किसान आंदोलन पिछले आठ महीनों से जारी है, जिसमें किसान अपनी मांगों को लेकर अभी भी अड़े हुए हैं। कल यानी रविवार के दिन मुजफ्फरनगर में बहुत बड़े स्तर पर महापंचायत का आयोजन किया गया था। जिसमें एक बार फिर केंद्र सरकार पर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की गई थी। इस महापंचायत को संबोधित करते हुए, राकेश टिकैत ने कहा कि हम तब तक आंदोलन करना नहीं छोड़ेंगे जब तक की सरकार इन कानूनों को वापस नहीं ले लेती।
विपक्ष की कई राजनीतिक पार्टियों ने भी इस किसान आंदोलन को अपना समर्थन दे चुकी हैं। लेकिन अब खुद सत्तारूढ़ दल के सांसद वरुण गांधी भी किसानों का समर्थन करते हुए दिखाई दे रहे हैं। हालांकि वरुण गांधी का किसानों का खुलकर समर्थन करना बीजेपी को भारी पड़ सकता है। क्योंकि इस समय यूपी में इलेक्शन का माहौल है और उन्हीं की पार्टी के द्वारा इस तरह के बयान उन्हें भारी पड़ सकते हैं।
किसान हमारे अपने हैं-
वरुण गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मुजफ्फरनगर में लाखों किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। वे हमारे अपने ही खून हैं। हमें फिर से उनके साथ सम्मानजनक तरीके से फिर से जुड़ने की जरूरत है। उनके दर्द और उनके नजरिए को समझें। जमीन तक पहुंचने के लिए उनके साथ जुड़ना बहुत ही जरूरी है।
आपको बता दें कि बीजेपी सांसद वरुण गांधी सत्तारूढ़ दल के इकलौते ऐसे नेता हैं जिन्होंने बीजेपी के अब तक किसानों का खुलकर समर्थन किया है। हालांकि अकसर उन्हें सरकार के खिलाफ बोलते नजर आते रहे हैं जिससे पार्टी को काफी नुकसान भी होता है। इनके बयान हमेशा से ही चर्चा का विषय रहे हैं और जिसमें पांच बयान बहुत महत्वपूर्ण है।
-साल 2014 में वरुण गांधी भाजपा के पश्चिम बंगाल के प्रभारी थे। कोलकाता में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी जी की रैली थी जिससे उन्होंने खुद ही सारा कार्यभार संभाला था। अगले दिन ही उन्होंने इस रैली को नाकाम बताया था।
-2014 में सुल्तानपुर लोकसभा सीट से भी वरुण चुनाव लड़ने गए तो पीलीभीत से अपने कार्यकर्ताओं को साथ ले गए। उन्होंने स्थानीय भाजपा नेताओं को ज्यादा तवज्जो नहीं दी।
-2015 के दौरान भी कानपुर में उन्होंने बीजेपी पार्टी में युवाओं को आने का मौका कम मिलता है ये कहकर भी विवादों में रहे थे।
-इसके अलावा 2017 में भी उन्होंने इंदौर में अमीरों को तो रियायत दे दी जाती है लेकिन गरीबों को जान देनी पड़ती है इस तरह के बयान से भी वह विवादों में रहे थे। 2017 को शरण देने के मामले को लेकर भी उनका नाम चर्चा में रहा था।
दिल्ली सीमाओं पर जारी रहेगा धरना
इसी बीच किसानों का कहना है कि वह तब तक दिल्ली के बॉर्डर पर धरना जारी रखेंगे, जब तक की सरकार इस काले कानून को वापस नहीं ले लेती। उनका कहना है कि चाहे इसमें हमारी मौत ही क्यों ना हो जाए, हम आखरी सांस तक काले कानूनों के खिलाफ लड़ेंगे। तब तक यहीं बैठे रहेंगे। स्वतंत्रता भी हमें 90 सालों में जाकर मिली थी। किसानों का यह संघर्ष जारी रहेगा जब तक कि केंद्र सरकार इसे वापस नहीं ले लेती।
गौरतलब है कि कृषि उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य विधेयक 2020 में पारित हुआ था। सरकार का कहना है कि इस प्रस्तावित कानून का उद्देश्य किसानों को अपने उत्पाद नोटिफाइड एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमिटी यानी तय मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है। इसका लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिए प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है।
जबकि किसानों का कहना कि इस प्रकार से तो वो पूर्ण रूप से उद्योगपतियों के अधिन हो जाएंगे। जिससे उनकी फसल की कीमत भी कब मिलेगी जो कि उनके लिए घाटे का सौदा है।