आखिर ऐसा क्या है Marakkar में, जो मिल गया नेशनल अवार्ड

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मोहनलाल की फ़िल्म Marakkar को सर्वश्रेष्ठ मूवी का अवार्ड मिला है, ये फ़िल्म उन मुस्लिम नाविकों पर बेस्ड है, जिन्होंने सौ साल तक पुर्तगालियों से संघर्ष किया था। इस फ़िल्म के पीछे की स्टोरी कुछ यूँ है।

व्यापार के सिलसिले में वास्को डी गामा 20 मई 1498 ईस्वी को भारत में आया था। वह कालीकट के क्षेत्रीय राजा ज़मोरिन से मिला और वापस चला गया।

ज़मोरिन तो ख़ुद पुर्तगालियोँ का विरोधी था पर उसका भतीजा और कुछ लोकल सौदागर ने पुर्तागालियोँ का साथ दिया इस वजह कर सन् 1500 में पुर्तगालियों ने कोचीन के पास अपनी कोठी बनाई। बादशाह ज़मोरिन से उसने कोठी की सुरक्षा का भी इंतजाम करवा लिया क्योंकि अरब व्यापारी उसके ख़िलाफ़ थे। इसके बाद कालीकट और कन्ननोर में भी पुर्तगालियों ने कोठियाँ बनाई। उस समय तक पुर्तगाली भारत में अकेली यूरोपी व्यापारिक शक्ति थी। उन्हें बस अरबों के विरोध का सामना करना पड़ता था।

वास्को डी गामा 1502 ईस्वी में, भारत की यात्रा पर वापस आया और भारत के व्यापारियों और निवासियों के साथ नौसेना युद्घ शुरू कर दिया. ठीक उसी समय में पुर्तगालियों ने नरसंहार कर गोवा पर अपना अधिकार कर लिया। ये घटना जमोरिन को पसन्द नहीं आई और वो पुर्तगालियों के ख़िलाफ़ हो गया।

ज़मोरिन ने इस जंग कि ज़िम्मेदारी मोहम्मद नाम के कुन्हाली को दी, जो बहोत बहादुर था इसने पुरी जहाज़ी बेड़ा को संगठित किया और जंग मे लग गया, इसी बीच ज़मोरिन के भतीजे के साथ मिलकर पुर्तागालियोँ ने ज़मोरिन को मारना चाहा पर वफ़दारी का सबुत पेश करते हुए कुनहाली मरक्करोँ ने ज़ेमोरिन के साथ साथ उसके रियासत की भी हिफ़ाज़त की।

हिन्दू राजा Zamorin (Samoothiri) के द्वारा ‘मरक्कर’ का ख़िताब उन मुस्लिम नाविक योद्धाओं को दिया गया था जिन्होने पुर्तगालियो से बादशाह के जान की हिफ़ाजत की और पुर्तगालियों के खिलाफ़ कालीकट केरला में दशकों तक विद्रोह किया था। मराक्कर मलयालम ज़ुबान का एक लफ़्ज़ है जिसमे ‘मरक्कालम’ यानी ‘नाव’ और ‘कर’ यानी ‘समर्पित होना’ आता है।

ये युद्ध 1502 से 1600 ई तक चला , 98 साल तक चलने वाली ये जंग एक आंदोलन का रुप ले चुका था, जो यूरोप के खिलाफ लड़ा हुआ किसी भारतीय का पहला हथयार बन्द आंदोलन था, जिसे “Kunhali Marakkar” के नाम से जाना जाता है।

चुँके ये जंग 98 साल तक चली तो ये तय है कि इस आंदोलन मे कम से कम चार पुशतोँ ने तो हिस्सा लिया ही होगा , आंदोलनकरीयो मे चार नाम बहोत मशहुर हैँ.

1. Kutti Ahmed Ali – Kunhali Marakkar I
2. Kutti Pokker Ali – Kunhali Marakkar II
3. Pattu Kunhali – Kunhali Marakkar III
4. Mohammed Ali – Kunhali Marakkar IV

कुछ लोगो का मानना है अरबी सौदागर थे जो यहाँ बस गए थे और बादशाह ज़ेमोरिन की नौका सेना मे भरती हो गए थे और उसकी क़ियादत कर रहे थे।

98 साल तक चलने वाली ये जंग हिन्दुस्तानी लगभग जीतने ही वाले ही थे

लेकिन कहते हैँ ना सियासत मे कोई भी अधिक दिन तक किसी का दोस्त या दुशमन नही होता है, वही यहाँ भी हुआ और इस पुरे आंदोलन पर भी अजीबो ग़रीब सियासत हावी रही। जिस बादशाह के लिए नाविको के ख़ानदान ने नौ दहाईयोँ तक जंग करते रहे पर उसी बादशाह का वारिस पुर्तागालियोँ से जा मिलता है।

अकसर देखा गया है लोगो ने अपने बादशाह को धोका दे कर उसे हरवा या मरवा दिया है। पर कुन्हालीयोँ के साथ उल्टा हुआ , यहाँ बादशाह ने ही अपनी फ़ौज को धोका दिया और यूरोप के लोगों से मिलकर अपने ही लोग को 1600 ई° मे मरवा ड़ाला। ज़मोरीन के वारिसों ने 6000 सिपाही के साथ ज़मीनी हमला किया और पुर्तगालियों ने जहाज़ी बेड़ा से हमला कर दिया । जिसके नतीजे मे सारे कुन्हाली मारे गए और ये आंदोलन हमेशा के लिए ख़त्म हो गया।

मोहनलाल ने Mohammed Ali – Kunhali Marakkar IV का रोल अदा किया है।