तुम सवाल ही ग़लत पूछते हो। उनका कॉलेज सस्ता क्यों है, मत पूछो। ये पूछो कि तुम्हारा कॉलेज महँगा क्यों है? ये पूछो कि सिस्टम क्यों नहीं चाहता कि तुम ज़्यादा पढ़ो? क्यों पिछले दस-बीस साल से हायर एजुकेशन के नाम पर देश भर में एक अजीब सा तमाशा चल रहा है? बड़े नामों वाले महँगे प्राइवेट कैंपस बनते गए हैं और सब तरह के सरकारी संस्थान कमज़ोर कर दिए गए हैं।
तुम लोन लेने और ब्याज के साथ उसे चुकाने का उपकरण बना दिए गए हो। बस एक टूल। वो भी ऐसी डिग्रियों के लिए, जो कोई स्किल ढंग से नहीं सिखातीं। तुम्हें दुनिया को देखने की नज़र नहीं देतीं। बस तुम्हें ज़िंदगी भर की नौकरी के लिए तैयार करती हैं। वो भी तब जब तुम पढ़ते पढ़ते अपनी आँखें फोड़ लो।
ये हँसते हुए प्रिविलेज्ड लोग, तुम्हें भड़काने वाले ये न्यूज़ एंकर – ये सब चाहते हैं कि तुम पढ़े लिखे लोगों का मज़ाक़ उड़ाओ। और नए ज़माने के बंधुआ मज़दूर बन जाओ इनकी और इनके बच्चों की सेवा करते रहने के लिए। लाखों करोड़ों बंधुआ मज़दूर। यही अंग्रेज़ चाहते थे। इसीलिए ज़्यादातर पढ़ाई असल में अच्छा बाबू बनाने के लिए है, नौकरियों के नाम भले ही अलग अलग हों।
क्योंकि तुम अगर ढंग से कुछ पढ़ोगे तो सवाल पूछने लगोगे। तब तुम पूछोगे कि जो सैंकड़ों करोड़ों के लोन माफ़ या चोरी होते रहते हैं, उसमें से कुछ तुम्हारे खेत या अस्पताल में क्यों नहीं आता? क्यों तुम उसी चक्की में पिस रहे हो, जिसमें पिसते पिसते तुम्हारे पुरखे शहीद हो गए?
किसी भी देश के लिए इससे पवित्र क्या होगा कि टैक्स का पैसा कॉलेजों और अस्पतालों को मुफ़्त या सस्ता रखने में लगा दिया जाए? अगर तुम्हें टैक्स के पैसे का यह इस्तेमाल ग़लत लगता है, तो या तो तुम्हें कुछ आइडिया नहीं कि तुम्हारे साथ क्या होता आ रहा है या फिर तुम्हारे लिए देश की परिभाषा उन कारख़ानों पर जाकर ख़त्म हो जाती है, जो आदमी और माचिस की तीली में कोई फ़र्क़ नहीं करते। दोनों को बंद रखा जाता है। और बाहर तभी निकाला जाता है, जब उनका इस्तेमाल आग लगाने के लिए करना हो।
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