अखबारों से गायब रहा दीप सिध्दू, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी ज़िक्र नही

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28 जनवरी : दिल्ली में हिन्सा के मुख्य आरोपी की खबर नहीं । आज की खबरों का सार, किसी को बख्शा नहीं जाएगा, दीप सिद्धू का नाम नहीं लिया जाएगा।

ट्रैक्टर रैली के संबंध में एक बड़ी खबर है कि भाजपा नेता सनी देयोल का करीबी दीप सिद्धू लाल किले के हंगामे के लिए जिम्मेदार है। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर आज दो कॉलम की एक छोटी सी खबर है। यह अंदर के पन्ने पर भी जारी है। इसका शीर्षक है, “फरार दीप सिद्धू ने कहा था पिक्चर अभी बाकी है …. 26 जनवरी को क्या होगा यह ईश्वर पर है”। बाद में उसने दो हुआ उसपर सफाई भी दी है और अखबार की खबर में उसके पुरानी फेसबुक पोस्ट की भी चर्चा है। आम अपराधियों के मामले में तुरंत एफआईआर और छापामारी शुरू हो जाती है और सबको पता होता है कि किसकी कार पलटेगी और कौन छापे में नहीं मिलेगा। ऐसे में दीप सिद्धू के मामले में अभी छापे पड़ने शुरू हुए हैं कि नहीं, एफआईआर हुई कि नहीं – ऐसी जानकारी देने वाली सिंगल कॉलम की खबर भी कई अखबारों में नहीं है। किसी को बख्शा नहीं जाएगा जैसी सरकारी खबरें भरी पड़ी हैं।

ऐसी हालत में आज किसानों के आरोप को द हिन्दू ने लीड बनाया है। मुख्य खबर का मुख्य शीर्षक है, “सरकारी साजिश से हिन्सा हुई : किसान”, यूनियनों ने हिन्सा के लिए एक गुट और अभिनेता (दीप सिद्धू) पर आरोप लगाया, शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन जारी रखने का प्रण किया। मुझे लगता है कि हिन्सा पर किसानों की बात ज्यादा महत्वपूर्ण है। और उसे प्रमुखता मिलनी चाहिए थी। लेकिन ज्यादार शीर्षक गोलमोल हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने फ्लैग शीर्षक लगाया है, राजधानी पर हमले के एक दिन बाद अधिकारियों और प्रदर्शनकारियों ने हिसाब लगाया तथा आगे की योजना बनाई। इसके साथ दो खबरें हैं। और आजकल की पत्रकारिता की निष्पक्षता यही है। पहला मुख्य शीर्षक है, “किसानों ने एक फरवरी का संसद मार्च स्थगित किया”। दूसरा मुख्य शीर्षक है, “किसी भी दंगाई को बख्शा नहीं जाएगा : पुलिस प्रमुख”। इसमें किसानों का पक्ष या उनकी खबर कौन सी है आप हिसाब लगाइए।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने सिंगल कॉलम में दीप सिद्धू पर एक खबर पहले पन्ने पर दी है। शीर्षक है, हिंसा का आरोपी दीप सिद्दू फरार। इस खबर का विवरण अंदर के पन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक भी टाइम्स ऑफ इंडिया जैसा ही है। उसमें बताया गया है कि अधिकारियों और नेताओं ने हिसाब लगाया। इसमें बताया गया है कि 25 एफआईआर हुई, 30 से ज्यादा किसान नेताओं के नाम एफआईआर में हैं। इसके साथ एक और खबर है, “यूनियनों में दरार, संसद मार्च स्थगित, तोड़ने की साजिश का आरोप”। एफआईआर में जिन 37 लोगों का नाम है उनमें योगेन्द्र यादव और मेधा पाटकर भी हैं और इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लीड के साथ छापा है। 37 नामों में दीप सिद्धू नहीं है पर इंडियन एक्सप्रेस ने 25 एफआईआर की बात की है और सिद्धू के खिलाफ एफआईआर की भी। जैसा मैंने पहले कहा है, जो पहली नजर में अभियुक्त नजर आए उसपर एफआईआर हो जाए तो अखबार आगे की कार्रवाई भी बताते रहे हैं। ऐसे में सिद्धू के मामले में किसी कार्रवाई की खबर नहीं है तो एफआईआर की खबर भी कहीं है, कहीं नहीं और कहीं चर्चा ही नहीं।

द टेलीग्राफ का पहला पन्ना सबसे अलग है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने मुख्य खबर बनाई है, हिन्सा के बाद आंदोलन में दरार; किसानों ने एक फरवरी का मार्च रद्द किया। इसके साथ दूसरी खबर का शीर्षक है, किसी को बख्शा नहीं जाएगा। द टेलीग्राफ बाकी चार अखबारों से बिल्कुल अलग है। अखबार की मुख्य खबर है, बड़ा अपराध चुनिए – 61 दिन, 1.5 लाख किसान, 1.1 डिग्री सेल्सियस, बेनतीजा 11 बैठकें, 150 मौतें । इसके साथ अखबार ने दूसरा विकल्प दिया है, लाल किले की टूटी गेट और एक तस्वीर है जो टूटे-फूटे टिकट काउंटर की है। इसमें कोई गाड़ी भी पलटी हुई दिखाई दे रही है। अखबार के पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है। मुख्य शीर्षक के बाद आधे से कम में एक खबर का शीर्षक है, परेड हमने निकाली थी इसलिए आरोप हम स्वीकार करते हैं। सिंगल कॉलम की एक खबर है, शाह शांत, किसान नेताओं के खिलाफ एफआईआर।

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