क्या कोरोना की अल्पमृत्युदर को हल्के में लिया जाना चाहिए ?

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कोरोना का डर अब लगभग हर एक के दिल में थोड़ा या ज़्यादा है। बुज़ुर्गों में ज़्यादा है और युवाओं में कम। वजह है मृत्यु का आंकड़ा। लोग कह रहें हैं केवल 1 से 3 प्रतिशत ही तो है। और वह भी अधिकतर मरने वाले बुज़ुर्ग हैं या फिर किसी जीर्ण रोग से शीर्ण हो चुके रोगी। हम युवा क्यों डरें?

दोस्तों यह सत्य है कि इस वायरस से मरने वालों का प्रतिशत काफी कम है। मृत्युदर कम होना ही इसके प्रति हमें लापरवाह बनाता है। लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि हमारी लापरवाही महामारी की शक्ति बन जाती है।यदि हम आंकड़ों को इस नजरिए से देखें कि मान लिया जाए आखिर तक देश में 100000 लोगों को कोरोना हुआ और उसमें से 3000 की मृत्यु हो गई। आप और हम कहेंगें कि ठीक है इतने बड़े देश में चलता है। लेकिन यदि यह रोग 100 करोड़ देशवासियों में फैल जाए तो आंकड़े सीधे 3 करोड़ मृत्यु की बेहद डरावनी तस्वीर पेश करेंगे। यदि हम लापरवाही करते हैं तो एक बड़ी आबादी हम खो देंगे। वे हमारे अपने होंगे। और जो लोग कोरोना से ठीक होकर बाहर निकलेंगे वे भी क्या मानसिक रूप से पहले जैसे होंगे? शायद नहीं?

क्या इस महामारी को ही प्राथमिकता दे देकर हम लोगों को दूसरे रोगों से मरने के लिए बेबस नहीं छोड़ देंगे? शायद हाँ। क्या उस हाहाकार की आप कल्पना कर सकते हैं? शायद नहीं। क्या इस स्थिति से उत्पन्न भुखमरी और लूटपाट के नज़ारों की आप कल्पना कर सकते हैं? शायद नहीं। यह बेहद डरावना है। आप कह रहें होंगे कि प्लीज् हमें डराना बन्द कीजिए। तो लीजिए कर दिया मैंने आपको डराना बन्द। अब आप भी मेरी एक विनती मानिए कि आप लापरवाही करना बंद कर देंगे। डरिए कम से कम  और सावधानियां रखिए ज़्यादा से ज़्यादा।

फ़िलहाल तो हम अच्छी स्थिति में हैं। अभी हमारे देश में यह प्रति 10 लाख पर 5 लोगों में फैला है। लेकिन यह पिछले एक दिन में 3.8 से 5 पर पहुंचा है। कम्युनिटी स्प्रेड के मामले अभी तक बड़े स्तर पर सामने नहीं आए हैं। कुछ मुख्यमंत्री लेकिन इस बात को कह रहें हैं कि कम्युनिटी स्प्रेड होने लगा है। जो चिंतनीय है। हम भारतीय ही दूसरे भारतीयों को बचा सकते हैं। हम ही एक दूसरे की ढाल हैं। आओ हम प्रेम के एक सूत्र में बन्ध कर इस महामारी से सबको बचा लें

डॉ अबरार मुल्तानी

लेखक और चिकित्सक

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