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अपने स्कूल के दिनों में छुआछूत का शिकार हुये थे "बाबू जगजीवन राम"

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जगजीवन राम – जिन्हें आम तौर पर बाबूजी के नाम से जाना जाता है एक राष्ट्रीय नेता स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक न्याय के योद्धा, दलित वर्गों के समर्थक, उत्कृष्ट सांसद, सच्चे लोकतंत्रवादी, उत्कृष्ट केंद्रीय मंत्री, योग्य प्रशासक और असाधारण मेधावी वक्ता थे. जगजीवन राम का जन्म शोभी राम और वसंती देवी के यहां 5 अप्रैल, 1908 को बिहार के शाहाबाद जिले अब भोजपुर के एक छोटे से गांव चंदवा में हुआ था.
जगजीवन राम को आदर्श मानवीय मूल्य और सूझबूझ  अपने पिता से विरासत में मिली जो धार्मिक प्रविृति के थे अैर शिव नारायणी मत के महंत थे. जब वे विद्यालय में ही थे तब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और उनका पालन-पोषण उनकी माता जी को करना पड़ा. अपनी माताजी के मार्गदर्शन में जगजीवन राम ने आरा टाउन स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की.
दलित समुदाय से होने के कारण उनको बचपन से ही सामाजिक भेदभाव और छुआछूत का शिकार होना पड़ा. बिहार के आरा के जिस स्कूल में वो पढ़ते थे, वहां हिंदू और मुसलमान छात्रों के लिए पीने के पानी के अलग-अलग मटके रखे जाते थे. जब दलित समुदाय के छात्रों ने हिंदू छात्रों के लिए रखे मटके से पानी पिया तो कथित ऊंची जाति के छात्रों ने उसका विरोध किया.
स्कूल के प्रिंसिपल ने दलितों के लिए एक और मटका रखवा दिया. छात्र जगजीवन राम ने दलितों के लिए रखे मटक को फोड़कर अपना विरोध प्रकट किया. अंत में प्रिंसिपल ने तीसरा मटका न रखने का निर्णय लिया. स्कूल की इस घटना ने बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन की दिशा तय कर दी.
जाति आधारित भेदभाव का सामना करने के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से विज्ञान में इंटर की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की और तत्पश्चात, कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की. जगजीवन राम ने छात्र कार्यकर्ता और स्वतंत्रता  सेनानी के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन आरंभ किया.
बाबू जगजीवन राम के संसदीय जीवन का इतिहास 50 साल का रहा है, जो एक विश्व रिकॉर्ड है. वे नेहरू, शास्त्री, इंदिरा, मोरारजी देसाई की सरकारों में मंत्री रहे. उन्होंने जिस किसी भी मंत्रालय का कार्यभार संभाला उसे पूरी निष्ठा से निभाया.
केन्द्रीय कैबिनेट में श्रम मंत्री, खाद्य एवं कृषि मंत्री और रक्षा मंत्री रहने के दौरान उनके योगदान को अभी भी याद किया जाता है. कृषि मंत्रालय के शीर्ष पर आसीन रहने के दौरान पहली हरित क्रांति के युग में उनके अभूतपूर्व योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. पाकिस्तान के साथ 1971  के युद्ध में वह रक्षा मंत्री थे इस दौरान उनकी सामरिक सूझबूझ और नए बांग्लादेश के निर्माण में उनके किरदार को भी नहीं भुलाया जा सकता है.
1938 से 1979 तक लगातार कैबिनेट के सदस्य बने रहने का रिकॉर्ड भी जगजीवन राम के नाम पर है. 1946 में नेहरूजी की प्रोविजनल कैबिनेट में जगजीवन राम सबसे युवा मंत्री के रूप में शामिल हुए थे. जनता के साथ-साथ वो सांसदों के बीच भी लोकप्रिय बने रहे. 1977 में जब इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से संवैधानिक संकट पैदा हुआ था, तब सबसे पहले इंदिरा गांधी जगजीवन राम से मिलने उनके निवास पर गईं थीं. इंदिरा ने उनसे वादा किया था कि यदि उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा तो वो ही अगले प्रधानमंत्री होंगे.
बाबूजी हमेशा कांग्रेस पार्टी के भरोसेमंद सिपहसालार रहे, लेकिन इमेरजेंसी ने उन्हें भी मायूस किया.उसके बाद उनके बगावती तेवर भी देखने को मिले. उन्होंने 1977 में खुद को कांग्रेस से अलग कर लिया और कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम की एक पार्टी का गठन किया. इमरजेंसी के बाद होने वाले चुनावों में वे इस पार्टी को विपक्ष में एक विकल्प तौर पर देखते थे. मगर जय प्रकाश के आग्रह पर उन्होंने जनता पार्टी के साथ खुद को जोड़ना सही समझा.
जनता पार्टी के सत्ता पर आसीन होने के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश कि, लेकिन सत्ता की इस दौड़ में वो मोरारजी देसाई से हार गए. नतीजा मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और बाबू जगजीवन राम को उप प्रधानमंत्री पद से संतोष करना पड़ा. 1977 में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद जगजीवन राम की सत्ता की लड़ाई चौधरी चरण सिंह से शुरू हो हुई,चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने और इस बार भी जगजीवन राम प्रधानमंत्री के पद पर आसीन नहीं हो पाए.
संसदीय दल की तरफ से उन्हें बहुमत के बावजूद भी तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी की तरफ से प्रधानमंत्री की शपथ नहीं दिलाई गई. दूसरी बार भी प्रधानमंत्री की होड़ में पीछे रह जाने के कारण बाबूजी बेहद निराश हुए. जगजीवन राम ने इसके लिए अपनी नीची जाति के साथ होने वाले भेद-भाव को दोष दिया.अपने जीवन के अंतिम सालों में बाबूजी चाहते थे कि वो फिर से कांग्रेस पार्टी में शामिल हों, लेकिन इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को यह स्वीकार नहीं था.
बाबू जगजीवन राम ने दलित होने के नाते बचपन से ही सामाजिक स्तर पर होने वाले भेदभाव का सामना किया था, लेकिन इस भेदभाव के खिलाफ लड़ाई करते हुए उन्होंने कभी भी किसी समुदाय के प्रति दुराभाव नहीं दिखाया. रेल मंत्री के रूप में उन्होंने रेलवे स्टेशनों पर हिंदू और मुस्लिम पानी की व्यवस्था को खत्म कर के दलित महिला को पानी पिलाने के लिए नियुक्त किया था.