0

आर्टिकल 341 का दूसरा पहलू, दलितों को नहीं है पूर्ण धार्मिक आज़ादी

Share

भारतीय संविधान जहाँ आर्टिकल 25 के तहत लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है जिससे वे जिस धर्म को मानना चाहें वो अपना सकते हैं।
पर क्या आपको पता है इस देश के दलितों को पूर्ण रूप से ये धार्मिक आज़ादी नहीं है, अगर वे ईसाई/इस्लाम धर्म अपना लेते हैं तो उनसे दलित स्टेटस छिन जायेगा एवं स्टेट की तरफ़ से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा, अगर उन्हें दलित रहना है तो उसी धर्म में रहना होगा जो कि मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
पर क्या आजतक आपने किसी दलित बुद्धिजीवी को अपनी इस धार्मिक स्वतंत्रता के लिये आवाज़ उठाते हुये देखा या सुना है?
देश भर में दलित मुद्दों को लेकर हर रोज़ कहीं न कहीं गोष्ठी होती रहती है पर कभी इस मौलिक अधिकार पर बात तक नहीं करते हैं।
ये कथित अम्बेडकरवादी आजतक धार्मिक स्वतंत्रता तो हासिल नहीं कर पाए और बातें इतनी लम्बी लम्बी करते हैं।
दरअसल इस देश का दलित मूवमेंट झूठा है, ज़्यादातर फ़र्ज़ी लोग इसे कंट्रोल करते हैं जो संघ से तटस्थ लोग हैं। ये लोग अम्बेडकरवाद को बिज़नेस की तरह इस्तेमाल करते हैं।
एक तो मुस्लिम एवं ईसाई समाज के दलितों को उनका हक़ इस आर्टिकल की वजह से नहीं मिल रहा है तो दूसरी तरफ़ दलितों को धर्म परिवर्तन से रोकने का ये एक षणयंत्र भी है।
हालाँकि ये सब सेक्युलर सरकारों की देन है जो संविधान लागू होने के कुछ समय बाद एक अध्यादेश लाकर इसे रोका दिया गया। पर आजतक संविधान में दलित विषय को पुनः परिभाषित नहीं किया गया, इस बीच सत्ता में ज़्यादातर सेक्युलर सरकारें थीं.
ये आर्टिकल संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है पर अफ़सोस इसपर न हमारी न्यायपालिका कभी बहस करती है, न ही हमारी संसद को इससे परवाह है और न ही दलितों के नाम पर अपनी राजनीति की दुकान चलाने वाले सियासतदान।
पर हमें शिकायत उन लोगों से है जो सामाजिक न्याय की बात करते हैं, धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर लड़ाइयाँ लड़ते हैं। ये लोग कभी इस मुद्दे को लेकर मुख्यधारा में लड़ाई नहीं लड़े। इस आर्टिकल से मुस्लिम, ईसाई और दलित तीनों को नुक़सान उठाना पड़ रहा है पर बुद्धिजीवियों के बीच ये चर्चा का विषय नहीं है।

Exit mobile version