अंग्रेजो के खिलाफ पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले बाल गंगाधर तिलक

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इस साल, 2021 में हमारा देश स्वतंत्रता के 75 साल का उत्सव मनाएगा। भले ही भारत को स्वतंत्रता 1947 में मिली हो, इसकी नीव बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी। 1890 के दौर में जब British हुकूमत का शासन काल चल रहा था, उसी वक्त लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पूर्ण स्वराज की मांग सबसे पहले उठाई थी। 1 अगस्त 2021 को उनकी 101वीं पुण्यतिथि मनाई गई।

स्वतंत्रता आंदोलन में लाल – बाल – पाल के योगदानों को कभी नहीं भुला जा सकता है। इनमें भी बाल गंगाधर तिलक सबसे अहम स्तंभ थे। देश प्रेम के लिए सबसे मशहूर वाक्य, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” के विचारक लोकमान्य तिलक ही रहे हैं।

राष्ट्रवादी और हिंदूवादी सोच, शिक्षक, वकील, समाज सुधारक, गणितज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी, ओजस्वी नेता, जैसे बहुमुखी प्रतिभा और व्यक्तित्व वाले लोकमान्य ने ही भारतीय स्वतंत्रता की नीव रखी थी।

चिखली गांव से निकलकर पूर्ण स्वराज का हक मांगने तक का सफर

लोकमान्य तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के छोटे से गांव चिखली में 23 जुलाई 1857 को हुआ था। आधुनिक कॉलेज शिक्षा सबसे पहले प्राप्त करने वालों में से एक तिलक भी थे।

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने अपने ही जिले के स्कूल और कॉलेज में गणित शिक्षक के रूप में काम किया। उस वक्त में अंग्रेजी शिक्षा की बहुत निंदा करते थे। कुछ समय बाद तिलक नहीं दक्कन शिक्षा सोसाइटी का गठन किया। इससे वह देश भर में शिक्षा का स्तर सुधारना चाहते थे।

तिलक ने दो दैनिक समाचार पत्रों की भी शुरुआत की थी। पहली, English में प्रकाशित मराठा दर्पण और दूसरी, मराठी भाषा में प्रकाशित केसरी। अपने पत्रों के माध्यम से उन्होंने सबसे पहले अंग्रेजो के खिलाफ पत्रकारिता शुरू की और British हुकूमत की बहुत आलोचना की। अपने पत्रों के जरिए ही उन्होंने British सरकार से तत्काल प्रभाव से पूर्ण स्वराज देने की कई बार मांग की। इसके कारण उन्हें बहुत बार जेल भी जाना पड़ा। मगर उन्होंने अंग्रेजों की पोल खोलने का और स्वराज के हक को मांगने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा था।

राष्ट्रवाद भावना लाने के लिए शुरु किया गणेश उत्सव

उस वक्त महाराष्ट्र के हिंदुओं का मुख्य पर्व गणेश उत्सव अलग तरीके से मनाया जाता था। लोग अपने – अपने घरों में ही गणपति की स्थापना करके उन्हें बाद में विसर्जित कर देते थे। इसको व्यापक और सामाजिक स्तर पर मनाने के लिए 1893 में तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव मनाने का आगाज किया। इसके माध्यम से वह चाहते थे कि हर जाति के लोग उत्सव में शामिल हो सके। 2 या 3 दिन का उत्सव ना होकर अब 10 दिन का महा उत्सव मनाया जाने लगा। यह तिलक का लोगों को राष्ट्रवाद के जरिए एक साथ करने का छोटा सा प्रयास था।

1905 के स्वाधीनता आंदोलन से बने राष्ट्रवादी नेता

1905 में हुए बंग भंग के बाद भारतीय आन्दोलनकारियों का विशेष मकसद विदेशी चीजों के बहिष्करण और स्वदेशी चीजों पर जोर देने का था। इस आन्दोलन के प्रमुख नेताओं में तिलक भी शामिल थी। कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में देश की आगामी राजनीतिक रणनीति के बारे में तीन अलग अलग प्रस्ताव सामने रखे गए थे। पहला प्रस्ताव गांधी जी का था। दूसरा प्रस्ताव लोकमान्य तिलक का था, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी सत्ता से सावधान रहने की बात कही थी। वहीं तीसरा प्रस्ताव देशबंधु चितरंजन दास ने रखा था।

इस अधिवेशन में तिलक ने खुद को पीछे करके देश का राजनैतिक भविष्य गाँधी जी के हाँथों में सौंप दिया था। उन्होंने बंग भंग के समय में अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बुलंद आवाज खड़ी की थी। जिसके बाद उन्हें एक राष्ट्रिवादी नेता के रूप में जाना जाने लगा।

खुदीराम बोस का समर्थन करने पर जाना पड़ा था म्यांमार के मांडले जेल

1890 में तिलक राष्ट्रिय कांग्रेस से जुड़े थे। 1907 में राष्ट्रीय कांग्रेस का गरम दल और नरम दल में विभाजन हो गया। तिलक गरम दल के एक महत्वपूर्ण राजनेता थे। 1908 में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के द्वारा किए गए बम हमले का खुला समर्थन किया।

British सरकार ने उन्हें इसके लिए कारावास भेजा। उन्हें म्यांमार के मांडले जेल में भेजा गया था। उनका दोस मात्र खुदीराम बोस जैसे महान व्यक्ति का समर्थन करना था।

Home Rule League की स्थापना की

मांडले जेल से बाहर आने के बाद 1916 में उन्होंने एनी बेसेंट और मोहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर All India Home Rule League की स्थापना की। Home rule आंदोलन के दौरान ही उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य देश में स्वराज लाना था।

 

आंदोलन के तहत, चार पांच लोगों की छोटी – छोटी टोली बनाकर उन्हें लोगों को Home Rule के संबंध में जागरूक करने का काम दिया जाता था।

गांधीजी के अनुसार तिलक आधुनिक भारत के निर्माता थे

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुई थी। महात्मा गांधी ने उन्हें “आधुनिक भारत का निर्माता” बताया था और जवाहरलाल नेहरू के अनुसार वह “भारतीय क्रांति के जनक थे”। राष्ट्रवादी आंदोलनों के पिता के रूप में उन्हें आज भी याद किया जाता है।