पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री का बयान, युद्ध की धमकी के बाद रिहा किये गए थे अभिनंदन

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पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ द्वारा यह खुलासा करना कि, विंग कमांडर अभिनंदन को, भारत द्वारा युद्ध की धमकी दिए जाने के बाद छोड़ा गया था और इससे पाकिस्तान डर गया था, यह कितना सच है यह तो दोनो ही देशों के कूटनीति के विशेषज्ञ ही बता पाएंगे, पर यह सच है कि अभिनंदन की रिहाई जल्दी ही हो गई थी। पाकिस्तान की असेम्बली में जो कहा गया उस पर मीडिया में जो छपा है, उसे पढिये।

मीडिया के अनुसार,

” पाकिस्तान से असेंबली में भारत और मोदी सरकार के खौफ का ताजा सबूत सामने आया है। भारत के फायटर प्लेन पायलट अभिनंदन को लेकर पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा कि अभिनंदन को पाकिस्तान ने भारत के खौफ में, भारत को खुश करने के लिए छोड़ा था।  पाकिस्तान असेंबली के पूर्व स्पीकर सरदार अयाज सादिक ने भी कहा कि उस वक्त पाकिस्तान के आर्मी चीफ बाजवा के पैर कांप रहे थे और चेहरे पर पसीना था कि कहीं भारत अटैक न कर दे।”

अब यह हमारी धमकी का प्रतिफल था या अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक दबाव यह तो तभी पता चलेगा जब इस घटना से जुड़ा कोई अफसर या किरदार अपनी आत्मकथा लिखेगा और उसमे इस घटना का उल्लेख होगा। लेकिन असेम्बली किया गया यह खुलासा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और न इसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए। अभिनंदन को, पाकिस्तान द्वारा, जल्दी छोड़ दिया जाना, भारत सरकार की एक कूटनीतिक उपलब्धि ज़रूर है। इसकी सराहना की जानी चाहिये। जब अभिनंदन को रिहा किये जाने के रहस्य पर बात होगी तो बालाकोट और अभिनन्दन के पकड़े जाने की पृष्ठभूमि की चर्चा भी होगी। क्योंकि यह सारी घटनाएं एक दूसरे से जुड़ी हैं।

पूरा घटनाक्रम इस प्रकार है। साल 2019, तारीख़ 14 फ़रवरी. जम्मू और कश्मीर के पुलवामा के पास एक ज़ोरदार विस्फोट होता है और इसकी चपेट में आ जाता है केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के 78 वाहनों का क़ाफ़िला। इस विस्फोट से 40 जवानों की घटनास्थल पर मौत हो जाती है और पूरे देश में दुःख और आक्रोश की लहर दौड़ जाती है। यह सब कुछ आम चुनावों से ठीक पहले होता है और घटना को लेकर राजनीति भी गरमा जाती है। दो सप्ताह के बाद यानी 26 फ़रवरी को, भारत ने दावा किया कि भारतीय वायु सेना के मिराज-2000 विमान ने रात के अंधेरे में नियंत्रण रेखा को पार करके पाकिस्तान के पूर्वोत्तर इलाक़े, खैबर पख़्तूनख़्वाह के शहर बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकवादी संगठन के ‘प्रशिक्षण शिविरों’ के ठिकानों पर सिलसिलेवार ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ किया है। अगले दिन पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई होती है। भारतीय वायुसेना के मिग-21 ने पाकिस्तानी वायुसेना के एक एफ़-16 को मार गिराया. बाद में पाकिस्तान ने भी मिग-21 को मार गिराया और विंग कमांडर अभिनंदन को गिरफ़्तार कर दो दिनों के बाद रिहा कर दिया।

पाकिस्तान यह स्वीकार करे या न करे पर यह कोई रहस्य नहीं है कि, 14 फरवरी 2019 को हुये पुलवामा हमले में उसका हांथ था। यह सन्देह तब भी था, जब यह घटना घटी थी। पाकिस्तान द्वारा भारत मे आतंकवाद फैलाने की साज़िश आज से नही बल्कि अक्टूबर 1947 से लगातार हो रही है। यह अलग बात है कि 1947 के बाद जब जम्मूकश्मीर का विलय भारतीय संघ में हो गया तो, तब से लेकर 1990 तक कश्मीर में कोई सुनियोजित आतंकी घुसपैठ की घटना नही हुयी। हालांकि, छिटपुट घुसपैठ तो बराबर होती रही। सन 1990 के समय हुयी व्यापक घुसपैठ और कश्मीर के पंडितों के पलायन के पहले, 1965 और 1971 में, भारत पाक के बीच दो युद्ध हो चुके थे, जिनमे1965 में पाकिस्तान हारा था और 1971 में तो वह टूट ही गया था । एक नया देश बना बांग्लादेश जो अब दक्षिण एशिया का सबसे तेजी से विकसित होने वाले देशों में से शुमार हो रहा है।

पुलवामा ही नही, पठानकोट एयरबेस पर हुआ आतंकी हमला, उसके पहले, 26/11 2008 का मुम्बई हमला, और अगर 1993 के मुम्बई विस्फोटों की बात करें तो वह सीरियल विस्फोटों की तब तक की सबसे बड़ी घटना, न केवल पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित थी, बल्कि वह पाकिस्तान द्वारा वित्तपोषित भी थी।

पाकिस्तान एक अविश्सनीय मित्र देश है यह अलग बात है कि वह लिखा पढ़ी में हमारा मोस्ट फेवर्ड नेशन भी है। पाकिस्तान की योजना न केवल देश मे आतंकी कार्यवाहियों को अंजाम देना है, बल्कि उसकी योजना देश के अंदर के सामाजिक तानेबाने को भी छिन्नभिन्न कर कर साम्प्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देना भी है। भारत के सेक्युलर चरित्र से पाकिस्तान सदैव असहज रहता है और यह प्रवित्त आज से नहीं बल्कि आज़ादी के पहले से ही जब एमए जिन्ना पाकिस्तान की मांग पर बजिद थे, तब से है।

अगर विभाजन के इतिहास का अध्ययन करें तो यह दिलचस्प तथ्य मिलेगा कि, जब जब कांग्रेस की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष या प्रतिनिधि के रूप में मौलाना आज़ाद, किसी बातचीत में शामिल होने गए हैं, तब तब जिन्ना ने न केवल खुद को असहज महसूस किया बल्कि उन्होंने  कांग्रेस को एक हिंदू दल के रूप में संबोधित किया और मौलाना आजाद की उपस्थिति पर आपत्ति जताई। मौलाना आज़ाद, मौलाना हसरत मोहानी और खान अब्दुल गफ्फार खान यह तीनों शीर्षस्थ कांग्रेसी नेता, एमए जिन्ना को कभी रास नहीं आये। जब धर्मान्धता की अफीम का नशा चढ़ता है तो एमए जिन्ना जैसा एक सेक्युलर और आधुनिक विचारधारा का नॉन प्रैक्टिसिंग मुस्लिम व्यक्ति भी धर्मांध हो जाता है। राजनीतिक स्वार्थ जो भी न करावे वह थोड़ा है।

पुलवामा हमले में 40 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे। पूरी कन्वॉय में आरडीएक्स से लदी एक कार कन्वॉय के बीच मे चल रही एक बस से टकरा जाती है और उस बस में सवार सभी जवान मारे जाते हैं। यह घटना बेहद दुःखद और आक्रोशित करने वाली थी। फिर उसके बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक होती है, और फिर विंग कमांडर अभिनंदन का जहाज पाकिस्तान की एरिया में गिर जाता है और वह पाकिस्तान में गिरफ्तार होते हैं जिन्हें बाद में कूटनीतिक प्रयासों से मुक्त कराया जाता है। अब यह भी कहा जा रहा है कि भारत ने अभिनंदन को न रिहा करने पर हमला करने की धमकी दी थी। यह बात सच हो सकती है और इस पर अनावश्यक रूप से संशय नहीं करना चाहिए।

लेकिन, बालाकोट एयर स्ट्राइक और अभिनंदन को मुक्त करा लेना कोई ऐसी आपवादिक रणनीतिक उपलब्धि नही है कि उस पर हम अपनी पीठ ठोंके। बल्कि यह पुलवामा हमले की प्रतिक्रिया या बदला भी कहना चाहें तो इसे कहा जा सकता है, था। पर बालाकोट और अभिनंदन मुक्ति अभियान की ज़रूरत क्यों पड़ी? जब इस पर सोचा जाएगा तो यही बात सामने आएगी कि क्योंकि हम पुलवामा हमले में अपने 40 जवान खो चुके थे, देशव्यापी आक्रोश था तो जवाबी कार्यवाही हमे करनी ही थी, और हमने की और उसका असर भी हुआ। यह निर्णय ज़रूरी भी था।

एक सवाल आज तक अनुत्तरित है कि पुलवामा हमले में हमारी वे कौन सी रणनीतिक  भूलें थीं जिनके कारण हमारे 40 जवान मारे गए ? क्या सरकार ने इस घटना की जांच कराई कि किस अफसर का इस पुलिस बल के मूवमेंट में क्या भूमिका थी ? आरडीएक्स कहाँ से आया और किसने इसे प्लांट किया ? कन्वॉय के मूवमेंट के दौरान सड़क सुरक्षा की गयी थी या उसमे कोई चूक थी ?  आतंकी गतिविधियों से भरे पड़े उस क्षेत्र से इतनी लंबी यात्रा क्यों हमने सड़क मार्ग से करने की सोची ? बल का यही मूवमेंट हवाई जहाज से क्यों नही कराया गया ? खबर यह भी थी कि सीआरपीएफ ने हवाई जहाज से मूवमेंट कराने की अनुमति मांगी थी, पर उसे बजट की कमी बता कर टाल दिया गया। सरकार के पास जब भी पुलिस फोर्स के लिये धन मांगा जाता है तो अक्सर अर्थाभाव हो भी जाता है। फिर तो बस या ट्रक में जैसे भी हो लंगे फंदे पहुंचना ही था तो कन्वॉय रवाना हुआ। अगर इलाक़ा सामान्य है तब तो कोई बात नहीं, फोर्स का मूवमेंट ऐसे ही होता ही है। लेकिन जम्मूकश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके में पुलिस बल को वह भी मय लवाजमे के इस प्रकार भेजना, निरापद तो बिलकुल नहीं था।

पुलवामा का हमला, चाहे इसकी योजना सीमापार पाकिस्तान में किसी जगह पर बनी हो, या घाटी के अंदर बैठे आतंकी संगठन के नेताओ के घर इसकी साज़िश हुयी हो, यह घटना, खुफिया एजेंसियों की जबरदस्त विफलता का प्रमाण है। खुफिया एजेंसियों का काम ही है कि वे किसी भी घटना के बारे में अग्रिम अभिसूचना पहले से दे दें और एक्जीक्यूटिव विभाग का दायित्व है कि वे उन अभिसूचना पर जो भी निरोधात्मक कार्यवाही कर सकते हैं करें। शहादत एक सर्वोच्च बलिदान है। पर इस सर्वोच्च बलिदान की नौबत न ही आये तो ही रणनीतिक सफलता मानी जाती है। 40 शवो के साथ लास्ट पोस्ट की धुन, शव पर चढ़े हुए पुष्पगुच्छ और पुष्पचक्र जिसे अंग्रेजी में रीथ कहते हैं, गर्व का भान तो कराते हैं, पर यह सब बेहद हृदयविदारक है और हर बल के ऑपरेशन में यह ज़रूर देखा जाता है कि कम से कम जनहानि हो। अतः यह स्वीकार किया जाना चाहिये कि, जिस प्रकार से पुलवामा हादसा हुआ है वह एक घोर प्रशासनिक और इंटेलिजेंस एजेंसियों की प्रोफेशनल नाकामी का परिणाम था ।

हमारी सैन्य और पुलिस की कार्यशैली में, यह पहली खुफिया विफलता नहीं है। बल्कि अब तक की सबसे बड़ी खुफिया विफलता करगिल की सबसे बड़ी और संगठित घुसपैठ रही है, जिंसमे पाकिस्तान के घुसपैठिये आ कर टाइगर हिल तक पर कब्ज़ा कर लिए और श्रीनगर लेह राजमार्ग वे काटने ही जा रहे थे। करगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के करीब तीन हजार सैनिकों को मार गिराया था। पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ सेना की ओर से की गई कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए थे। करगिल कोई युद्ध नही था, बल्कि घुसपैठियों को अपनी भूमि से निकालने का एक बड़ा ऑपरेशन था। सरकार ने इसे युद्ध घोषित भी नहीं किया था। हमारी सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलओसी पार नहीं की थी औऱ यह भी एक कारण था जिससे हमारे जवान अधिक संख्या में शहीद हुए।

पुलवामा में जो खुफिया विफलता हुयी उसके लिये सरकार द्वारा जिम्मेदारी तय कर के दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए थी। हो सकता है ऐसा हुआ भी हो। पर कोई सन्दर्भ अभी तक नहीं मिला है। बालाकोट और अभिनंदन की मुक्ति अगर एक उपलब्धि है तो पुलवामा हमला एक गम्भीर सुरक्षा चूक और शर्मनाक विफलता भी है जहां 40 जवान बस में बैठे बैठे एक विस्फोट में उड़ा दिए गये। उपलब्धि की अगर सराहना की जाती है तो इस गम्भीर चूक की जिम्मेदारी भी उनको लेनी होगी जो यह सराहना स्वीकार कर रहे हैं।

इस प्रकार के आतंकवाद निरोधक सैन्य या पुलिस ऑपरेशन में जनहानि होती है औऱ इसे प्रोफेशनल हेजार्ड कहते हैं पर ऐसे ऑपरेशन का नेतृत्व करने वाले अधिकारी यह उपाय भी मुकम्मल तरह से करते हैं, जिससे कम से कम जनहानि हो। पाकिस्तान लम्बे समय से आतंकियों की घुसपैठ हमारे यहां करा रहा है और यह घुसपैठ रुकने वाली भी नहीं है। इसके लिये हमें खुफिया तंत्र को मज़बूत तो करना ही होगा साथ ही विभिन्न खुफिया एजेंसियों, आईबी, रॉ, राज्य सरकार की स्पेशल ब्रांच, और मिलिट्री इंटेलिजेंस में एक उचित समन्वय भी बनाना होगा। डोकलां और हाल ही की हुयी गलवां घाटी की घटना भी इस क्रम में जोड़ कर देखी जा सकती हैं। जिस पाकिस्तान को अब तक भारत सभी युद्धों में बुरी तरह पराजित कर चुका हो, वह अगर हमारी युद्ध की धमकी से थर थर कांपने लगें और डर कर विंग कमांडर अभिनन्दन को मुक्त कर दे तो यह हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसी पाकिस्तान के एक मेजर जनरल एके नियाजी ने 90 हज़ार सैनिकों के साथ हमारी सेना के आगे बेल्ट और टोपी उतार कर आत्मसमर्पण किया था, जो विश्व के सैन्य इतिहास में एक अत्यंत गौरवपूर्ण विजय मानी जाती है। पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है उससे भारत की कोई तुलना, कम से कम सैन्य संसाधन के क्षेत्र में नहीं ही की जा सकती है और न ही की जानी चाहिये।

( विजय शंकर सिंह )

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