दैनिक जागरण अखबार ने कुछ दिन पूर्व कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ हुए रेप पर एक फेक न्यूज़ चलाई थी, जिसका सभी ने विरोध किया था. पाया ये गया था की जागरण फेक न्यूज़ को बढ़ावा दे रहा है. हाल ही में जागरण द्वारा आयोजित दैनिक जागरण संवादी के कार्यक्रम में साहित्य के क्षेत्र में कई पुरुष्कार प्राप्त लेखक नीलोत्पल मृणाल को भी आमंत्रित किया था.
नीलोत्पल मृणाल बेस्ट सेलर पुस्तक डार्क हॉर्स के लेखक हैं, उन्होंने जागरण की इस फेक न्यूज़ के विरोध में प्रोग्राम का बहिष्कार किया और एक फेसबुक पोस्ट डालकर सभी को जानकारी दी.
आईये देखें लेखक नीलोत्पल मृणाल की फ़ेसबुक पोस्ट
हिंदी की परंपरा से हूँ, विरोध, रोष और असहमति का भी एक शउर सिखलाता है साहित्य। साहित्य लठैती नही है न ही इतना छिछला कि चंद गाली और आपत्तिजनक शब्द बाण के बौछार कर अपना कर्तव्य पूरा कर ले क्रांति का।
अपनी साहित्यिक विरासत की भरी पूरी परम्परा से केवल शिल्प नही कुछ कायदा भी सीखना चाहिए ही।
अन्य कई लेखकों की तरह मैं भी दैनिक जागरण संवादी का मेहमान था। मैं दिल्ली में बैठ लठैती के पोस्ट लिख क्रांत्ति का दायित्व नही निभा सकता था। जब मेहमान था तो मेजबान के दरवाजे पे आ के अपनी शिकायत रखना बेहतर और अदबी तरीका लगा मुझे।
कुछ भी निर्णय लेने से पहले मुझे पूरा मामला,वहां की परिस्थिति एक बार देख लेने की भी इच्छा थी तब जा के कुछ ठोस निर्णय आ पाता। खुद को भी आत्मा और बुद्धि के स्तर पर देख सुन परख लेना था तब कुछ ईमानदार निर्णय आ पाता। अंत में मैंने आत्मा का जो निर्णय था वो कर लिया।
मैं यहां सुबह से कई सत्र के कार्यक्रम देख रहा। माहौल बिलकुल लोकतांत्रिक था और कई वक्ता ने कठुआ पे दैनिक जागरण की गलती की निंदा की। जागरण ने इसे अपने मंच से करने भी दिया।
लेकिन असली बात यहां अटकती नजर आयी कि जागरण की तरफ से अगर यहां इस समाचार के लिए गलती मान माफ़ी मांग ली जाती तो एक शानदार काम होता। पर अफ़सोस ऐसा न हुआ।
बस मेरी आत्मा ने निर्णय ले लिया है।
मैं बड़ी विनम्रता से इस कार्यक्रम से खुद को अलग कर रहा हूँ। मैं बिलकुल बिना किसी दुराग्रह, अपने होने वाले कार्यक्रम का बहिष्कार कर कार्यक्रम स्थल छोड़ चूका हूँ।
मैं जानता हूँ ये मौका तो मेरे लिए तो बेस्ट सेलर की सूची में होने के उपलक्ष्य में धूम मचाने का था लेकिन मैं पुरे होशो हवास में इस बात को समझाना चाहता हूँ खुद को कि ये समय अपनी किताब की ख़ुशी नही, एक समाज की पीड़ा को साझा करने का है,एक बेटी,बहन की पीड़ा को साझा करने का है।
मुझे अच्छी तरह पता है कि इतने बड़े अखबार समूह के कार्यक्रम को उसकी बेस्ट सेलर सूची में हो कर भी बहिष्कार करना मेरे अभी अभी तो उभरे कैरियर पे जोर का लात मारने जैसा है।
क्योंकि हम जैसे युवा लेखक कई स्थापित और सुरक्षित लेखक की तरह दिल्ली में नौकरी नही करते हैं जो खाता सरकारी वेतन है इसलिए साहित्य की रॉयल्टी की चिंता बिना क्रांति करता रहे।
मुझे एक एक रोटी इसी साहित्य से मिलती है।व्यवहारिक सच तो ये है कि मेरे लिए अख़बार,विज्ञापन,बाज़ार,नाम,यश के साथ पैसा भी ,सब जरुरी हैं।मेरी उम्र में ये सबको आकर्षित करता ही है। लालच कैसे न रहे? लेकिन खुद पे काम कर फिर पार पाना होता है इन इच्छाओं से। अपनी प्राथमिकता बदलने का साहस करना होता है, जोखिम लेना होता है।
अरे मुझ जैसे साधारण को आज जो भी मिला है वो तो पाठकों के स्नेह से मिला है। मैं उनके भरोसे उनके भरोसे के लिए ये कदम बेझिझक उठा रहा हूँ। मुझे पता है मैंने डार्क हॉर्स के जश्न को युद्ध के मैदान में तलवार से घिरे घोड़े में बदल दिया है।
लेकिन आगे अपने दोस्तों,गुरुओं,परिवार और पाठकों के सामने नैतिक रूप से खड़ा हो कुछ ईमानदारी से कहने बोलने का बल बचा पाऊँ, इसलिए छोड़ दिया है मंच।मेरे जैसे छोटे से यही हो पाया।
बहिष्कार…. बहिष्कार…बहिष्कार। जय हो।