सुचेता कृपलानी इस देश की सबसे ताकतवर राजनेत्रियों में से एक रहीं हैं। जिस समय हमारे देश में लोग महिलावाद का के नाम से परिचित नहीं थे, उस समय सुचेता कृपलानी ने इस देश में अपनी काबिलियत का न सिर्फ लोहा मनवाया बल्कि भारत और उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून 1908 को अंबाला में हुआ। उसी समय भारत में भारतीय आंदोलनों के लिए बड़े क्रांतिकारी तैयार हो रहे थे। और सुचेता भी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं। जिन्होंने इस देश के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी।
सुचेता कृपलानी जन्म से एक बंगाली थीं। उनका पूरा नाम सुचेता मजूमदार था। कृपलानी उपनाम उनके पति जेबी कृपलानी से उन्हें मिला। सुचेता और जेबी कृपलानी की प्रेम कहानी अपने आप में अनोखी थी। आपके मन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि इनकी प्रेम कहानी इतनी खास क्यों है? या गांधी इनकी शादी इसे इतने नाराज क्यों थे? इन सभी सवालों का जवाब हम आपको सिलसिलेवार ढंग से देंगे। आइए जानते हैं सुचेता कृपलानी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से।
डॉक्टर थे सुचेता कृपलानी के पिता
सुचेता कृपलानी के पिता एसएन मजूमदार एक डॉक्टर थे, वह अपने देश से बेहद प्रेम करते थे। और इसी जज़्बे के साथ उन्होंने सुचेता और उनकी बहन सुलेखा मजूमदार की परवरिश की। पढ़ाई की बात करें तो सुचेता ने अपनी स्कूली पढ़ाई अनेकों स्कूलों से पूरी की, क्योंकि इनके पिता का लगातार तबादला होता रहता था। स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद सुचेता ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में विषय में स्नातक किया।
21 साल की उम्र में पिता और बहन की हो गई थी मृत्यु
सुचेता अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना चाहती थीं, लेकिन मात्र 21 साल में उनके पिता का साया उनके सर से उठ गया, साथ ही उनकी बहन सुलेखा का भी निधन हो गया। जिसके चलते वो स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं ले पाईं।
देश भक्ति के जज़्बे में ठुकराया अधिक वेतन
सुचेता पढ़ाई के बाद प्रोफेसर बन गईं। नौकरी के लिए सुचेता की दो जगहों से ऑफर आया था। पहला लाहौर यूनिवर्सिटी। दूसरा बनारस हिंदू युनिवर्सिटी। लाहौर यूनिवर्सिटी में सुचेता को ज्यादा वेतन दिया जा रहा था। लेकिन उन्होंने बनारस युनिवर्सिटी का ऑफर स्वीकार किया। दरअसल, सुचेता कृपलानी ये जानती थीं कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में छात्र देश की आजादी के लिए खुद आगे आते हैं। वहां की मिट्टी में देश भक्ति रमी हुई है। इसलिए सुचेता कृपलानी ने कम वेतन लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में पढ़ाया। वो यहां पर इतिहास पढ़ाया करती थीं साथ ही अपनी क्लास में छात्रों को आजादी के आंदोलनों के बारे में जरूर पढ़ाती थीं।
बीएचयू में जेबी कृपालनी से हुई मुलाकात
बीएचयू में पढ़ाने के दौरान यहीं उनकी मुलाकात जेबी कृपलानी से हुई। उस समय जेबी कृपलानी भी बीएचयू में बतौर प्रोफेसर काम किया करते थे। धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ गईं और दोनों प्रेम के अटूट बंधन में बंध गए।
गांधी जी के खास थे जेबी कृपलानी
जेबी कृपलानी को आचार्य कृपलानी के नाम से भी जाना जाता है बीएचयू में प्रोफेसर होने के साथ आचार्य एक बड़े स्वतंत्रता सेनानी भी थे। आचार्य गांधी जी के दाहिने हाथ कहे जाते थे। लेकिन, जब आचार्य सुचेता के साथ प्रेम में पड़ गए, तो गांधी जी बड़े नाराज हुए। गांधी जी नहीं चाहते थे कि सुचेता और आचार्य कृपलानी एक साथ रहें।
इसलिए नाराज से थे गांधी
कहते हैं कि ज़माना हमेशा प्यार का दुश्मन रहा है। लेकिन अगर गांधी जी जैसे सुलझे हुए और आधुनिक सोच के लीडर किसी के प्रेम पर आपत्ति करें, तो ये काफी सोचने वाली बात है। दरअसल, आचार्य एक निष्ठावान गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे। गांधी जी को उम्मीद थी कि आचार्य कृपलानी केवल देश को ही प्राथमिकता देंगे। आचार्य और सुचेता की उम्र में काफी ज्यादा अंतर था। जब सुचेता का जन्म हुआ इस समय आचार्य 20 वर्ष के युवा थे। और जब सुचेता के घरवालों और गांधी जी को इन दोनों के संबंध के बारे में पता चला तो, वो बेहद निराश और नाराज थे। क्योंकि गांधी जी को आचार्य से जो उम्मीद थी, वो उन्हें टूटती हुई दिख रही थी। गांधी जी को लग रहा था कि अगर आचार्य गृहस्थ जीवन में पड़ गए तो वह देश को प्राथमिकता देना छोड़ देंगे।
सुचेता ने उठाया गांधी जी को मानने का बीड़ा
जब गांधी आचार्य और सुचेता के विवाह के लिए राजी नहीं हुए, सुचेता ने गांधी जी को मनाने का बीड़ा उठाया। सुचेता गांधी जी के पास गईं और कहा, “अगर मैं आचार्य से शादी न करूं, तो ये उनके साथ धोखा होगा। आपको परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। आपको दो कर्मचारी और मिल जायेंगे।” तब गांधी जी दोनों के विवाह के लिए राजी हुए।
शादी के बाद राजनीति में रखा कदम
सुचेता और कृपलानी की शादी 1938 में हुई थी। शादी के बाद सुचेता ने राजनीति में कदम रखा। राजनीति में आने के बाद उन्होंने 1940 महिला कांग्रेस की स्थापना की। इसके बाद वो संविधान सभा सदस्य भी रहीं। संविधान सभा में उस वक्त केवल 15 महिलाएं थीं, जिनमें सुचेता कृपलानी का नाम भी शामिल है।
भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं सुचेता कृपलानी
कई सालों तक लगातार सांसद रहने के बाद सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। दरअसल, के कामराज ने एक योजना बनाई थी। उनका कहना था कि कांग्रेस के बड़े लीडर अपने पद से इस्तीफा देकर देश और जनता के लिए काम करें। इसी के प्रभाव से तत्कालीन मुख्यमंत्री सीबी गुप्ता ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद कमला पति त्रिपाठी मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन सीबी गुप्ता नहीं चाहते थे कि कमलापति त्रिपाठी मुख्यमंत्री बनें। इसलिए उन्होंने सुचेता कृपलानी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ा दिया। फिर 1963 से 1967 तक सुचेता कृपलानी ने उत्तर प्रदेश में बतौर देश की पहली महिला मुख्यमंत्री अपना शासन चलाया।