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एक नागरिक का पयाम, लेफ़्ट फ्रंट के नाम

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केंद्र में साढ़े तीन बरस और दीगर राज्यों में लगभग डेढ़ दशकों के झूठ, फ़रेब, मक्कारी, औरत विरोधी, अमीरपरस्त- ग़रीब विरोधी, नफ़रत, ख़ून ख़राबा, ग़ैर संवैधानिक आचरण और देश को दुनिया में शर्मशार करने वाली, पूंजीवादी बर्बरता के पुख़्ता और ज़िन्दा सुबूत होने के बावजूद त्रिपुरा में भ्रष्ट और तानाशाही के हाथों  “आपकी” ऐसी हार ..!
वैसे तो जम्हूरियत ( लोकतंत्र ) के भीतर चुनाव में सरकार का जाना राजा-महाराजाओं के हारने जैसा शर्मनाक  नहीं होता, मगर आज के भारत में “लेफ़्ट विहीन” होती संसद, विधायिकाएं, न्यायपालिकाएं गंभीर सवाल पैदा कर रही हैं.
ख़याल रहे कॉमरेड्स, हमारा संविधान “हम नागरिकों” को “आपसे” सवाल करने का हक़ देती हैं जिनसे नज़रे चुराने, प्रश्नकर्ताओं को इल्ज़ाम देकर चुप बैठा देने का हक़ आप सबने खुद ही गंवा दिया है. अगर फ़िर भी आप यही आचरण दोहराएंगे तो ये खेल में हारने पर जीतने वाले बच्चों पर थूक कर भागने जैसी बचकानी फ़ितरत ही कहलाएगी जिसे अबोध (ग़ैर राजनितिक) बच्चे दोबारा अपनी टीम में शामिल नहीं करते हैं !
क्या अब भी आपलोग, अपनी कमज़ोरियों/नाकामियों/ बंटे रहने की बचकानी, ग़ैर राजनितिक अहं की पर्दापोशी के लिए वही पुराने, घिसेपिटे, सड़ांध मारते  बहाने, घटिया कुतर्कों का सहारा लेंगे कॉमरेड…..?
बरसों से सुनते आए हैं विचारधारा को विचारधारा से ही हराया, हटाया, तोड़ा जा सकता है तो क्या अब ये मान लिया जाए कि भारत में कम्युनिज़म फ़ेल हो चुका है?

  • या इंसानी बराबरी वाली समाजवादी विचारधारा दम तोड़ चुकी है?
  • या अब उसे दफ़्न कर देने का वक़्त क़रीब आ पहुंचा है?
  • न कॉमरेड्स..! ये हम क़त्तई नहीं मान सकते.

मगर हाँ, ये ज़रूर कह सकते हैं कि आप लोगों की गुटबाज़ियाँ, आलस्य, चापलूस पसंदगी और उच्चवर्णीय श्रेष्ठता का मनुवादी ब्राह्मणी आचरण जिसने दलितों, आदिवासियों अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के साथ ही हाशिये के तमाम तबकों को आप लोगों ने  अपने झूठे ज्ञान और अहंकार के दम्भ के ज़रिए हमेशा अपने पैरों की जूतियां बना कर रक्खा. और उन पर अपनी गौरवर्णीय संस्कृति थोपते रहे, बारहा उनसे संविधान प्रदत्त  आज़ादी भी छीनी है आपने …!

  • नतीजतन आपकी पार्टी में “उनकी” आवाज़ धीमी होती चली गई- मगर आपकी पेशानी पे बल नहीं पड़े.
  • “वे” आपकी पार्टी से “बाहर” होते गए- आप उनपर गद्दार, भ्रष्टाचारी और आतंकवादी समर्थक होने जैसे  शर्मनाक इल्ज़ाम की गन्दगी  उछाल कर अपना दामन उजला दिखाते  रहे.
  • आप- पंचायतों, परिषदों, नगर पालिकाओं से सिमटते रहे. (हालांकि कुछ ईमानदार मगर जागरूक “छोटे” कॉमरेड्स ने आपको समझाने की कोशिशें भी कीं, लेकिन कभी धमका के तो कभी धकिया के आप उन्हें ख़ामोश करते रहे)

और फ़िर धीरे-धीरे देश की बहुसंख्यक विधान सभाएं आपके वजूद से ख़ाली होती गईं. मगर आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. (आपकी अपनी गिरोहबंदी काफ़ी मज़बूत जो हो चुकी थी), आपकी चमड़ी और गुलाबी, आपके कपड़े और उजले,  और कलफ़दार, और चमकीले होते रहे.!  फ़िर आप अपने  “अभेद्द”  कहे जाने वाले “दुर्ग” से हकाल दिए गए… लेकिन आप बहाने बनाने,  कुतर्क करने लगे.

हार से “सबक़” लेना, आपने तब  भी नहीं सीखा..! अपनी ख़ामियों, आपराधिक ग़लतियों को सुधारने जैसा कोई मेकेनिज़म आपने नहीं बनाया. हां “समीक्षा” और आत्मालोचना जैसे शब्द “हार” के लिए ज़रूर गढ़ लिए गए.. एकाध  दशक पहले “रेक्टिफ़िकेशन” जैसा शब्द ज़रूर गढ़ा गया था  जिसकी आड़ लेकर करप्ट और भ्रष्ट ब्यूरोकेट्स की दबंगई का चलन पार्टी के अंदर पैदा किया गया जिससे ईमानदार, कर्मठ, “छोटे” ग़ैर लॉबींगी (तटस्थ) कॉमरेड्स को हतोत्साहित किया जा सके.

मगर (तीन मार्च 2018 त्रिपुरा) अब जो हुआ वो आपके (मठों) लिए शायद बहुत बुरा या अकल्पनीय नहीं होगा मगर ये हमारे मुल्क के लिए बहुत बुरा साबित  होने वाला है कॉमरेड्स.
बेशक आपकी विचारधारा सरहदों की बंदिशें नहीं मानती, मगर सर्वहाराओं की दुनियां बनाने के लिए “आप मठाधीशों ने” क्या वाक़ई मेहनत की है?? क़ुर्बानियां दी है? अपने दिल पे (जिसका क़त्ल करना सबसे ज़रूरी बताया/सिखाया जाता है) हाथ रखकर अँधेरे में ही सही, कभी ये सवाल खुद से ज़रूर पूछियेगा…!
आप लोग तो ज़मीर को भी नहीं मानते. मोरालिटी तो आपके लिए सिगरेट के धुएं और जाम की लहरों में डुबो कर मज़े लेने भर की चीज़ है.. ऐसी कोई जगह आपने अपने आसपास बने  रहने ही नहीं दी है जहां आप शर्मिंदा हो सकें या  जिसके तईं (प्रति )आपकी जवाबदेही मुक़र्रर की जा सकती हो….!

आप इंसानी ख़ाबों, उम्मीदों जज़्बातों के क़ातिल भी हैं और मुंसिफ़ (जज) भी…! ख़सारे (घाटे ) में तो मुल्क के वे हज़ारों, करोड़ों लोग रहे, जिन्होंने आप पर (उस “बराबरी” के नेज़ाम पर) यक़ीन करके आपके क़दमों में, अपनी ज़िंदगियाँ बिखेर दी हैं. मगर उनके हाथ लगा क्या ?

मायूसी, उपेक्षा, ज़िल्लत, धोखा, बदनामी (जांबाज़ों की ख़ुदकुशी)?
जो आपके विचारधारा की पर्ची में नहीं आए वे भी आप ही पे भरोसा किये अपने-अपने (स्व चिन्हित) महाज़ (क्षेत्र) पे, अपने फ़र्ज़ को अंजाम देने में लगे हुए थे ये मानकर कि सियासत में “आप” तो हैं  ही.
“बावले” थे वो सभी, जो ये ख़ाब पाले हुए थे कि उनकी “बोई फ़सलों” को काट कर संसद और विधान सभाओं में “आप” ही ले कर जायेंगे और मुल्क की तक़दीर संवारेंगे.
मगर आप, उन्हें जोड़ने के बजाए, अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझते रहें, मनुवादी वर्ण व्यवस्था आधारित जातियों में गले तक धंस चुके सामाजिक व्यवस्था की  बंजर ज़मीनों को अपने ख़ून पसीने से सींच कर, सवालों के बीज बोकर, उनके बीच उग आए खर-पतवार उखाड़कर, जो फ़सल देश के मेहनतकश हमारे ग़रीब, शिक्षित मगर जागरूक नौजवान उगाते रहे उस युवा जमात को इंसानी समाज की सियासत के गुर सिखाने की ज़िम्मेदारी तो आपकी ही  थी न कॉमरेड….! क्या आपने इसमें कुछ हाथ बंटाया?
अरे पहल करना तो दूर आपने तो उनकी तरफ से आयी हर पहल को अपने “आसमानी” ज्ञान के शुचिता की कसौटी पे कसने के बहाने उसे बेइज़्ज़त करके अपनी ड्योढ़ियों से भगाया है कॉमरेड.
दिमाग़ पे ज़रा ज़ोर डालकर बताइये, आम लोगों की रोज़मर्रा की परेशानियों के लिए एडमिनिस्ट्रेशन से जूझ रहे ऐसे  “ग़ैर राजनितिक” नौजवानों को नागरिक सियासत के लिए तैयार करने की कोई स्वतः पहल आप लोगों ने कभी की?
ऐसे युवाओं की मित्रता में रहें कुछ कॉमरेडों की (पार्टी या आपके मास आर्गनाइज़ेशन ) की ऐसी सलाह आने पर मज़ाक़ न उड़ाकर उस “छोटे” कॉमरेड का उत्साह वर्धन करने के लिए कुछ किया आपने?
देश के विशाल  “अन-ऑर्गनाइज़” सेक्टर को सियासी ज़हनियत से ट्रेंड करने के लिए कोई क्लास, कोई ट्रेनिंग, कोई सेमिनार, कोई गोष्ठी का सिलसिला “लगकर”  मोहल्ले, गांव, तालुका, ब्लॉक, जिला, राज्य स्तर पर हफ्ता, पखवाड़ा, महीना आधारित सिर्फ़ “यही” करने की ज़िम्मेदार टोली का गठन  कभी किया आपने?
आपने तो सांस्कृतिक ग्रुपों के ज़रिये, गैर राजनैतिक युवाओं को जागरूक करने वाला, छहमाही या सालाना  कोई टारगेट भी निश्चित नहीं किया…! ये सब तो आपके लिए नचनिया, गवैया काम था जिसके लिए आपके “मार्क्सवाद” में कोई सम्मानजनक जगह कभी भी नहीं रही.
अपने झंडे के बगैर, किसी युवा कल्चरल ग्रुप से बात करने, कोई एक्टिविटी करने के लिए किसी राज्य, किसी शहर, किसी गांव में आपने कभी वक़्त निकाला…??  अरे, ऐसे संगठनों से, उनके  किसी कार्यक्रम में आपके भाषण देने का न्यौता आने पर आप उन्हें “आईएसआई” का एजेंट कहकर मज़ाक़ उड़ाते, उनका अपमान करते रहे हैं कॉमरेड.

नर्मदा बचाओ आंदोलन का नाम तो आपने सुना ही होगा. वही जो पिछले 30 बरस से लगातार ज़िंदा है. इसी तरह बहुत से संगठन हैं जो सुचना के अधिकार, शिक्षा का अधिकार, पानी का अधिकार, पीने के साफ़ पानी का अधिकार, सफ़ाई कामगार, मानव अधिकार जैसे सैंकड़ों ऐसे राईट बेस्ड ऑर्गनाइज़ेशन हैं जो देश के भीतर काम कर रहे हैं..  “बक़ौल आपके” बेशक वे “लेफ़्टिस्ट” नहीं हैं मगर वे सभी राइटिस्ट भी नहीं हैं कॉमरेड.  आपने मुल्क और उसके बाशिंदों की पीठ, पेट पे छुरा ही  नहीं भौंका है बल्कि ए के 47 से भून डाला है सबको.

कॉमरेड्स अपनी लफ़्फ़ाज़ियों के बल पे आपने मुल्क को बर्बर लकड़बग्घों, जंगली सूअरों और इंसानी गोश्त के भूखे भेड़ियों के आगे परोस दिया है.
महज़ 5 बरस पहले जिस “फ़ासिस्ट” पार्टी को आपके यहां 2 फ़ीसद वोट के लाले थे उसने ढ़ाई दशक तक क़ायम रहे आपको बहुमत से जिस तरह बेदख़ल किया है, ये वाक़ई शर्मनाक है.  बतौर एक राजनितिक पार्टी पहले आप बंगाल और अब त्रिपुरा से निकाले गए हैं..मुआफ़ कीजियेगा कॉमरेड्स, अब आपके भीतर,  सामाजिक संगठन चलाने, उसे समयानुकूल खाद, पानी देने, उसकी परवरिश करते हुए लगातार ज़िंदा रखने तक की तो सलाहियत  बची नहीं है, राजनितिक संगठन क्या ख़ाक ज़िंदा रक्खेंगे आप… ! क्या आपको नहीं लगता कि कुछ बरसों  “चुनावी” राजनीती से छुट्टी लेकर 21 वीं सदी के नए “राजनितिक गुर” आप  सबको सीखने की जरूरत है?
देश तो देश है, हर दौर से जैसे तैसे निकल ही आता है. ये देश भी निकल आएगा कॉमरेड. मगर उस मानवीय “विचारधारा” को आपके “शिकंजे” से निकलने और दोबारा अपने असली जलवे में निखर कर आने में अब बहोत वक़्त लगेगा. तब तक बहोत पानी भी बह चुका होगा. बेशक हम नहीं होंगे. मगर, आप भी कहाँ बाक़ी रहेंगे कॉमरेड.
लेकिन शुचिता और श्रेष्ठता के दम्भ में, जानबूझकर किए गए आपके तमाम सामाजिक गुनाहों, अपराधों के निशानात सदियों तक बाक़ी रहेंगे  और बाक़ी रहेंगे उससे उपजे  तानाशाही नृशंसता के क़िस्से भी याद रखियेगा आपकी आने वाली पीढ़ी सिर्फ़ आपको इस गुनाह का ज़िम्मेदार ही नहीं ठहराएगी बल्कि आपके नाम पर ……गी भी…!

ज़ुलैखा ज़बीं

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