मैं गौरी लंकेश को कल के पहले नहीं जानता था, पर अब जान गया. अधिकांश लोग सवाल करते है की ये गुस्सा किस बात का ? क्या बदल गया है ? बोलने की आज़ादी तो सबको है ! तब मेरे एक मित्र कहते है की बोलने की आज़ादी तो है, पर बोलने के बाद आज़ादी नहीं है !
ये अपने आप में बड़ा ही विस्मयकारी बोध नज़र आता है. जब तक ये आप पर नहीं बीतती तब तक आप इसका एहसास नहीं कर पाते. देश में असहिष्णुता और धार्मिक उन्मांद किस कदर बढ़ा है इसका अंदाज़ा लगाना पाना भी बहुत मुश्किल है.
कुछ दिनों पूर्व फेसबुक पर एक पोस्ट ने ऐसा बवाल बना दिया कि समझ ही नहीं पा रहा था की क्या अपने विचार लिखना भी गुनाह बन गया है.
आप यदि अपने ही द्वारा माने जा रहे किस धर्म में व्याप्त हो रही कुरीति के बारे में लिखे तो कहा जाता है की आप ऐसा कैसे कर सकते है ? दूसरों के धर्म पर तो आप चुप रहते है ? उनके बारे में भी लिखो ? चलो भाई यहाँ तक तो ठीक है. यदि आप सरकार से सवाल करते है तो आपकी विचारधारा वाली सरकार ने क्या किया ? आप जैसे बुद्धिजीवियों ने देश को ख़राब कर रखा है ! आपको पकिस्तान भेज देना चाहिए ! आप देश द्रोही हो !
ये सब तब है, जब मेरा दायरा कुछ सौ पाठकों तक है सीमित है, फिर तो गौरी लंकेश देश में व्याप्त थी, तब तो उनके साथ सोच सकता हूँ घर परिवार से लेकर दोस्त जानने वाले सब आपके विरुद्ध हो जाते है. मुश्किल से कुछ ही लोग आपको मिलते है जिनसे आप अपने विचार साझा कर पाते है.
जहाँ सार्वजानिक रूप से आप अपने विचार रखने की कोशिश करते है तो आपको भयभीत करने से लेकर दबाव बनाने तक के सारे पैतरे अपनाये जाते है. अगर इसे आप भय युक्त वातावरण नहीं कहते तो किसे कहेंगे ?
एक संकुचित विचारधारा और खुले वातावरण से अपनी शक्ती के क्षीण होने से डरे लोगो का समूह जो आज देश में कुछ लोगो तक अपनी सोच फ़ैलाने कामयाब हो चूका है उसका बोल बाला है.
पर अधिक समय ये स्थितियां नहीं रहेगी हम डरेंगे नहीं और न चुप होंगे. बोलेंगे वही जो सही लगता है, और उसका विरोध करेंगे जो गलत है. ये हर उस इंसान को सच्ची श्रधांजलि होगी जो एक बेहतर प्रगतिशील समाज का सपना देखता है.
चुप रहना मुर्दों की निशानी है हम तो बेताब है असर आवाज़ का देखने के लिए. सोचते रहिये …. बोलते रहिये … जिंदा होने का एहसास होगा.
#Iamgaurilankesh