हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की 19 मई को पुण्यतिथि है. आधुनिक हिन्दी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एक ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने उत्कृष्ट आलोचना के जरिए अपनी विद्वता की धाक जमाने के साथ-साथ अपने सरस ललित निबंधों के जरिए पाठकों का मन मोह लिया.
जिस प्रकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य में तुलसीदास की साहित्यिक श्रेष्ठता को प्रमाणित किया वहीं आचार्य द्विवेदी ने अपनी कबीर रचना के जरिए भक्तिकाल के इस संत कवि की साहित्य प्रतिभा के अनछुए पहलुओं को उजागर किया है. आचार्य द्विवेदी के व्यक्ति का एक अन्य पक्ष उनके निबंध हैं. आचार्य द्विवेदी के निबंध सरस ही नहीं शुरू से लेकर अंत तक कविता होते हैं.
द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त 1907 उत्तरप्रदेश में बलिया जिले के एक गाँव में हुआ.उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के बाद ज्योतिष में आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की.शिक्षा प्राप्ति के बाद वह शांति निकेतन चले गए और वहाँ के हिन्दी विभाग में अध्यापन करने लगे.
शांति निकेतन में उन्हें रवीन्द्रनाथ ठाकुर और प्रसिद्ध भाषाविद् आचार्य क्षितिमोहन सेन, नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के नाना थे, के सानिध्य में साहित्य के गहन अध्ययन की रुचि विकसित हुई. माना जाता है कि आचार्य द्विवेदी की अधिकतर प्रमुख रचनाओं का लेखन या योजना उनके शांति निकेतन निवास के दौरान ही बनी. कबीर रचना के लिए भी उन्हें गुरुदेव टैगोर से ही प्रेरणा मिली द्विवेदी की आलोचनात्मक रचनाओं में कबीर का प्रमुख स्थान है.इसके माध्यम से उन्होंने कबीर साहित्य का गहराई से विश्लेषण किया है.उनकी अन्य आलोचनात्मक रचनाओं में सूर साहित्य और कालिदास की लालित्य योजना प्रमुख हैं.
हिन्दी के चंद प्रमुख उपन्यासों में द्विवेदी के लिखे बाणभट्ट की आत्मकथा को शामिल किया जाता है. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखे गए इस उपन्यास का कैनवास बेहद विशाल है जिसमें प्रेम कथा से लेकर तंत्र, भाषा शास्त्र, नटशास्त्र, संगीत आदि तमाम विषयों को कथा सूत्र में खूबसूरती से पिरोया गया है.
आचार्य द्विवेदी के अन्य उपन्यासों में अनामदास का पोथा, पुनर्नवा और चारू चंद्रलेख शामिल हैं.द्विवेदी की रचनाओं का एक अन्य प्रमुख पक्ष उनके ललित निबंध हैं. इनमें विद्वता का आग्रह रखे बिना पाठकों से सीधे संवाद स्थापित करते हुए विषय का सरस और रोचक विस्तार किया जाता है. उनके प्रमुख निबंध संग्रहों में विचार प्रवाह, अशोक के फूल और कल्पलता शामिल हैं.
भारत सरकार ने साहित्य में आचार्य द्विवेदी के योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया. आजीवन हिन्दी के लिए समर्पित इस साहित्यकार का 19 मई 1979 में निधन हो गया.
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