भोजपुरी सिनेमा का इतिहास 1962 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबे के निर्माण से शुरू होती है, आज 2018 तक जारी और आगे भी जारी रहेगी. बिदेसिया, बलम परदेसिया, नदिया के पार, दूल्हा गंगा पार के, ससुरा बड़ा पैसावाला, निरहुआ हिंदुस्तानी, सजना मंगिया सजाईदा हमार, मेहंदी लगा के रखना, ओढनिया कमाल करे, पंडित, बंधन टूटे ना, धरती कहे पुकार के, गंगा, राजा ठाकुर इत्यादि जैसी फिल्मे आयी.
फूहड़ सिनेमा और फूहड़ गानों का दौर तब से ज्यादा हो गया जब से भोजपुरी सिनेमा में एल्बम से गायको का आगमन हुआ, कोई भी भोजपुरी सिनेमा का गायक से बना कलाकार जो अच्छे मुकाम पर है. वो नही कह सकता है, कि उसने भोजपुरी सिनेमा में अश्लीलता नही परोसा है. कुछ तो ऐसे है, जिनकी रोजी रोटी अश्लीलता पर टिकी हुई है.
कुछ दिन पहले दो नायक एक नायिका के ऊपर गाये हुए अश्लील गाने की वजह से आपस मे उलझ गए थे. कुछ दिन पहले रविकिशन ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते है, कि भोजपुरी सिनेमा में अश्लीलता चिंताजनक है. लेकिन उसे चिंताजनक बनाया भी इनके जैसे लोगो ने क्या वो भोजपुरिया समाज की कसम खाकर कह सकते है कि उन्होंने जितनी फ़िल्म की उसमे अश्लीलता नही है. आखिर अश्लीलता का जिम्मेदार कौन है.
भोजपुरी सिनेमा से सांसद बने आज के आदरणीय मनोज तिवारी जी का धरती पुत्र का एक गाना और दृश्य याद आता है,जो अश्लीलता से परिपूर्ण है. कब देबू कहा देबू जब देबू जहाँ देबू लेबेला बानी तैयार बतावा कब देबू हो किसी लड़की को छेड़ने के लिए इतना ही काफी है. निसंदेह आगे की दो लाइन इस गाने को अश्लीलता से दूर कर देती है.
दिनेश लाल यादव अपनी नायिका के होठ इस तरह से चूसते है, जैसे आम चूस रहे इन्होंने भी गंदे गाने कम नही गाये है. पवन सिंह नायिका की धोड़ी में उंगली लगाना या हाथ फेरना इनका पहचान बन चुकी है. खेसारीलाल ये भोजपुरी की सबसे अश्लील गायक और नायक है लिखने के लिए तो फेसबुक की वाल भी कम पड़ जायेगी, और भी कुछ लोग है जैसे कलुआ,राकेश मिश्रा,रितेश पांडे, प्रोमोद प्रेमी,और भी कभी इनके बारे में लिखूंगा.
कहानी यहीं खतम नही होती गायक के साथ साथ गायिका भी पीछे नही है जैसे कल्पना पटवारी,प्रियंका सिंह,खुसबू उत्तम,इंदु सोनाली,ममता राउत,और भी सिंगर है. आखिर भोजपुरी में अश्लीलता के लिये जिम्मेदार कौन है? संगीतकार,गीतकार,गायक,गायिका,नायक,नायिका, निर्देशक,निर्माता,वितरक या फिर वो लोग जो भोजपुरी फिल्मे देखते है, या गाने सुनते है क्यों भोजपुरी फिल्मों को अश्लील फिल्मो से जोड़ा जारहा है. एक तरफ देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी भोजपुरी फ़िल्म बनाने के लिए नाज़िर हुसैन को जोर देते है. आज वो ज़िंदा होते अपना सर पीट रहे होते क्या उन्होंने ऐसे ही निम्नस्तर भोजपुरी सिनेमा की परिकल्पना की थी.
क्योँ नही भोजपुरिया समाज ऐसे गायक गायिका नायक नायिका निर्माताओं की फ़िल्म देखने से मना करता है, कही उनके मन मे वहम तो नही इस से अच्छा कुछ हो ही नही सकता. जिस दिन बिहार और यूपी सरकार ऐसे फिल्मों और गानो पर प्रतिबंध लगाना शुरु करदेगी उसी दिन से इन्हें अपनी औकात पता चल जायेगी. भोजपुरी साहित्य के जनक भिखारी ठाकुर की आत्मा आज के सिनेमा को देख कर ज़रूर रो रही होगी उनकी आत्मा की शांति के लिए मैंने तो एक आवाज उठाई है. आप लोगों से निवेदन है ऐसे लोगो का बहिष्कार करे.