Ashfaq Khan

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भारत के बंटवारे की एक कहानी – “सतरंजे का बंटवारा”

  • October 27, 2017

सतरंजे का एक सिरा सुल्तान खा़न के हाथ में दूसरा सिरा सरदार खा़न के हाथ में था। सुल्तान कह रहा था- “सारा सामान बेच दिये ,एक...

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ग़ज़ल- मुसव्विर हूं सभी तस्वीर में मैं रंग भरता हूं

  • October 12, 2017

हमेशा ज़िन्दगानी में मेरी ऐसा क्यूं नहीं होता जमाने की निगाहों में मैं अच्छा क्यूं नहीं होता उसूलों से मैं सौदा कर के खुद से पूछ...

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कविता – मुझे कागज़ की अब तक नाव तैराना नहीं आता

  • April 9, 2017

तुम्हारे सामने मुझको भी शरमाना नहीं आता के जैसे सामने सूरज के परवाना नही आता ये नकली फूल हैं इनको भी मुरझाना नही आता के चौराहे...

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गज़ल – गुज़र गई है मेरी उम्र खुद से लड़ते हुए – "ख़ान"अशफाक़ ख़ान

  • March 3, 2017

गुज़र गई है मिरी उम्र खुद से लड़ते हुए मुहब्बतों से भरे वो खतों को पढ़ते हुए धुएं की तरह बिखरता रहा फज़ाओं में के उम्र...