एयरचीफ मार्शल जिन्होंने कलाम को कांपते हुए सलाम किया

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अर्जन सिंह, (arjan singh) भारतीय वायु सेना के एकमात्र ऐसे अधिकारी थे जिन्हें पांच सितारा रेंक से नवाजा गया था। उन्हें 1965 के भारत-पाक युद्ध (indo-pak war 1965) में अपनी असीम क्षमता, अभूतपूर्व नेतृत्व और बहादुरी के लिए जाना जाता है। उन्होंने 19 साल की उम्र में सेना कॉलेज में दाखिला लिया। वहीं 44 की उम्र में एयरफोर्स चीफ बने। अर्जन सिंह को भारत का पहला एयरचीफ मार्शल बनने का गौरव भी प्राप्त है। साल 2017 में अर्जन सिंह की मौत दिल्ली के आर्मी अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।

अर्जन सिंह के सम्मान में जारी की गई थी प्रशस्ति:

अर्जन सिंह का जन्म 15 जुलाई 1919 में पंजाब के ल्याल पुर (आज के पाकिस्तान में) में हुआ था। विभाजन के बाद अर्जन परिवार के साथ हिंदुस्तान में आ गए। उन्हें पंजाब में आदमपुर के पास चिरूवाली में 80 एकड़ जमीन दी गयी थी। 19 साल की उम्र में अर्जन ने रॉयल एयरफोर्स कॉलेज क्रेनवेल में एडमिशन लिया और पायलट की ट्रेनिग ली। उन्होंने 1939 में अपनी उच्च शिक्षा पूरी की थी।

1944 का समय था, जब अर्जन ने स्कावर्डन 1 जॉइन की। इसी समय दक्षिण पूर्व एशिया में चल रहे अरकान अभियान में उन्होंने स्कावर्डन 1 का नेतृत्व किया था। जिसके लिए अर्जन को जून 1944 में डीएफसी ( Distinguished Flying Cross) से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें दक्षिण पूर्व एशिया के सर्वोच्च सहयोगी कमांडर लॉर्ड माउंटबेटन ने दिया था। इसके लिए बाकायदा एक प्रशस्ति पत्र जारी किया गया था।

 



अर्जन सिंह ने बाद में पुरुस्कार के बारे में कहा था, “अपनी स्कावर्डन के सामने एक युवा के तौर पर पदक प्राप्त करना बहुत ही संतुष्टि की बात है, मैं स्कावर्डन का हिस्सा था और वो मेरा हिस्सा थे।


युद्ध में पाकिस्तान को खानी पड़ी थी मुहँ की:

1965 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए अखनूर पर अचानक हमला कर दिया था। तब आर्मी चीफ के साथ अर्जन सिंह रक्षामंत्री से मिलने पहुंचे थे। उस समय रक्षामंत्री वाईबी चव्हाण थे। उन्होंने अर्जन से एक ही बात पूछी थी कि आप कब तक पाकिस्तान पर हमला कर सकते हैं।

इसके जवाब में अर्जन ने एक घंटे का समय बोला था। लेकिन सिर्फ 26 मिनट में ही अर्जन और उनकी वायु सेना पाकिस्तान पर चढ़ाई करने पहुंच गई। जिसके बाद अखनूर में आगे बढ़ रहे पाकिस्तानी टैंकों पर हमला कर उन्होंने दुश्मन की सेना को खदेड़ दिया। इस दौरन पाकिस्तान को मुहँ की खानी पड़ी थी, हालांकि अर्जन को इस बात का अफसोस हमेशा रहा कि युद्ध बहुत जल्द खत्म हो गया था।


नहीं हो पाया था अर्जन सिंह का कोर्ट मार्शल:

वायु सेना में जब भी कोई सैनिक अनुशासन तोड़ता है। या फिर भंग करता है तो उसका कोर्ट मार्शल किया जाता है। एक मौका ऐसा भी आया था जब अर्जन का कोर्ट मार्शल किया गया था। लेकिन अंग्रेज़ उन पर कोई भी एक्शन नहीं ले पाए थे।

दरअसल, फरवरी 1945 में अर्जन करेल के कन्नूर एयर स्ट्रिप पर तैनात थे। उस समय एयरफोर्स अंग्रेज़ो के अधीन थी। अर्जन केरल के रिहायशी इलाके में बहुत नीचे प्लेन उड़ा रहे थे। जिसके लिए उनका कोर्ट मार्शल किया गया। लेकिन अर्जन ने अपना बचाव करते हुए कहा कि वो एक ट्रेनी पायलट दिलबाग सिंह का मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहे थे। गौरतलब है की यही दिलबाग सिंह बाद में भारत के एयर चीफ मार्शल बने।

रिटायर सैनिकों के लिए बेच दी थी अपनी संपत्ति:

अर्जन सिंह ने रिटायर सैनिकों के लिए अपनी दिल्ली की सारी संपति को बेच कर दो करोड़ की राशि जमा की थी और उन्होंने इस पूरी संपत्ति कोरिटायर हो चुके सैनिकों की भलाई के लिए लगा दिया। इसके लिए अर्जन ने एक ट्रस्ट की स्थापना की थी। 1947 में आज़दी के बाद पहली बार दिल्ली में लाल किले के ऊपर रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स (RIAF) विमान के पहले फ्लाई-पास्ट का नेतृत्व किया।  इसके बाद उन्होंने ग्रुप कैप्टन के पद पर वायु सेना स्टेशन, अंबाला की कमान संभाली थी।

अब्दुल कलाम को व्हील चेयर पर श्रंद्धाजलि देने पहुंचे थे:

अर्जन सिंह, डॉ अब्दुल कलाम आज़द का बेहद सम्मान किया करते थे। 25 जुलाई 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे अब्दुल कलाम की तबियत 2015 में अचानक मेघालय के शिलांग में खराब हो गयी थी। कलाम शिलांग में एक कार्यक्रम में पहुंचे थे।

जहाँ अचानक ये तबियत बिगड़ गयी, इसके बाद उनकी मृत्यु हो गयी थी। जब उनका पार्थिव शरीर दिल्ली लाया गया था, तब अर्जन सिंह भी उन्हें श्रद्धांजलि देने एयरपोर्ट पहुंचे थे। अर्जन की भी तबियत कुछ खास नहीं थी, फिर भी व्हील चेयर पर एयरपोर्ट पहुंचे और अपने पैरों पर खड़े होकर उन्होंने कालम को सेल्यूट किया। अर्जन का शरीर उस वक्त कांप रहा था।

अर्जन की विरासत

अर्जन सिंह की मृत्यु के बाद उनके 2019 में उनके सम्मान में भारतीय डाक विभाग ने एक डाक टिकट जारी किया था। वहीं 14 अप्रैल 2016 को अर्जन के 97वें जन्मदिन पर एयर चीफ मार्शल अरूप राहा की घोषणा के बाद पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में वायु सेना अड्डे का नाम बदलकर “वायु सेना स्टेशन अर्जन सिंह” कर दिया गया।

उनके सम्मान में वायु सेना खेल नियंत्रण बोर्ड एक वार्षिक मार्शल अर्जन सिंह मेमोरियल अखिल भारतीय हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन करता है । अर्जन सिंह को वायु सेना के मार्शल के रूप में पांच सितारा रेंक प्राप्त थी। ये थल सेना में फील्ड मार्शल की रेंक के बराबर है।

98वें की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया:

16 सितंबर 2017 को दिल्ली के आर्मी अस्पताल में उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। अस्पताल में उनकी तबियत बेहद नाजुक थी, वहीं अस्पताल में उनकी हालत को गंभीर करार दिया गया।

इसके बाद 98वें की उम्र में अर्जन सिंह ने आखिरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया। 15 जुलाई 1969 में रिटायरमेंट के बाद अर्जन एक राजनायिक, नेता और भारत सरकार के रक्षा सलाहकार के तौर पर कार्यरत रहे थे। स्विट्जरलैंड और होली सी में भारत के राजदूत रहे थे, वहीं 1989 से 1990 तक दिल्ली के उपराज्यपाल रहे थे।

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