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क्या भारतीय मीडिया ठहराने और छुपाने के बीच का फ़र्क नही जानता?

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मेरठ जनपद के मवाना क़स्बा मे मस्जिद मे ठहरी तब्लीग़ी जमाअत को मीडिया ट्रायल ने इस तरह से पेश किया जैसे यह कोई असामान्य घटना घट गई हो और यह तब्लीग़ी जमाअत, जमाअत न होकर कोई गैंग या गिरोह हो। सबसे पहले यह समझ लें कि तब्लीग़ी जमाअत है क्या ? तब्लीग़ी जमाअत एक ऐसी जमाअत है जो मस्जिदों मे रहकर अपना सारा समय, नमाज़, क़ुरान के अध्ययन, अल्लाह के ज़िक्र मे अपना सारा समय व्यतीत करती है और इसी बात के लिए दूसरे मुसलमानों को भी प्रेरित करती है। इसी सिलसिले मे तब्लीग़ी जमाअत भारत से विदेशों मे और विदेशों से भारत मे आती जाती रहती हैं और इसकी जानकारी स्थानीय विजिलेंस से लेकर विदेश मंत्रालय तक सबको रहती है ।

तब्लीग़ी जमाअत का सिलसिला भारत मे देश की आज़ादी से पहले से चल रहा है और हर सरकार के वक़्त मे चलता रहा है, यहां तक कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े बहुत से मुस्लिम विद्वान भी तब्लीग़ी जमाअत से जुड़े रहे हैं। ऐसी ही एक जमाअत विदेश से मवाना मे आई हुई है जिसमे सूडान, ज़बूति और कीनिया के कुल 10 लोग हैं।
लाकडाउन के चलते इस जमाअत को एक मस्जिद मे ठहरा दिया गया था तथा इनको दिल्ली भेजने के लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति मांगी गई। स्थानीय प्रशासन ने इन जमातियों के स्वास्थ्य की जांच कराई जिसमे सभी स्वस्थ मिले। स्थानीय प्रशासन ने इन जमातियों को इसी मस्जिद में रहने की हिदायत दी और लौट गए लेकिन थाने जाने के बाद तीन ऐसे स्थानीय लोगों पर मुक़दमा लिख दिया जिनका इस जमाअत से कोई सीधा संबंध नही। इनमे असलम एडवोकेट, डाक्टर नईमुददीन सैफ़ी और शहर क़ाज़ी मौलाना नफ़ीस अहमद ख़ान साहब हैं।



मवाना के मुसलमान हैरान हैं कि यह मुक़दमा क्यों दर्ज किया गया? क्योंकि देश के दूसरे हिस्सों की तरह ही मवाना मे हमेशा से विदेशों जमाअत आती जाती रही हैं, तथा सभी लोग लॉकडाउन के निर्देशों का भी पालन कर रहे थे इसीलिए जमाअत जिस मस्जिद मे ठहरी थी, उस मस्जिद मे भी ताला लगा दिया गया था जिस से बाहर का कोई आदमी मस्जिद मे न जा सके। इस सबके बाद भी स्थानीय लोगों पर और ऐसे लोगों पर क़ानूनी कार्रवाई जिनका इस जमाअत से कोई सीधा संबंध नही है, निराशाजनक है और यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव मे की गई लगती है। बाकी काम स्थानीय मीडिया की मानसिकता ने कर दिया अख़बारो ने ‘जमाअत’ शब्द इस्तेमाल न करके ‘विदेशी नागरिक’शब्द इस्तेमाल किया और मस्जिद मे ठहराना न लिखकर मस्जिद मे छिपाना लिख दिया।

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