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जब अपने घर का ही रास्ता भूल गए थे आईन्स्टाईन

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साइंस की दुनिया में अल्बर्ट आईन्स्टाईन को रॉकस्टार कहा जाए तो ग़लत न होगा. आधुनिक भौतिकी के पितामह कहे जाने वाले आईन्स्टाईन ने दुनिया को E = mc2 फॉर्मूला दिया जिसने विज्ञान को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया.विज्ञान में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1999 में टाइम पत्रिका ने शताब्दी-पुरूष घोषित किया था. आइंन्स्टाइन का जन्मदिन 14 मार्च को पूरी दुनिया में ‘जीनियस डे’ के रूप में मनाया जाता है. एक सर्वेक्षण के अनुसार वे सार्वकालिक महानतम वैज्ञानिक माने गए. आज आईन्स्टाईनन शब्द बुद्धिमत्ता का पर्याय माना जाता है.

प्रारंभिक जीवन

अल्बर्ट आईन्स्टाईन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी में वुटेमबर्ग के एक यहूदी परिवार में हुआ था. उनके पिता ‘हर्मन आइंस्टाइन’ एक इंजीनियर और सेल्समैन थे.उनकी माँ का नाम पौलीन आइंस्टाइन थी.
1880 में उनका परिवार म्यूनिख शहर चला गया, जहाँ उनके पिता और चाचा ने मिलकर “इलेक्ट्राटेक्निक फ्रैबिक जे आईन्स्टाईन एंड सी” (Elektrotechnische Fabrik J. Einstein & Cie) नाम की कम्पनी खोली, जोकि बिजली के उपकरण बनाती थी.और इसने म्यूनिख के Oktoberfest मेले में पहली बार रोशनी का प्रबन्ध भी किया था.
जब आइंस्टाइन का जन्म हुआ तब इनका सिर बहुत बड़ा था और इन्होंने 4 साल की उम्र तक बोलना भी शुरू नही किया था.मगर एक दिन जब 4 साल के आइंनस्टाइन अपने माता पिता के साथ रात के खाने पर बैठे थे तो उन्होने अपनी चार साल की चुप्पी तोडते हुए कहा -‘shoop बहुत गर्म है ‘.अपने बेटे के इस तरह से चार साल बाद एकदम बोलने से आइंनस्टाइन के माता-पिता हैरान हो गए.
उनका परिवार यहूदी धार्मिक परम्पराओं को नहीं मानता था और 6 साल की उम्र में आईन्स्टाईन कैथोलिक विद्यालय में पढ़ने गये. उनकी टीचर उन्हें जीनियस या टैलेंटेड छात्र नहीं मानती थीं. लेकिन उनके नंबर अच्छे आते थे. इसके साथ ही उनका मन स्कूल के अनुशासन में नहीं लगता था. इसके बाद उन्होंने स्कूल बदला. 11 की उम्र में आइंस्टीन कॉलेज की स्कूल की किताबें पढ़ते थे. उनके नंबर हमेशा अच्छे आते रहे. लेकिन स्कूल का अनुशासन उन्हें नहीं भाया. अपनी माँ के कहने पर उन्होंने सारंगी बजाना सीखा.उन्हें ये पसन्द नहीं था और बाद में इसे छोड़ भी दिया, लेकिन बाद में उन्हें मोजार्ट के सारंगी संगीत में बहुत आनन्द आता था.
अपने ग्रेजुएशन से 11 साल पहले ही उन्होंने ज्यूरिख पॉलिटेक्निक का एंट्रेंस एग्ज़ाम दिया. इसमें वो गणित में तो पास हो गए लेकिन भाषा, बॉटनी और जूलॉजी में फेल हो गए. इसके पीछे एक वजह इन परीक्षाओं का फ्रेंच में होना था. आइंस्टीन को तब बहुत ज्यादा फ्रेंच नहीं आती थी. हालांकि बाद में उन्हें इसी कॉलेज में एडमीशन मिला. उनकी मात्रभाषा जर्मन थी और बाद में उन्होंने इटालियन और अंग्रेज़ी सीखी.
आइंस्टीन ने मज़े के लिए मॉडल और यांत्रिक उपकरणों का निर्माण किया और गणित में प्रतिभा दिखना भी शुरू किया.

योगदान

आइंस्टाइन ने सापेक्षता के विशेष और सामान्य सिद्धांत सहित कई योगदान दिए. उनके अन्य योगदानों में- सापेक्ष ब्रह्मांड, केशिकीय गति, क्रांतिक उपच्छाया, सांख्यिक मैकेनिक्स की समस्याऍ, अणुओं का ब्राउनियन गति, अणुओं की उत्परिवर्त्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांत, कम विकिरण घनत्व वाले प्रकाश के ऊष्मीय गुण, विकिरण के सिद्धांत, एकीक्रीत क्षेत्र सिद्धांत और भौतिकी का ज्यामितीकरण शामिल है. आइंसटाइन ने पचास से अधिक शोध-पत्र और विज्ञान से अलग किताबें लिखीं.
आइंस्टीन ने दुनिया के इतिहास पर कई प्रभाव डाले.उनका भारत से भी खासा लगाव था. उनकी बोस आइंस्टीन थ्योरी ने क्वान्टम फिज़िक्स को एक नया मुकाम दिया. उनके सिद्धांत पर ही ऐटम बम बना. इसके अलावा आइंस्टीन गांधी से बहुत प्रभावित थे. गांधी को लेकर उन्होंने कहा था, आने वाली पीढ़ियां ये विश्वास नहीं करेंगी कि धरती पर हाड़-मांस का बना एक ऐसा आदमी भी चला था. गांधी के बारे में खराब धारणा बनाने से पहले फिर से याद कर लीजिएगा. आइंस्टीन आपसे कहीं ज़्यादा बुद्धिमान थे.
अलबर्ट आइंस्टाइन केवल विज्ञान ही नहीं, साहित्य, कला, संगीत और अध्यात्म के भी मर्मज्ञ थे.यही कारण है कि 14 जुलाई 1930 को अपनी जर्मन यात्रा के दौरान विश्वकवि गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर उनसे मिलने जब उनके निवास पर पहुँचे तो वह एक ऐतिहासिक क्षण हो गया.विज्ञान और कविता के इन दो शिखरों के बीच उस दिन “सत्य की प्रकृति” को लेकर एक अनूठा संवाद हुआ था जो आज भी काफी प्रसिद्ध है.
अल्बर्ट आइंस्टीन को कई पुरस्कार प्राप्त हुए इनमें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार (1921),मेट्यूक्सी पदक (1921),कोप्ले पदक (1925) और मैक्स प्लैंक पदक (1929) उल्लेखनीय हैं.

रोचक किस्से

आइंस्टीन अपने सरल और भुलक्कड़ स्वभाव के लिए भी जाने नाते हैं. जब आइंस्टीन प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में कार्यरत थे तो एक दिन यूनिवर्सिटी से घर वापस आते समय वे अपने घर का पता ही भूल गए. हालांकि प्रिंसटन के ज्यादातर लोग आइंस्टीन को पहचानते थे, किंतु जिस टेक्सी में वे बैठे थे उसका ड्राइवर उन्हें नहीं पहचानता था. आइंस्टीन ने ड्राइवर से कहा, “क्या तुम्हें आइंस्टीन का पता मालूम है?” ड्राइवर ने जवाब दिया, “प्रिंसटन में भला कौन उनका पता नहीं जानेगा? यदि आप उनसे मिलना चाहते हैं तो मैं आपको उनके घर तक पहुँचा सकता हूँ.” तब आइंस्टीन ने ड्राइवर को बताया कि वे खुद ही आइंस्टीन हैं और अपने घर का पता भूल गए हैं. यह जानकर ड्राइवर ने उन्हें उनके घर तक पहुँचाया और आइंस्टीन के बार-बार आग्रह के बावजूद भी, टेक्सी का भाड़ा भी नहीं लिया.
एक बार आइन्स्टीन के एक सहकर्मी ने उनसे उनका टेलीफोन नंबर पूछा.आइन्स्टीन पास रखी टेलीफोन डायरेक्टरी में अपना नंबर ढूँढने लगे.सहकर्मी चकित होकर बोला – “आपको अपना ख़ुद का टेलीफोन नंबर भी याद नहीं है?” “नहीं” – आइन्स्टीन बोले – “किसी ऐसी चीज़ को मैं भला क्यों याद रखूँ जो मुझे किताब में ढूँढने से मिल जाती है”.आइन्स्टीन कहा करते थे कि वे कोई भी ऐसी चीज़ याद नहीं रखते जिसे दो मिनट में ही ढूँढा जा सकता हो.
आइंस्टीन विज्ञान की दुनिया में जितने महान थे निजी ज़िंदगी में उतने ही सरल. एक बार की बात है उन्हें किसी ने लिफ्ट के बारे में बताया. लिफ्ट की खूबी बताते हुए कहा कि इससे समय बचता है. सीढ़ी चढ़ने उतरने की मेहनत बचती है. आइंस्टीन को ये आइडिया बड़ा अच्छा लगा. उन्होंने अपने घर में लिफ्ट लगवाने का ऑर्डर दे दिया. लिफ्ट लगाने वाली कंपनी से जब लोग उनके घर पहुंचे तो पता चला कि आइंस्टीन का घर तो एक मंज़िल का ही है.
एक समय तक दुनिया भर में आइंस्टीन को खत लिखे जाते थे. उनका पता न जानने वाले कई लोग अलबर्ट आइंस्टीन, यूरोप लिखकर खत भेज देते थे. आइंस्टीन तक ये चिट्ठियां पहुंच जाती थीं. इस पर वो कई बार आश्चर्य जताते हुए कहते कि मेरा पोस्टमैन बहुत भला आदमी है.
अल्बर्ट आइन्स्टीन के प्रेम के किस्सो की एक लम्बी लिस्ट है.उनकी मृत्यु के 20 साल बाद उनकी सौतेली बेटी ने उनके 1500 पत्र प्रकाशित किये जिनमें उनके लगभग 6 प्रेम संबंधो का खुलासा हुआ. वह अपने प्रेम संबंधो का ताजा हाल अपनी इस बेटी को चिट्ठियो में लिखा करते थे.हालाँकि कई जानकारो का कहना है कि वह 20 से भी ज्यादा प्रेम संबंधो में रहे। उनकी एक प्रेमिका मशहूर अदाकारा मर्लिन मुनरो भी थी.
इस महान वैज्ञानिक की मौत के बाद 1955 में उनकी आंखें निकालकर न्यूयॉर्क में एक सेफ़ में रख दी गईं.
आइंस्टीन के दिमाग के टुकड़े और आंखें आज भी रखी हुई हैं.इसी तरह उनके दिमाग़ को पड़ताल के लिए निकाल लिया गया था जिस पर बरसों रिसर्च होती रही.बाद में उनके दिमाग़ के टुकड़ों को उनकी आंखों के डॉक्टर हेनरी अब्राम्स को सौंप दिया गया था. हालांकि आइंस्टाइन के दिमाग़ के टुकड़े तो बाक़ी दुनिया ने देख लिए. मगर उनकी आंखें आज भी अंधेरे डब्बे में क़ैद हैं.

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