कविता एवं शायरी

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कविता – कुछ मुसलमान भी , सीने से लगाने होंगे – "सतीश सक्सेना"

  • March 27, 2017

इनके आने के तो कुछ और ही माने होंगे ! जाने मयख़ाने के, कितने ही बहाने होंगे ! हमने पर्वत से ही नाले भी निकलते देखे ! हर जगह...

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कविता – बस स्मृति हैं शेष

  • March 23, 2017

अति सुकोमल साँझ- सूर्यातप मधुर; सन्देश-चिरनूतन, विहगगण मुक्त: कोई भ्रांतिपूर्ण प्रकाश असहज भी, सहज भी, शांत अरु उद्भ्रांत… कोई आँख जिसको खोजती थी! पा सका न...

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गज़ल – गुज़र गई है मेरी उम्र खुद से लड़ते हुए – "ख़ान"अशफाक़ ख़ान

  • March 3, 2017

गुज़र गई है मिरी उम्र खुद से लड़ते हुए मुहब्बतों से भरे वो खतों को पढ़ते हुए धुएं की तरह बिखरता रहा फज़ाओं में के उम्र...

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ग़ज़ल- तू अपनी जान पे तलवार बन के बैठा है अमीर हो के भी नादार बन के बैठा है – "ख़ान"अशफाक़ ख़ान

  • February 20, 2017

तू अपनी जान पे तलवार बन के बैठा है अमीर हो के भी नादार बन के बैठा है मेरी अना ने ही मगरूर कर दिया मुझको...

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कविता: नील में रंगे सियार, तुम मुझे क्या दोगे ? – सतीश सक्सेना

  • October 10, 2016

अगर तुम रहे कुछ दिन भी सरदारी में , बहुत शीघ्र गांधी, सुभाष के गौरव को गौतम बुद्ध की गरिमा कबिरा के दोहे , सर्वधर्म समभाव...