पीड़ित पक्ष के लिए, भारत के संविधान प्रदत्त यह फंडामेंटल राइट है। इसे सवैधानिक उपचारों का अधिकार कहते हैं। इसके तहत आप सरकार या अन्य पक्ष के विरुद्ध कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। सरकार का, व्यवस्था की ड्यूटी है, की वह आपको न्याय दे। इसलिए ही आप इस व्यवस्था का खर्च उठाते है, की वक्त पड़ने पर यह व्यवस्था आपका साथ दे।
कृषि के मौजूदा कानून में किसान का यह मूल नागरिक हक छीन लिया गया है। किसी कम्पनी ने अनुबंध कर आपसे माल खरीदा, पैसा नही दिया, या क्वालिटी का बहाना कर कम पैसा दिया। किसान न्याय के लिए एसडीएम के पास जाएगा। एसडीएम फैसला करेगा।
हांजी, अरबो के साम्राज्य वाले कारपोरेट से लाख पचास हजार दिलाने के लिए करीमुद्दी पुर का एसडीएम फैसला देगा। कम्पनी मानेगी, यह सुंदर कल्पना इस एक्ट में है। बहाना ये, कि कोर्ट में मामले लम्बे खिंचते है। असल मे किसान के सारे अधिकार छीनकर उसे भूखे शेरो के सामने डाल दिया गया है। उसे शासन का कोई संरक्षण नही। न न्यूनतम मूल्य की गारंटी, न धोखे ठगी से सुरक्षा। साफ कहिये, किसान की अस्थि मज्जा का सौदा हो चुका है।
यह सरकार हर काम गलत ही करती है, ऐसा नही है। सरकार कोई एक आदमी नही। ऐसे बिल भी एक्सपर्ट और अनुभवी अफसर बनाते हैं। अच्छे प्रावधान रखते हैं। मगर जब यह ड्राफ्ट ऊपर जाता है, उसमे कहीं कहीं शून्य डाल दिये जाते हैं। याने समझिये। 736463792+ 7493008646 ×646289274 ×0× 846802000 +95893022 की वैल्यू क्या होगी? बहुत बड़ी हो सकती थी, अगर बीच मे वो शून्य न होता। शून्य से गुणा होकर अब इस समीकरण की वैल्यू शून्य है।
इसी तरह के एक दो क्लॉज हर कानून, पॉलिसी के लंबे लम्बे दस्तावेजों के बीच कही कहीं इस तरह डाले जाते हैं, की उसका फायदा इस गवर्नमेंट के असल मालिकों तक को निर्बाध पहुंच जाए। तो जाहिर है, जब ड्राफ्ट कार्पोरेट घरानों के अप्रूवल के लिए भेजा गया होगा। मालिकान ने कोर्ट की जगह एसडीएम से फैसला करवाना आसान समझा। उन्हें पता है, किसकी कीमत सस्ती है, उसका नाम लिया। और फिर, संसद ने ध्वनिमत से किसान को एक आम भारतीय के रूप में मिले फंडामेंटल राइट को स्क्रैप कर दिया।