मानसिकता समझिए। बिलाल अहमद वानी नाम का एक शख़्स शताब्दी एक्सप्रेस में बिना टिकट पकड़ा गया। उसने टीटी को बताया कि वो ग़लत ट्रेन मे चढ़ गया है और उसके साथी दूसरी ट्रेन में रह गए।
टीटीई ने देरी न करते हुए पुलिस को बताया कि उसने बिना टिकट कश्मीरी पकड़ा है। जीआरपी से मैसेज फ्लैश हुआ कि शताब्दी एक्सप्रेस से कश्मीरी आतंकवादी पकड़ा गया है। यूपी एटीएस बुला ली गई। ख़बर मीडिया को भी दी गई।
साथ ही बताया की एटीएस पकड़े गए आतंकी के दो साथियों को गिरफ्तार करने दिल्ली जा रही है। हर तरफ जश्न के नगाड़े पीट दिए गए। इधर दिल्ली मे साथी से बिछड़ते ही बाक़ी दो कश्मीरियों ने दिल्ली पुलिस के अलावा अपने राज्य की पुलिस और परिचित नेताओं को भी ख़बर की।
यूपी एटीएस दिल्ली पहुंची तो उसके अरमानो पर पानी फिर गया। उसे बिलाल अहमद वानी को छोड़ना पड़ा। पानी सिर्फ एटीएस नहीं पत्रकारों के अरमानों पर भी फिरा जो मरे शेर पर पैर रखकर शिकारी की तरह फोटो खिंचवाना चाहते थे।
इधर बिलाल की ख़ता सिर्फ इतनी थी कि वो कश्मीरी है और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। मीडिया के साथी इस अभिन्न अंग के निवासियों को कैंसर मानते हैं जिन्हे किसी भी तरह बस काट कर फेंक दिया जाना चाहिए। इतिश्री वंदेमातरम् कथा।