भारत से ब्रिटिश साशन को उखाड़ फेंकने और एक आज़ाद भारत की नींव रखने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाया था। 1857 में जहां मर्दानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ो को धूल चटाई थी। भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु हंसते हुए फाँसी पर लटक गए। जहां एक तरफ बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ पत्रकारिता शुरू की थी। वहीं बापू ने आज़दी के लिए अहिंसा का मार्ग बताया था।
लेकिन क्या आप उस महिला के बारे में जानते हैं, जिसने भारत में नहीं बल्कि विदेश में भारत की आजादी की मांग करते हुए पहली बार स्वदेशी ध्वज फहरा कर अपने शौर्य और देशभक्ति का परिचय दिया? जी हाँ, हम उसी महान महिला क्रांतिकारी भीकाजी कामा की ही बात कर रहे हैं। जिनका नाम आज भी देश की लाखों महिलाओं को प्रेरित कर जाता है।
बम्बई में हुआ था जन्म
24 सितंबर 1861 में बम्बई के एक सम्पन्न पारसी परिवार में भीका जी कामा का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा भी बम्बई में ही पूरी की थी। वह एक कुशल भारतीय कार्यकर्ता के रूप में तो काम कर ही रही थीं, साथ ही वह महिलाओं के अधिकारों की भी हिमायती थीं।
विवाह से ज्यादा सामाजिक जिम्मेदारियों को दी तवज्जो
1885 में उनकी शादी एक जाने माने वकील रुस्तमजी कामा से हुई। लेकिन भीकाजी काम राजनीति और सामाजिक कार्यो में खासी व्यस्त रहती थीं। इसी कारण उनके और उनके पति रूस्तम कामा के बीच रिश्तों में खटास आ गई और दोनों में मतभेद पैदा होने लगे। परंतु अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को तवज्जो देने के लिए भीका जी कामा लंदन चली गईं। हालांकि लंदन जाने के इस फैसले में उनका स्वास्थ भी काफी बड़ी वजह था। दरअसल 1890 के दशक में बॉम्बे प्रेसीडेंसी ने पहले अकाल का सामना किया और फिर बुबोनिक प्लेग फैलने लगा। इस बीमारी से लोगो को बचाने के लिए भीका जी कामा ग्रांट मेडिकल कॉलेज (grant medical college) की टीम से जुड़ गयीं। इस दौरान उन्होंने कई जान बचाई मगर अफ़सोस वो खुद बिमारी की चपेट में आ गईं। इलाज के लिए उन्हें लंदन जाना पड़ा।
दादा भाई नौरोजी से हुई थी मुलाकात
इससे पहले की वो लंदन से वापस आ पाती उनकी मुलाकात श्यामजीकृष्ण वर्मा से हुई। जो उस वक्त राष्ट्रवादी भाषणों के लिए जाने जाते थे। श्यामजीकृष्ण ने उनकी मुलाकात दादा भाई नौरोजी से करवाई। नौरोजी उस वक्त ब्रिटिश कमिटी ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे। भीका जी कामा ने भी उन्हीं के साथ जुड़ कर स्वतंत्रता आंदोलनों में अपना योगदान दिया। इसी के चलते 1905 में उन्होंने लंदन में ही इंडियन होम रूल सोसाइटी की स्थापना की।
विदेश में लहराया था पहला भारतीय ध्वज
1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में सेकेंड सोशलिस्ट कांग्रेस की एक प्रदर्शनी में शामिल हईं। इस सभा मे भीका जी कामा ने ब्रिटिश साशन के अंतर्गत अकाल के दौरान भारत मे हुए विनाश का वर्णन किया था। साथ ही “द ग्रेट ब्रिटिन” से मानवाधिकार, समानता और स्वायत्तता के लिए अपील भी की थी। इसी सभा मे भीका जी कामा ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक ध्वज भी लहराया था। Thebetterindia.com के अनुसार वो विदेश में भारत की आज़ादी के लिए ध्वज लहराने वाली पहली व्यक्ति थी। इस ध्वज को कामा और विनायक दामोदर सावरकर ने मिलकर बनाया था।
मदर ऑफ इंडिया भी हैं भीका जी कामा
www.Open.ac.uk के एक आर्टिकल के अनुसार भीका जी कामा को मदर ऑफ इंडियन रेवेलुशन भी कहा जाता है। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष और मिशन को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलायी थी। वहीं 1897 में प्लेग के दौरान अपनी जान की परवाह किये बगैर लोगो के निस्वार्थ भाव से सेवा और मदद करती रहीं।
अखबारों को भारत भेजने में की थी मदद
साल 1909 में भीका जी कामा लंदन से पेरिस शिफ्ट हो गयी थी। ऐसे में उनका घर उन लोगों का मुख्यालय बन गया था जो भारत की आज़ादी के लिए काम कर रहे थे। लेकिन एक और दिलचस्प बात ये है कि लंदन में रहते हुए उन्होंने हरदयाल के क्रांतिकारी पेपर “वंदे मातरम” को लॉन्च करने में उनकी काफ़ी मदद की थी। मैडम भीकाजी कामा की ही मदद से इन अखबारोें को लंदन से भारत भेजा जाता था।
स्ट्रोक से हई थी मौत
जब वो यूरोप में थी, तब उन्हें अचानक स्ट्रोक का अटैक आ गया और उनके शरीर को लकवा मार गया। उन्होंने लिखित अर्जी देकर ब्रिटिश सरकार से भारत लौटने का आग्रह किया था। जिसके बाद उन्हें 1935 में उनके बंबई के घर में शिफ्ट करवा दिया गया। पर यहां आने के बाद भी वह स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने की हालत में बिल्कुल नहीं थी।13 अगस्त 1936 के दूसरे अटैक से उनकी मृत्यु हो गयी।
अनाथालय को दे दी थी सारी संपत्ति
भीका जी कामा महिलाओं के अधिकारों के लिए पहले से जागरूक थी। इसलिए उन्होंने महिलाओं के बेहतर जीवन के लिए काम भी कई कदम भी उठाए। इसी दिशा में मैडम कामा ने अपनी सारी संपत्ति को उन्होंने आवबाई पेटिट अनाथालय की लड़कियों के नाम कर दी।
भीका जी कामा को सम्मान देते हुए भारत के 11वे गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1962 को भारत के डाक तार विभाग ने उनके नाम से डाक टिकट जारी भी जारी की थी।1997 में भारतीय तटरक्षक बल ने एक प्रियदर्शिनी में एक पास्ट पेट्रोल वेसेल ICGS को भीका जी कामा का नाम दिया। भीका जी कामा हमेशा कहती थीं कि “किसी राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भूलना नहीं चाहिए।”