हें कनाडा (Canada) जाना पड़ा। जब वह वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि भारत के लोगों पर जातीय भेदभाव के कारण काफी जुल्म किए जा रहे थे। गर्म खून होने के कारण उन्होंने इसके खिलाफ जोरदार आवाज उठाई, मगर उसका कोई बड़ा असर नहीं हुआ।

इस प्रसंग के बाद ही उन्होंने भारत से अंग्रेजों को भगाने की ठान ली थी। वह इस जातीय भेदभाव को खत्म करना चाहते थे। इसके लिए वह सबसे पहले ‘गदर पार्टी’ के साथ संपर्क में आए। वापस भारत आने के बाद उन्होंने पंजाबी लोगों के अंदर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी सुलगाने का काम किया। भारतीय लोगों को कनाडा के तट पर ‘कामागाटा मारू ‘ जहाज से उतारने वालों में बलवंत सिंह भी शामिल थे।

लाहौर में हुए थे शहीद

राजद्रोह फैलाने का आरोप लगाते हुए उस वक्त के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर (Lieutenant General) माइकल डायर (Michael Daier) ने ब्रिटिश सरकार को बलवंत सिंह के बारे में एक पत्र लिखा। उस वक्त वह बैंकॉक (Bangkok) में थे। उनपर हौपकिंसन की हत्या का आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। हौपकिंसन कनाडा में भारतीय सिखों के विरोध काम करता था।

उन्हें 1915 में इसी मामले का हवाला देते हुए गिरफ्तार कर लिया गया और ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया गया। साथ ही उन पर ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में मुकदमा चलाया गया था। इसी मामले में उन्हें मार्च 1817 में लाहौर जेल (Lahore Jail) में फांसी दे दी गई।

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