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नज़रिया- इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के क़ातिलों को "भीड़" का नाम मत दीजिए

  • December 4, 2018

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के क़ातिलों को “भीड़” का नाम मत दीजिए प्लीज़….  वर्ना कई और सुबोध कुमार, कई और ज़ियाउल हक़ जैसे जम्हूरियत के रक्षक मौत...

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एक नागरिक का पयाम, लेफ़्ट फ्रंट के नाम

  • March 8, 2018

केंद्र में साढ़े तीन बरस और दीगर राज्यों में लगभग डेढ़ दशकों के झूठ, फ़रेब, मक्कारी, औरत विरोधी, अमीरपरस्त- ग़रीब विरोधी, नफ़रत, ख़ून ख़राबा, ग़ैर संवैधानिक...

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डॉ अंबेडकर पूजने की "वस्तु" नहीं..अपनाये जाने वाले "लीजेंड"(दिव्यचरित्र) हैं

  • August 1, 2017

मैं, फ़िक्रमंद हूँ कि वर्णाश्रम के आख़िरी पायदान पे लटका दिये गए “शूद्र” अपना “ज़िंदा अस्तित्व” मनुवादी निज़ाम मे कैसे ढूंढ सकते हैं? उसमें भी ख़ासकर...

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वर्षा डोंगरे केस – क्या उद्योगपतियो के सामने नत्मस्तक है सरकार

  • May 26, 2017

कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ फ़िर से चर्चा में था, लेकिन इस बार दुर्दांत नक्सलियों की वजह से नहीं बल्कि वजह थी राज्य सरकार की मूर्खता की...

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आज हमें जो पसंद आ रहा है, कल वही हमारे बच्चों के लिए वीभत्स होगा

  • March 8, 2017

“देश” शो केस में रक्खा कोई मुर्दा एंटीक पीस नहीं है। अपने नागरिकों की धड़कनों में दिल का जगह धड़कता है देश। एक आज़ाद, मुकम्मल आत्मनिर्भर...