कल लाल किले से बोलते हुए मोदीजी ने कहा ”आत्मनिर्भर भारत की एक अहम प्राथमिकता है- आत्मनिर्भर कृषि और आत्मनिर्भर किसान’, मोदी ने आगे कहा कि साथ ही किसानों को अपनी इच्छा से कहीं भी उपज बेचने की अनुमति देने के लिए जरूरी सुधार किए गए हैं।
पांच जून 2020 को जारी कृषि सम्बन्धी अध्यादेशों द्वारा भारत सरकार ने खेती में तीन बड़े कानूनी बदलाव कर दिए गए। इन कानूनी बदलावों का प्रभाव यही होगा कि किसान अब बाजार में अकेला खड़ा होगा, उसे सरकार का सहारा नहीं होगा, एक ओर छोटा किसान और दूसरी ओर उसके सामने बड़े-बड़े मल्टी नेशनल कारपोरेट, अब भारत की कृषि किसके अधीन होगी स्वंय समझ लीजिए।
कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) एक्ट ओर आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA) में परिवर्तन कर कॉन्ट्रैक्ट खेती को सुगम बना दिया गया है। भारत जैसे विशाल आबादी और बड़ी बेरोजगारी वाले देश में कम्पनियों की अनुबंध आधारित खेती हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी।
पिछले कई सालों से मोनसेंटो , पेप्सिको , सिजेन्टा ओर कारगिल्ल जैसी बहुराष्ट्रीय खाद्य कंपनियां लगातार इस पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, कि भारत मे कृषि को अपने नियंत्रण में कैसे लाया जाए ? कैसे भारत जीएम फसलों की उत्पादन की एंट्री कराई जाए ?ओर कोरोना काल मे बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ओर मोदी सरकार के गठजोड़ ने उन्हें यह अभूतपूर्व अवसर उपलब्ध करा दिया है।
अब ‘आत्मनिर्भर किसान’ के नाम पर ‘कम्पनी द्वारा खेती का कानून’ लागू किया जा रहा है और भारत का बुद्धिजीवी वर्ग कोरोना काल मे वैज्ञानिक फंडों की बमबारी से इतना हतप्रभ है कि वह समझ ही नही पा रहा है कि यह हो क्या रहा है, वह उन लोगो से लड़ाई लड़ रहा है। जो कोरोना को हॉक्स कह रहे हैं और उधर अमेरिकी टोलेटेरियन पूंजीवाद भारत के बुद्धिजीवियों की मूर्खता पर हँसते हुए बहुत आसानी से मोदी सरकार के साथ गठजोड़ कर के भारत के सबसे बड़े सबसे विस्तृत उद्योग ‘कृषि’ पर कब्जा जमा रहा है।
यह ‘बाटो ओर राज करो’ युग की पुनर्वापसी है यह ईस्ट इंडिया कम्पनी की पुनर्वापसी है यह चंपारण में नील की खेती की पुनर्वापसी है और अफ़सोस की बात यह है कि अब हमारे पास कोई गाँधी भी नही है।