किसी भी राष्ट्र के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान शिक्षा का रहता है शिक्षा समझ का विकास करती है निर्णय लेने की क्षमता,नीति निर्माण में सहायक हिती है।
राष्ट्र का वर्तमान और भविष्य दोनों शिक्षा के आधार पर ही टिके होते है इसलिए राष्ट्र सरकार के यह दायित्व बनता है कि बिना किसी भेदभाव के सबको अच्छी और समान शिक्षा देने की व्यवस्था करे परन्तु दिल्ली विश्वविद्यालय में ऐसा दिखाई नही देता ,भारत सरकार पर निजीकरण की नीति अपनाने के आरोपों की एक और बार यहाँ पुष्टि होती है।
दिल्ली विश्विद्यालय के ‘दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म’ के पांच वर्षीय कोर्स की फीस 3 लाख 88 हज़ार कर दी गई है। जो किसी भी निजी शिक्षा संस्थान से अधिक है।
जर्नलिज्म के कोर्स की पहली छमाही की फीस 39,500 व दूसरी छमाही की फीस 28,500 कर दी गई है साथ ही एहतियातन जमा राशि के रूप में 10,000 दाखिले के समय जमा कराने होंगे कुल मिलाकर एक वर्ष की फीस 77,500 रुपए होगी और पांच वर्ष के इस पूरे कोर्स की फीस का जामा 3,87,500 होता है।
यह राशि दिल्ली के किसी भी सरकारी कॉलेज में ली जाने वाली अधिकतम राशि होगी । जो कोई माध्यम वर्ग से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति नही दे पाएगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय के इस विभाग में फीस के अनुसार सुविधायें न के बराबर ही प्राप्त होती है दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में मात्र दो अध्यापक है जो अनुबंध पर कार्यरत है सवाल यह है जिस विभाग के पास अपने पूर्णकालिक अध्यापक भी न हो वहां आने वाली इतनी फीस का क्या किया जाएगा?
सीधे तौर पर यह शिक्षा में धांधली की तरफ इशारा करता है गरीब एंव माध्यम वर्ग की जेब खाली कर सरकारी तिजोरी को भर जा रहा है।
एक साधारण परिवार का बच्चा इतनी अधिक फीस का बोझ नही उठा सकता उच्च व कुलीन वर्ग तक ही यह व्यवस्ता सीमित रह जाएगी तो क्या गरीब या साधारण व्यक्ति से अब अच्छी शिक्षा भी छीनने का इरादा सरकार ने कर लिया है ? इस देश मे अगर सबके लिए एक कर व्यवस्था हो सकती है तो सबके लिये एक शिक्षा व्यवस्था क्यों नही हो सकती सभी को एक समान शिक्षा दी जाए जिससे सभी ऊना उचित विकास कर सके।
जर्नलिज्म के छात्रों ने इस बढ़ाई गई फीस का विरोध शुरू कर दिया है जिसमे राजनीतिक संगठनो का साथ भी उनको मिल रहा है, असंवेदनशील हो चुके प्रसाशन को जगाने का काम छात्र कर रहे है जब तक विश्विद्यालय प्रसाशन फीस को कम नही कर देता वह विरोध जारी रखेंगें।