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एक महान लेखिका जिसका अंतिम लेख सुसाइड नोट था

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ब्रिटेन की महान लेखिका वर्जिनिया वुल्फ का 25 जनवरी को 136वां जन्मदिन था. वर्जिनिया वुल्फ के सम्मान में उनके जन्मदिवस के अवसर पर गूगल ने उनका डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी . वुल्फ का जन्म लंदन के केनसिंगटन में 25 जनवरी, 1882 में हुआ था. अपने जीवन में उन्होंने कई कहानियां लिखी, जिनपर बाद में फिल्में भी बनाई गईं. वर्जीनिया लेखन की दुनिया की उन शुरुआती आवाज़ों में से एक हैं, जिन्होंने औरतों के हक़ और आज़ादी की बात की.
वर्जनिया वुल्फ के पिता सर स्टीफन इतिहासकार और पर्वतारोही और मां जूलिया स्टीफन प्रसिद्ध सुंदरी थीं. सर स्टीफन और जूलिया ने साक्षर और सर्व-संपन्न परिवार में अपनी बेटी को जन्म दिया था. वर्जिनिया वुल्फ की मां की 1895 में मौत हो गई थी, जिसके कारण वह मानसिक बीमारी से गुजरने लगी थीं.
वर्जिनिया वुल्फ ने बहुत छोटी सी ही उम्र में लेखन की शुरुआत कर दी थी. लेखन की प्रतिभा उन्हें विरासत में मिली थी. उनकी पहली किताब 1904 में पब्लिश हुई थी, उसी साल जब उनके पिता की मौत हुई थी. पिता की मौत के बाद वे और ज्यादा टूट गईं .हालाँकि इसके अगले ही साल वर्जिनिया वुल्फ ने टाइम्स लिटररी सप्लीमेंट के लिए लिखना शुरु कर दिया. 1912 में उनकी शादी हो गई और उसके बाद उन्होंने अपने पति लियोनॉर्ड के साथ लंदन के लेखकों के बहुत ही प्रतिष्ठित ब्लूम्सबरी ग्रुप में काम करना शुरु किया.
28 मार्च 1941 के दिन इस प्रसिद्ध लेखिका ने नदी में छलांग लगा के आत्महत्या कर ली. दरअसल वर्जीनिया के पिता एक यहूदी थे और उस दौर में, जब वर्जीनिया ने आत्महत्या की, यहूदियों के ऊपर घनघोर अत्याचार हो रहे थे. हिटलर और उसकी नाज़ी सेना कर रही थी. लाखों यहूदियों को ‘छद्म-राष्ट्रवाद’ के चलते मारा जा रहा था. वर्जीनिया, जो पहले से ही डिप्रेशन में थी, इस सबको नहीं झेल पाई और अपनी ज़िंदगी को ख़त्म कर दिया.
लेकिन आत्महत्या करने से पहले उसने सुसाईड नोट लिखा. अपने पति के लिए. जिसमें उसने लिखा कि ‘मैं ये (सुसाइड नोट) भी ठीक से नहीं लिख पा रही हूं’. आइए पढ़ते हैं कि और क्या लिखा था उसने अपने पति के लिए लिखे अपने सुसाइड नोट में:
प्रिय,
मुझे लगता है कि मैं फिर से पागल हो रही हूं. मुझे नहीं लगता कि हम उस भयावह दौर से फिर से गुज़र पाएंगे. और मैं इस बार स्वस्थ नहीं हो पाऊंगी. मैं तरहतरह की आवाज़ें सुनने लगी हूं. और मैं किसी चीज़ पर ध्यान नहीं लगा पा रही हूं. इस स्थिति में जो भी सबसे बेहतर विकल्प हो सकता था मैं वही चुन रही हूं.
तुमने मुझे वो सब खुशियां दी हैं जो संभव थीं. तुम हर तरह से वो सब कुछ करते थे जो तुम कर सकते थे. मुझे नहीं लगता कि इस भयानक बीमारी के ख़त्म होने से पहले दो लोग ख़ुशीख़ुशी रह सकते हैं. मैं अब और नहीं लड़ सकती. मुझे पता है कि मैं तुम्हारी जिंदगी खराब कर रही हूं.
देखो मैं ये भी ढंग से नहीं लिख पा रही हूं. मैं पढ़ नहीं पा रही हूं. अपनी ज़िंदगी की सारी खुशियों का श्रेय मैं तुमको देती हूं. तुम मेरे साथ हमेशा धैर्य रखते हो और अविश्वसनीय रूप से अच्छे हो. मैं यह कहना चाहती हूं कि सब लोग इसे जानते हैं कि अगर किसी ने मुझे बचाया होता, तो वो तुम ही होते. मुझसे सब कुछ छूटता चला गया एक तुम्हारी अच्छाइयों को छोड़. मैं अब तुम्हारी ज़िंदगी और खराब नहीं कर सकती. मुझे नहीं लगता कि दो लोग हमारे बराबर खुश रह सकते थे.
वर्जीनिया वुल्फ
लेकिन 25 जनवरी 1882 को जन्मीं वुल्फ अपनी मौत से पहले पूरी दुनिया, और खास तौर पर स्त्रियों को ‘अ रूम ऑफ़ वंस ऑन’ (खुद का एक कमरा) जैसी किताब का तोहफ़ा दे गई. ‘अ रूम…’ के अलावा भी उन्होंने कई निबंध, उपन्यास और कहानी संग्रह लिखे. जैसे – ऑर्लैंडो, मिसेज़ डेलोवे, टू दी लाईटहाउस आदि.
इन किताबों पर बन चुकी हैं फिल्म्स
वर्जिनिया वुल्फ की किताब ‘ऑरलैंडो’ पर 1992 में फिल्म बनी थी जिसमें टिंडा स्विल्टन ने काम किया था. फिल्म को सैली पोटर ने डायरेक्ट किया था और आईएमडीबी पर इसे 7.2 की रेटिंग हासिल है. यही नहीं, ‘मिसेज डैलोवे’ पर फिल्म भी बन चुकी है. 1997 में बनी इस फिल्म को काफी पसंद किया गया था और इसे बेहतरीन फिल्म भी बताया गया था. उनकी कई कहानियों को टीवी पर उकेरा गया. उनके लेटर्स पर ‘वीटा और वर्जिनिया’ पर पोस्ट प्रोडक्शन में काम चल रहा है.
उनके लेखों और विचारों के चलते, जो समय के साथ-साथ और फैलते और स्वीकृत होते गए, आज के दौर में स्त्री विमर्श की बात वर्जीनिया के बिना वैसे ही अधूरी है जैसे बाबा साहब के बिना दलित विमर्श की.
आइए पढ़ते हैं कुछ बढ़िया कोट्स, वर्जिनिया के:
# कोई अच्छी तरह से नहीं सोच सकता, अच्छी तरह से प्रेम नहीं कर सकता, अच्छी तरह सो नहीं सकता, यदि उसने अच्छी तरह से खाया नहीं हो
# आप जीवन को नज़रअंदाज करके शांति नहीं प्राप्त कर सकते
# जो कुछ भी टुकड़े आपके रास्ते में आएं उन्हें ही व्यवस्थित करें
# इतिहास के अधिकांश हिस्से मेंअज्ञातदरअसल एक महिला थी
# यदि एक महिला को उपन्यास लिखना है तो उसके पास पैसा और खुद का एक कमरा होना चाहिए
# एक महिला होने के नाते मेरा कोई देश नहीं है. एक महिला होने के नाते पूरी दुनिया ही मेरा देश है
# बाहर से कोई दरवाज़ा बंद कर दे तो ये कितनी अप्रिय स्थिति है, लेकिन उससे भी अप्रिय, मुझे लगता है, वो स्थिति है जब दरवाज़ा अंदर से बंद हो.  
# कुछ लोग पुजारियों के पास जाते हैं, दूसरे कविता के पास; मैं अपने दोस्तों के पास
# अगर आप अपने बारे में सच्चाई नहीं बताते हैं तो आप इसे(सच्चाई को) औरों के बारे में भी नहीं बता सकते हैं.
 
 

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