क्या दिल्ली के मुस्लिम वोटर्स केजरीवाल से नाराज़ हैं?

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दिल्ली में 2012 में बनी आम आदमी पार्टी के बाद से दिल्ली की राजनीति पूरी तरह से बदल गयी है,2013 में 28 सीटें,2015 में 67 और 2020 सीटें जीत कर “आप” ने इतिहास रच दिया था,वहीं इस बार के चुनावों में केजरीवाल की पार्टी से 5 विधायक मुस्लिम जीत कर आये हैं,वहीं पिछली बार ये संख्या 4 थी।

केजरीवाल सरकार और दिल्ली के मुस्लिम समाज को लेकर असल चर्चा तब शुरू होती है जब दिल्ली में फरवरी 2020 में साम्प्रदायिक दंगे होते हैं,जिसमें दंगा प्रभावित इलाकों में वो एक बार भी दौरा नहीं करते हैं,वहीं दंगों के बाद कोरोना की फर्स्ट वेव में जब उन्होंने “तब्लीगी” जमात पर अलग से “एफआईआर” दर्ज करने की बात कही तो केजरीवाल के खिलाफ मुस्लिम समाज के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिये थे।

उस वक़्त हाल तो ये था कि तत्कालीन अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन ज़फरुल इस्लाम खान ने सरकार से सवाल भी पूछा था कि “तब्लीगी जमात से जुड़े कोरोना के मरीज़ों को अलग से क्यों गिना जा रहा है” बहरहाल तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों को कोर्ट ने राहत भी दी और वो मामला खत्म हो गया,लेकिन दिल्ली नगर निगम उपचुनाव ने सब कुछ बदल दिया।

मुख्यमंत्री का प्रचार करना भी काम न आया,चौहान बांगर में हार हुई।

दिल्ली में हुए नगर निगम उपचुनावों में 5 में से 4 सीट जीत कर “आप” ने कमाल कर दिया था,लेकिन वो अपनी जीती हुई सीट हार गई,जी हां सीलमपुर विधानसभा जहां विधायक अब्दुल रहमान बड़े अंतर से जीत कर आये थे उसकी सीट “चौहान बांगर” पर प्रत्याशी को 10,462 को हार का मुंह देखना पड़ा था।

इस उपचुनाव में विधायक, सांसद, केबिनेट मिनिस्टर इमरान हुसैन, वक़्फ़ बोर्ड चेयरमैन अमानतुल्लाह खान ने अपनी पूरी ताक़त झौंक दी थी,यहां तक उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी यहां आए और मुख्यमंत्री केजरीवाल को भी मैदान में उतरना पड़ा,मगर आख़िर में जनता ने अपना जवाब दे दिया।

तो क्या इससे ये मान लेना सही नहीं होगा कि मुस्लिम केजरीवाल सरकार से नाराज़ हैं? क्योंकि जब पूरा केबिनेट यहां उतर आया हो और पार्टी हार जाए तो सवाल उठना लाज़मी है।

वहीं कांग्रेस से विजयी रहे पूर्व विधायक के बेटे चौधरी जुबेर ने दंगे,कोरोना और मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी से लेकर मरकज़ को मुद्दा बनाया था,और उन्होंने स्टार प्रचारक के तौर पर इमरान प्रतापगढ़ी को आखिर दिन मैदान में उतारा था,जिसके बाद चुनाव ही बदल गया था।

कांग्रेस ने खेला दोनों “इमरान” पर दांव।

अभी हाल ही में हुए संगठन बदलाव में कांग्रेस ने इमरान मसूद जो पूर्व विधायक हैं उन्हें दिल्ली का प्रभारी बनाया है,और इमरान प्रतापगढ़ी को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है,और इन दोनों ही के नामों को दिल्ली में आगामी एमसीडी चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है।

दरअसल दिल्ली में 6 विधानसभा ऐसी हैं जहां मुस्लिम वॉट्स की तादाद 50 फीसदी के आस पास में हैं और कई सीटें ऐसी हैं जहां 30 से 20 फीसदी की मुस्लिम आबादी है जो अपने दम पर चुनावों का रुख बदल सकती है,यही वजह है की उपचुनावों से सबक़ लेकर पार्टी ने मेहनत शुरू कर दी है।

पार्टी ने अपने नेताओं को ज़मीन पर मेहनत करने का आदेश दे दिया है,लेकिन एक बहुत बड़ा सवाल ये उठ जाता है कि क्या मुस्लिम वोटर्स केजरीवाल पर विधानसभा चुनावों जैसी वोटों की बारिश करेंगें? क्योंकि तब ऑप्शन के तौर पर कोई और मज़बूत नेता या पार्टी नहीं थी, लेकिन अब है।

तो क्या केजरीवाल सरकार से कथित तौर पर नाराज़ मुस्लिम वोटर्स दोबारा उन पर भरोसा करेंगे? या फिर वो फिर से कांग्रेस की तरफ मुड़ जायेंगे? और अगर ऐसा नही है तो क्या ओवैसी की पार्टी “मींम” को मुस्लिम समर्थन करेगा?

ये कई सवाल हैं जिनका जवाब समय के साथ ज़रुर मिल जायेगा.. आप भी ढूंढिये हम भी ढूंढ रहे हैं।

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