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सावधान! देश पूँजीपतियों के ठेके पर है.

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कभी विपक्ष में बैठकर निजीकरण और FDI के प्रचंड विरोध स्वरुप पर सड़कों पर लौटने वाली भाजपा ने सत्ता में आते ही सबसे पहले FDI के लिए दरवाज़े खोले, यहाँ तक कि रक्षा, उड्डयन, पेंशन, ई कॉमर्स और बीमा में 100 प्रतिशत FDI को हरी झंडी दे दी गयी.
इसी के साथ साथ रेल्वे को भी लगभग ठेके पर दे दिया गया है, देश के कुल 407 रेलवे स्टेशन्स को ठेके पर दे दिया है.
अब कल खबर आयी है कि भाजपा सरकार ने 77 साल पुरानी ऐतिहासिक धरोहर लाल क़िले को डालमिया ग्रुप को पांच साल के लिए 25 करोड़ रुपए में ठेके पर दे दिया है, यानी 5 करोड़ रूपये प्रति वर्ष, इसका काम 23 मई से पहले शुरू हो जाएगा.
ठेका लेने के बाद डालमिया ग्रुप लाल क़िले में पर्यटकों को लुभाने के लिए कई योजनाओं पर काम करेगा जिसमें वहां समय समय पर कंसर्न्ट और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन होगा, साथ ही इस धरोहर की सार संभाल और डेकोरेशन और लाइटिंग आदि की नयी व्यवस्था होगी.
डालमिया ग्रुप देश के इस ऐतिहासिक स्मारक को गोद में लेने वाला भारत का पहला कॉर्पोरेट ग्रुप बन गया है, यहाँ गोद लेने को देसी भाषा में ठेका ही कहेंगे, सरकार ने इस ठेका प्रणाली के लिए एक नया नारा उछाला है ‘एडॉप्ट एक हेरिटेज’, यानी एक धरोहर को गोद लो.
स्पष्ट है कि ये नारा कॉर्पोरेट्स के लिए है कि आइये देश की ऐतिहासिक धरोहरों को गोद (ठेके) पर लीजिये, सरकार की इस ‘एडॉप्ट एक हेरिटेज’ योजना के अंतर्गत और भी ऐतिहासिक धरोहरें ठेके पर दिए जाने के लिए सूचीबद्ध हैं इनमें आगरा का ताजमहल, हिमाचल में कांगड़ा का किला, मुंबई के कानेरी की बौद्ध गुफाएं जैसे 100 और स्मारक शामिल हैं.
ASI यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ही हमेशा से इन धरोहरों की देखभाल करता आया है, भाजपा सरकार के सत्ता में आते ही ASI के हाथ से अधिकांश काम छीन लिया गया है, यदि यही हाल रहा और हर पुरातत्व स्मारक ठेके पर दिए जाने लगे तो फिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दफ्तर पर ताला लगना तय है.
परन्तु यदि इसका दूसरा पहलू देखें तो एक पॉजिटिव बात ये निकल कर आती है कि किसी भी क्षेत्र को निजी कंपनी को ठेके पर दिए जाने के बाद भले ही कुछ अतिरिक्त शुल्क देना पड़े, मगर उस क्षेत्र की गुणवत्ता में सुधार ज़रूर आता है, इसकी मिसाल कई रेलवे स्टेशन्स हैं जो निजी हाथों में जाने के बाद पहले से अच्छी स्थिति में नज़र आते हैं.
परन्तु सरकार को इन से सम्बंधित सरकारी विभागों और ठेका प्रणाली में सामंजस्य बैठाकर चलना होगा, आज भी देश की एक तिहाई आबादी माध्यम वर्ग और गरीबी रेखा से नीचे मूल भूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करती नज़र आती है, ऐसे में यदि हर विभाग ठेके पर दिए जाने लगे तो मूलभूत सेवाएं महँगी होंगी जो आमजन की पहुँच से दूरो होती चली जाएँगी, जबकि सरकार का कर्तव्य है कि यही मूलभूत सुविधाएँ कम खर्चे में आमजन को उपलब्ध कराई जाएँ ताकि कतार के अंत में खड़ा गरीब भी इन मूलभूत सुविधाओं से वंचित न हो सके.
इस तरह से ठेके पर दिए जाने से सरकार के रेवेन्यू में वृद्धि होती है तो सरकार आँख मूँद लेती है, उसकी जवाबदेही डाइवर्ट हो जाती है, कभी कोई कमी या दुर्घटना के चलते दोष का ठीकरा सरकार अपने सर नहीं लेती, ऐसे में ज़रूरी यही है कि अपने रेवेन्यू के लालच में सरकार आमजन की सुविधाएँ महँगी तो नहीं कर रही, अपनी ज़िम्मेदारी से तो नहीं भाग रही, और साथ ही देश की ऐतिहासिक धरोहरों के मूल स्वरुप से छेड़छाड़ या तोड़फोड़ तो नहीं की जा रही.
सरकार के इस क़दम की सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रिया हुई है, अधिकांश लोग सरकार के इस क़दम से दुखी हैं, उन्हें लगता है कि देश की इन शानदार धरोहरों को कॉर्पोरेट्स के हाथों में नहीं देना चाहिए, तो वहीँ कुछ लोग इससे इसलिए सहमत हैं कि ASI देश की धरोहरों की उचित देखभाल नहीं कर पा रही थी, अभी पिछले ही दिनों ताजमहल परिसर का एक पिल्लर तेज़ आंधी और बरसात से गिर गया था.
बाक़ी हैरानी अब तक क़ायम है कि FDI पर संसद ठप्प करने वाली भाजपा आज 100 फ़ीसदी FDI दिए बैठी है और साथ ही ठेके पर ठेके दिए जा रही है, डर इस बात का है कि कहीं ये ठेके का चस्का और आगे न बढ़ जाये, और आम चुनाव जैसी प्रक्रिया को भी ठेके पर न दे डाले, या फिर विपक्ष के सुलगते सवालों का जवाब देने के लिए ही किसी कंपनी को ठेका दे दिया जाए.

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