सोशल मीडिया में एक पेपर की कटिंग वायरल हो रही है, जिसमे ये दावा किया जा रहा है. कि दारुल उलूम देवबंद ने फ़तवा दिया है, कि “शियाओं की दावतों में जाने से परहेज़ करें सुन्नी” . प्रथम दृष्टयः ये दावा शक पैदा करता है. कि क्या वास्तविकता में ऐसा कोई फ़तवा आया है.
जब हमने दारुल इफ़्ता (फ़तवा विभाग) देवबंद की वेबसाईट को अच्छे से चैक किया तो हमें वहां पर ऐसा कोई फ़तवा नहीं मिला.चूंकि पेपर कटिंग में किसी व्यक्ति के नाम का ज़िक्र है, उससे ये भी अनुमान लगाया जा सकता है, कि यह सवाल लिखित में किया गया हो. पर अभी तक वो लिखित फ़तवा पब्लिक प्लेस में नहीं आ पाया है. और उसके होने की पुष्टि नहीं हो पाई है.
क्या फतवे की आड़ में कोई साज़िश हो रही है?
दरअसल दारुल उलूम देवबंद से आने वाले फतवे आये दिन चर्चा में रहते हैं. पर चूंकि यह फ़तवे वाली खबर आने के बाद भारतीय मुस्लिम. खासतौर सेर उत्तरप्रदेश के मुस्लिमों में बिखराव की स्थिति बन सकती है. ऐसे में इस खबर को एक राजनीतिक स्टंट के तौर पर देखा जा रहा है. चूंकि शिया समुदाय के वोटर का एक हिस्सा भाजपा को वोट करता आया है. साथ ही भाजपा के सबसे बड़े मुस्लिम चारे अक्सर शिया ही हैं.
इसलिए ये अनुमान लगाया जा रहा है, कि इस तरह की ख़बरें चलवाकर उस पर डीबेट कराकर एक बड़ी साज़िश को अंजाम देने की तैयारी है.
2014 में सुब्रमणयम स्वामी ने कही थी शिया – सुन्नी मुस्लिमों में मतभेद पैदा करने की बात
जब 2014 का लोकसभा चुनाव का प्रचार अपने चरम पर था, तब भाजपा नेता स्वामी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था की हम मुस्लिम वोट बांटने के लिए शिया-सुन्नी विवाद को बढ़ावा देंगे. इस खबर के बाद अब वह बात सच होती दिखाई दे रही है. प्रधानमन्त्री मोदी के पिछले कुछ वर्षों में शिया समुदाय और सूफ़ीवाद को बढ़ावा देने की क़वायद से यही लगता है, कि अब भाजपा की रणनीति मुस्लिम समुदाय के विभिन्न फिरकों में सेंध लगाने की है.
क्या इस ख़बर को पब्लिश करने के पीछे कोई राजनीतिक साज़िश है ?
ऐसा देखा जाता है, कि मुस्लिमों के अन्दर विभिन फिरके कुछ ख़ास मौकों का खाना खाने से परहेज़ करते हैं, जोकि उनकी आस्था से जुड़ा हुआ मामला है. पर यदि उसे ख़बर बनाकर प्रचारित किया जाये तो उसके पीछे कोई राजनीतिक हित और कोई राजनीतिक मंशा ज़रूर जुड़ी हो सकती है.
क्योंकि शिया ही नहीं, खुद सुन्नियों के अन्दर विभिन्न फिरके से जुड़े लोग कुछ ख़ास मौकों और ख़ास क्रियाओं के साथ बनाया खाना नहीं खाते हैं. ये उनका निजी मामला है.
वैसे देवबंद के नाम से फैलाई जा रही खबर की पुष्टि नहीं हो पाई है. वास्तविक स्थिति फतवे की कॉपी देखकर ही पता चलेगी. अगर फ़तवा दिया गया है, तो उसमें किये गए सवाल और जवाब, दोनों को ही देखना अतिआवश्यक हो जाता है. क्योंकि अगर उन ख़ास मौकों की बात की गई हो, जहाँ पर बात आस्था की आती हो तो वह मामला पूरा ऊपर वाला मामला हो सकता है. अर्थात वो बिलकुल ही निजी मामला हो सकता है.
ऐसे में इस खबर का फैलाना ही किसी राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ती नज़र आती है. खैर जो भी सच्चाई हो पर इस ख़बर का अब बेहद ही राजनीतिक उपयोग आपको कुछ दिनों में नज़र आएगा.