अर्नब गोस्वामी से मुंबई के एनएम जोशी रोड पुलिस स्टेशन में साढ़े 12 घंटे तक पूछताछ हुई। किसी भी मुल्जिम की पूछताछ कितने समय मे पूरी हो, किन किन विन्दुओं पर हो, कब हो, कौन कौन से दस्तावेज मांगे जाय, यह केवल उस मुकदमे का विवेचक आईओ ही तय करता है, इसमे किसी भी अदालत का कोई दखल नहीं है, और न कोई अदालत दखल देती है, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी। अदालत ने खुद ही मुल्ज़िम को तफतीश में सहयोग देने के लिये कहा है। अर्नब का सहयोग यही है कि पुलिस जब भी उन्हें बुलाये वह विवेचक के समक्ष हाज़िर हो जांय, और जो सवाल पूछे जांय उनका उत्तर दें। न दे सकें तो वह भी बता दें।
अर्नब गोस्वामी पर आईपीसी की धाराओं 153, 505, 469, 471, 499, 500, 120 बी तथा और आपदा प्रबंधन की धारा 51, 52 और 66 ए आईटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज है। हर अपराध के बारे में अलग अलग पूछताछ होगी और यह हो भी रहा होगा। अर्नब ने भी अपने ऊपर हमले का मुकदमा दर्ज कराया है।
पूछताछ की कोई समय सीमा तय नही होती है औऱ न ही कोई तय सवाल होता है। सवालों से ही सवाल निकलते हैं। यह सिलसिला लंबे समय तक जब तक विवेचक चाहे चल सकता है। बस उसे रोज रोज का विवरण दर्ज करना पड़ेगा जिसे केस डायरी कहते हैं, और एक ही सवाल लगातार नहीं पूछे जा सकते हैं। पूछताछ के इस काम मे कोई भी कोर्ट दखल नहीं दे सकती क्योंकि अर्नब न तो गिरफ्तार हैं और न ही किसी रिमांड पर। यहां तक की सुप्रीम कोर्ट भी नहीं।
साम्प्रदायिकता फैलाने वाले आरोपों के बारे में अर्नब के कार्यक्रम में प्रसारित वीडियो के आधार पर पूछताछ होगी। पुलिस ऐसे मामलों में सख्ती से नहीं पेश आती है और न उसे आना चाहिए। यहां अर्नब से कुछ उगलवाना नहीं है बल्कि जो कार्यक्रम वह चला चुके हैं औऱ जो बात वह कह चुके हैं उसी की पुष्टि औऱ उसी के आधार पर उनकी नीयत या दुराशय पुलिस को प्रमाणित करना है। पानी, चाय नाश्ता आदि पुलिस कराती भी रहेगी औऱ सवाल भी पूछते रहेंगे। ऐसा मुलजिम पर मानसिक दबाव के लिये किया जाता है।
साम्प्रदायिक उन्माद जानबूझकर फैलाने का आरोप सिद्ध करना आसान नहीं होता है। अर्नब के कार्यक्रम को गंभीरता से देखना होगा और फिर यह विवेचक की मनःस्थिति पर निर्भर करता है कि वह प्रोग्राम के विषय चयन, प्रासंगिकता, उनके द्वारा कही गयी बातें, और अगर तथ्यों में कोई गलती है उसे कैसे वह अपने लक्ष्य की ओर मोड़ता है। दरअसल अब तक तो कभी ऐसा हुआ नहीं कि ऐसे मामले में किसी एंकर या पत्रकार से इस तरह के मुकदमे के दौरान पूछताछ हुयी हो। ऐसे मामलों को तो, अमूमन सरकार भी नजरअंदाज कर देती थी। पर अब यह अब पहला उदाहरण है, तो देखना हैं कि किस अंजाम तक यह तफतीश पहुंचती है।
अर्नब गोस्वामी यह कह सकते हैं कि उनका इरादा साम्प्रदायिकता फैलाने का नहीं था। वह यह कहेँगे भी। वे पुलिस को उत्तेजित करने का भी प्रयास करेगे कि कह सके कि उन्हे जानबूझकर प्रताड़ित किया जा रहा है। लेकिन, होशियार पुलिस अफसर बेहद ठंडे दिमाग से सवाल दर सवाल पूछती जाएगी। एक दो दिन के बाद फिर बुला लिया जायेगा।
यह मुकदमा जैसा कि मीडिया से पता चल रहा है वह साम्प्रदायिकता फैलाने, कोरोना आपदा के समय अनावश्यक विवाद फैलाने से जुड़ा है न कि सोनिया गांधी के असल नाम के उल्लेख के कारण यह धाराएं लगी हैं। नाम का उल्लेख कोई अपराध की श्रेणी में आता भी नहीं है। अगर सोनिया गांधी को लगता है कि उनकी मानहानि हुयी है तो इस पर वही कार्यवाही कर सकती हैं।
ऐसा नहीं है कि देश मे साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने वाली रिपोर्टिंग करने वाले अर्नब अकेले ही टीवी पत्रकार हैं बल्कि अन्य महानुभाव भी हैं, जो 2014 से ही ऐसा एजेंडा एक गिरोह के रूप में चला रहे हैं। पर यह शायद पहला मौका है जब कि लोगो ने इस प्रवित्ति पर अंकुश लगाने के लिये पुलिस में शिकायतें कीं और अभियोग दर्ज कराए। नहीं तो लोग नजरअंदाज कर जाया करते थे।
अर्नब ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें ही यह सब अकेले झेलना पड़ेगा। हालांकि वह रोज अपने चैनल में किसी न किसी को बुलाकर बेहद अपमानजनक भाषा मे आक्रामक होते थे और अपना भौकाल बनाये रखते थे। पर आश्चर्य है किसी ने न तो कभी आपत्ति दर्ज कराई और न ही उनके प्रोग्राम का बहिष्कार किया।
( विजय शंकर सिंह )