भारत में गहराते कोयला संकट से कैसे निपटा जा सकता है

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विश्व स्तर पर यूरोप से लेकर अमेरिका तक उर्जा के संकट को झेल रहे हैं। जिसमें गरीब, विकासशील देश से लेकर विकसित राष्ट्र भी प्रभावित हो रहे हैं। कोयला संकट विश्व स्तरीय आयात और निर्यात को भी प्रभावित कर रहा है। ऊर्जा क्षेत्र के स्त्रोतों में बढ़ती कमी के कारण वैश्विक स्तर पर अनेक चुनौतियां बढ़ती जा रही है।

विश्व स्तर पर प्रथम कोयला उत्पादक देश चीन में कोयले की खनन उत्पादन में कमी के कारण देश के एक राज्य को बिजली के संकट का सामना करना पड़ा। जिसके कारण वहां के मॉल और दुकानें भी घंटो तक अंधेरे में डूबी रही और लोगों को आगाह किया गया कि भारी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का कम ही उपयोग करें।

पूरी दुनिया में प्राकृतिक गैस, कोयला और अन्य ऊर्जा स्रोतों की आपूर्ति में बढ़ती कमी के कारण यूरोप में प्राकृतिक गैस की कीमतें भी कई गुना बढ़ गई है। विश्व स्तर पर भारत दूसरा ऐसा देश है जो कोयला उत्पादक है और जिसका पांचवा स्थान कोयला भंडारण में है।

भारत के केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह का बयान

भारत के केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने पिछले हफ्ते अपने एक बयान के जरिए कहा कि कोयले का बढ़ता संकट देश की आर्थिक स्थिति के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है।  ऊर्जा संसाधन की बढ़ती कमी से चीन भी कई महीनों से जूझ रहा है। वर्तमान स्थिति को कंट्रोल करने के लिए आवश्यक है कि हम कोयले के उत्पादन में बढ़ोतरी करें और आयात में कमी।

कोयला मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि कोयले का उत्पादन 729 मिलियन टन और आयात 247 मिलियन टन था।  कोयले का आयात 2018 -19 में 235 मीट्रिक टन था और जो कि बढ़कर 2019 -20 तक 247 मीट्रिक टन हो गया था। कोयला महत्वपूर्ण खनन है ।जिसका आयात बढ़ता जा रहा है लेकिन उत्पादन घट रहा है। भारत में वर्तमान समय में बढ़ते कोयला संकट का यही कारण है।

प्रमुख कारण-

कोरोना महामारी ने सप्लाई चैन को तोड़ दिया था जिससे अर्थव्यवस्था को भारी धक्का पहुंचा है। क्लाइमेट चेंज के साथ मानसून भी इसके लिए जिम्मेदार है। देश में उभरता मिडिल क्लास जिसकी जरूरते बढ़ती जा रही है। जरूरतें बढ़ने के साथ-साथ बिजली की मांग भी बढ़ती है। देश में 135 प्लांट ऐसे हैं जहां से बिजली की सप्लाई होती है । कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक बढ़ती बिजली की खपत से लगातार पूर्ति कर पाना प्लांट द्वारा मुमकिन नहीं है क्योंकि कोयला उत्पादन घटता जा रहा है और बिजली की मांग 18% तक बढ़ चुकी है। विदेशी आयात और निर्यात भी प्रभावित है।

प्रभाव और चुनौतियां

ऊर्जा आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने वाली है। क्योंकि भारत में त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है। जिसमें दिवाली पर सभी घरों को सजाने के लिए लाइटों का उपयोग करते हैं और वही यूरोप में 25 दिसंबर  क्रिसमस बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दूसरी तरफ आने वाली सर्दियों में बिजली की खपत भी बढ़ जाती है। इसके साथ ही कीमतों में वृद्धि के कारण अर्थव्यवस्था पर भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव देखने को मिलेगा। वैश्विक दुनिया में  बढ़ते ऊर्जा के संकट से यूरोप और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में कीमतों में भी वृद्धि हो रही है। भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई देगा।

मध्य पूर्व के हिस्सों में बढ़ती अस्थिरता के साथ विभिन्न वैश्विक घटनाक्रम भी इसको प्रभावित करेंगे जिससे वर्तमान चुनौतियां बढ़ेगी। क्योंकि यमन और सऊदी अरब अपनी अंदरूनी समस्याओं को लेकर परेशान है। दूसरी ओर कुवैत और इराक की समस्या और ईरान और सऊदी अरब तो एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते। यही कारण है कि यहां से सांत्वना नहीं बल्कि चुनौतियां ही मिलेंगी।

राजनीतिक बदलाव-

अक्षीय ऊर्जा स्रोतों के बुनियादी ढांचे को अपनाना चाहिए। जिस तरह से विश्व स्तर पर सभी राष्ट्र क्लाइमेट चेंज को लेकर नीतियां बना रहे हैं उसी प्रकार से उर्जा के संकट को कम करने के लिए बेहतर नीतियों का बनना आवश्यक है। भारत में रिसर्च एंड डेवलपमेंट की कमी देखी गई है और दूसरा स्थानीय स्तर पर आज भी कोयला उत्पादन तकनीकी होता है क्योंकि आयात ज्यादा है। जिसमें उसका 25% आयात होता है और बाकी 75% घरेलू उत्पादक में प्रयोग किया जाता है।

संकट से कैसे बचा जा सकता है

फिलहाल कहा जा रहा है कि  भारत के पास इतना कोयला है कि वह आने वाले 100 वर्षों तक उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान संकट यही थमने वाला नहीं है यह आगे और भी बढ़ेगा।

जरूरी है जागरूकता-

सामाजिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाना क्योंकि एक नैतिक समस्या है जो आने वाले समय में धरती को भी बंजर बना सकती है। इसलिए अक्षीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को बढ़ाना और कोल इंडिया की एकाधिकारिता की नीति में बदलाव करने के साथ उसे पारदर्शी बनाना। 

नवाचार नीति के अंतर्गत इस क्षेत्र में आयरन और एलुमिनियम इंडस्ट्रीज को लगभग 50% मार्केट को देने की इजाजत होगी। कोयले को गैस में बदलने की भी तकनीक का उपयोग बेहतर है जिसे syn-gas कहते हैं। जो कि कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन से मिलकर बनती है। इसको उपयोग यूरिया ,फर्टिलाइजर ,केमिकल्स में भी किया जाता है। इस संकट से निपटने के लिए अक्षीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना चाहिए, जो कि अब तक भी शिशु अवस्था में है। अक्षीय ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प है।

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