अमृतसर रेल हादसा जिसमें लगभग सौ लोगों की जान चली गयी न तो भारत के रेल इतिहास का पहला हादसा है और न यह अंतिम हादसा होगा। ऐसे हादसे हर साल भारत मे कहीं न कहीं होते रहते हैं, हम सब भी शोक संवेदना, व्यक्त कर, कभी रेल को कोस कर तो कभी किस्मत को कोस कर इतिश्री कर लेते हैं। बेरहम वक़्त लंबे समय तक कुछ याद भी तो नहीं रहने देता !
अमृतसर हादसा एक धार्मिक मेले के आयोजन से जुड़ा हादसा है। अमृतसर में एक स्थान पर दशहरा का मेला लगा था। रावण दहन का कार्यक्रम था। रावण दहन हुआ और जब लपटें तेज़ हुयी तो भीड़ खिसक कर रेल लाइन पर आ गयी। उसी समय एक रेल गुजरी और सौ लोग कट मरे। यही घटना मोटे तौर पर घटी है। अब गलती रेल की है या, मेले के आयोजकों की या स्थानीय प्रशासन की यह तो जांच का विषय है पर प्रथम दृष्टया इस मामले में गम्भीर लापरवाही मेले के आयोजकों और स्थानीय प्रशासन द्वारा की गयी है।
दशहरा कोई पहली बार यहां नहीं मनाया गया है और न ट्रेन ही पहली बार यहां से गुजरी है। किसी भी क्षेत्र में कौन सा त्योहार, मेला कैसे मनाया जाय इसका पूरा विवरण उस क्षेत्र के थाने में दर्ज होता है और जिस अभिलेख में यह दर्ज होता है उसे त्योहार रजिस्टर करते हैं। उसमें उस स्थान का विवरण, संभावित भीड़, आयोजन का इतिहास, आयोजकों का नाम और सुरक्षा के किये गए प्रबंध और सावधानियां आदि दर्ज होती हैं। हर त्योहार की समाप्ति के बाद उसकी टिप्पणी में कुछ असामान्य बात घटी हो तो उसका भी उल्लेख किया जाता है। अमृतसर के जिस थाना क्षेत्र में यह दुर्घटना हुई है वहां के त्योहार रजिस्टर में यह सारा विवरण दर्ज होगा। इस आयोजन के पहले स्थानीय पुलिस ने कोई कार्यवाही की है या नहीं यह मैं नहीं बताऊंगा। मैंने एक निर्धारित प्रक्रिया बतायी है।
जो खबरे आ रही हैं उसके अनुसार इस आयोजन की मुख्य अतिथि, सांसद नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी जो एक चिकित्सक भी हैं, थीं। उनका भाषण होना था और उसके बाद रावण दहन का कार्यक्रम था। भाषण हुआ जो लम्बा था और फिर रावण दहन हुआ तो तेज़ आग भड़की और लोग दूर हो कर रेल की पटरी जो अक्सर ज़मीन की सतह से थोड़ी ऊपर चलती है के पास और ऊपर चढ़ गए। रात का समय था। रेल आयी और लोग कटते चले गए। यह संख्या 100 तक पहुंची या अधिक है इस पर सभी न्यूज़ चैनल अलग अलग आंकड़े दे रहे हैं । सरकार 60 का आंकड़ा दे रही है। संख्या निश्चित रूप से इससे अधिक ही होगी।
अब यहां गलती मूलरूप से आयोजकों की है। स्थानीय होने के नाते उन्हें यह भलीभांति पता होगा कि, यहां से रेल गुजरती है और उसका भी कमोबेश यही टाइम होगा जो मेले का। भीड़ का भी अंदाजा उन्हें होगा क्यों कि शाम का समय है और छुट्टी होने के कारण भारी संख्या में लोग आ सकते हैं। उन्हें रेल की पटरी तक कोई न जाय इसके लिये अस्थायी बैरिकेडिंग करानी चाहिये थी और कुछ वालंटियर लगाने चाहिये थे। यह फाटक वाली क्रासिंग है तो निश्चित ही वहां गेटमैन होगा जिसके पास रेलवे संचार साधन भी रहता है उसके माध्यम से अगर पटरी पर लोग आ ही गये हैं तो रेलवे केबिन को कह कर ट्रेन की गति कम की जा सकती है या उसे रोका जा सकता है और फिर जब लोगों से ट्रैक खाली कराया जा सकता था। ऐसे सभी समारोहों में जो बहुतायत की संख्या में एक थाने के क्षेत्र में हो रहे हैं पुलिस व्यवस्था इतनी नहीं होती है कि वह इतनी बड़ी भीड़ संभाल ले। हो सकता है यहां भी थोड़ी बहुत पुलिस रही हो पर बिना उचित बैरिकेडिंग और योजना के ऐसे आयोजनों को निरापद केवल पुलिस के जवानों के बल पर नहीं बनाया जा सकता है।
रेल दुर्घटनाओं की एक नियति यह होती है कि रेलवे का संरक्षा या सुरक्षा आयुक्त इसकी जांच करता है और रेलवे का क्लेम विभाग कुछ मुआवजा देता है और राज्य सरकार भी कुछ मुआवज़े की घोषणा कर देती है पर जिनकी गलती से यह दुर्घटना घटी है वे बच जाते हैं। धीरे धीरे समय सब भुला देता है। हम दुर्घटनाओं को कभी गंभीरता से नहीं लेते हैं चाहे वे सड़क दुर्घटना हो या रेल दुर्घटना। दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या देश मे होने वाली हत्याओं की संख्या से अधिक है। मुआवज़े भी एक प्रकार से बला टालने की प्रक्रिया ही होती है। सभी रेल दुर्घटनाओं पर स्थानीय थाने में दुर्घटना और दुर्घटना जन्य मृत्यु के बारे में मुकदमा कर के उसकी पुलिस जांच होनी चाहिये। विशेषकर ऐसी दुर्घटनाओं में जहां इतनी अधिक संख्या में लोग हताहत हुए हों। सड़क दुर्घटना में मुक़दमे कायम होते हैं। पर रेल दुर्घटना में नहीं। रेल दुर्घटना में जांच के बाद यदि रेल कर्मचारियों की कोई गलती मिलती है तो उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही तो होती है पर उस दुर्घटना के आपराधिक कृत्य जिसके कारण किसी की जान चली गयी है कोई पुलिस जांच नहीं होती है जो होनी चाहिये। इस मामले में भी आयोजको के विरुद्ध मुकदमा कायम होना चाहिये।
अमृतसर रेल हादसे की जिम्मेदारी आयोजकों और स्थानीय प्रशासन की है। रेल तो अपनी पटरी पर अपने निर्धारित समय पर जाएगी ही। रेल का ड्राइवर रेलवे सिग्नल देख कर चलने का आदी होता है। अगर पटरी पर कुछ असामान्य उसे दिखता भी है तो, तेजी से चलती रेल को अचानक रोका भी नहीं जा सकता है। इमरजेंसी ब्रेक हर गाड़ियों में लगाया भी नहीं जा सकता है। इससे और बड़ी दुर्घटना हो सकती है। रेल पलट भी सकती है। रेल पटरी के निकट रावण दहन का कार्यक्रम रखना ही था तो रेलवे ट्रैक की तरफ भीड़ न जाये इसकी भी व्यवस्था करनी चाहिये थी। रेलपथ की ओर बैरिकेडिंग होनी चाहिये थी। स्थानीय प्रशासन को रेल विभाग से भी सामंजस्य बनाये रखना चाहिये था। रावण दहन और रेल के गुजरने का अगर एक ही समय है तो रेलवे से बात करके उसे निरापद बनाया जा सकता था। रेल को काशन देकर पहले से ही रावण दहन के समय अत्यंत धीरे से गुजारा या अस्थायी रूप से थोड़ी देर के लिये रोका भी जा सकता था। टीवी पर जैसा दिख रहा है, वहां रोशनी का भी पर्याप्त अभाव है। इस हृदयविदारक दुर्घटना में 50 से 60 लोगो के मरने की खबर आ रही है। कुछ चैनल की खबरों में यह संख्या 100 से 150 तक बतायी जा रही है। यह संख्या औऱ बढ़ती है या फिर स्थिर रहती है यह तो बाद में ही पता चलेगा।
रेलवे पटरियों के बारे में हमारी जागरूकता बहुत ही कम है। चाहे बिना फाटक की क्रासिंग हो या कस्बे गांव से गुजरती रेल लाइम, हम यह भी भूल जाते हैं कि रेलवे ट्रैक पर जाना, उसे अनिर्धारित स्थान से पार करना, उस पर बैठ कर गप्प लगाना रेलवे एक्ट में दंडनीय अपराध है। अक्सर हम बंद क्रासिंग के नीचे से लोगों को पैदल, सायकिल या बाइक से निकलते देखते हैं। लोग इसे एक एडवेंचर के रूप में भी लेते हैं। ऐसी दुर्घटनाएं अक्सर शहरी क्रासिंग पर होती है। यह अजागरूकता तो नागरिक चेतना का अभाव है । जांच तो इस घटना की होगी ही। रेलवे भी करेगी और राज्य सरकार भी। पर दोषी कौन होता है और सज़ा किसे मिलती है यह देखना है। आयोजको को उनकी लापरवाही के लिए ज़रूर दंडित करना चाहिये। जांच में अगर दोषी मिल जाय, और उसका दोष भी निर्धारित हो जाय तथा वह दंडित भी हो जाय तो भी जिनके घर इस दुर्घटना में उजड़ गये हैं वे तो दुबारा नहीं आ सकते हैं।
अब बात कुछ आंकड़ों की पढ़ लें। पिछली दस रेल दुर्घटनाओं का यह विवरण पढ़ लें जिसमे सब मिला के सौ से अधिक लोग मारे गए हैं। आखिर हम इन दुर्घटनाओं पर कब चिंतित होंगे और कब सोचेंगे।
ये आंकड़े हैं ~
- 20 नवंबर 2016 को उत्तर प्रदेश के कानपुर के पास पुखरायां में बड़ा रेल हादसा हुआ. इसमें 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 200 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।
- 22 जनवरी 2017 को हीराखंड एक्सप्रेस आंध्र प्रदेश के विजयानगरम जिले में पटरी से उतर गई थी. इस दुर्घटना में करीब 39 यात्रियों की मौत हो गई थी और 36 लोग घायल हुए थे।
- 5 अगस्त 2015 में मध्य प्रदेश के हरदा के करीब एक ही जगह पर 10 मिनट के अंदर दो ट्रेन हादसे हुए. इटारसी-मुंबई रेलवे ट्रैक पर दो ट्रेनें मुंबई-वाराणसी कामायनी एक्सप्रेस और पटना-मुंबई जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गईं. माचक नदी पर रेल पटरी धंसने की वजह से हरदा में यह हादसा हुआ और 31 लोगों की जान चली गई।
- 20 मार्च 2015 को देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी. इस हादसे में 34 लोग मारे गए थे. यह हादसा रायबरेली के बछरावां रेलवे स्टेशन के पास हुई हुआ था।
- 25 मई 2015 को कौशांबी के सिराथू रेलवे स्टेशन के पास मूरी एक्सप्रेस हादसे का शिकार हुई थी. हादसे में 25 यात्री मारे गए थे, जबकि 300 से ज्यादा घायल हुए थे.
- 19 अगस्त 2017 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में उत्कल एक्सप्रेस पटरी से उतर गई, जिसमें 22 लोगों की मौत हो गई और 156 से ज्यादा लोग घायल हो गए.
- 26 मई, 2014 को उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में चुरेन रेलवे स्टेशन के पास गोरखधाम एक्सप्रेस ने एक मालगाड़ी को उसी ट्रैक पर टक्कर मार दी. इस हादसे में 22 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.
- 25 जुलाई 2016 को भदोही इलाके में मडुआडीह-इलाहाबाद पैसेंजर ट्रेन मिनी स्कूल वैन टकरा गई. जिसमें 10 स्कूली बच्चों की मौत हो गई है। इस वैन में 19 बच्चे सवार थे.
- 10 अक्टूबर 2018 को रायबरेली के हरचंदपुर रेलवे स्टेशन के पास 14003 न्यू फरक्का एक्सप्रेस ट्रेन (New Farakka Express) दुर्घटनाग्रस्त हो गई. मालदा टाउन से नयी दिल्ली जा रही इस ट्रेन के इंजन सहित नौ डिब्बे पटरी से उतर गए.इस हादसे में सात लोगों की मौत हो गई थी.
- 17 मार्च 2017 को बंगलुरु के चित्रादुर्गा जिले में एक एंबुलेंस की ट्रेन से भिड़ंत होने के चलते चार महिलाओं की मौत हो गई.
© विजय शंकर सिंह