आज हम सभी यह जानते हैं कि 15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबानियों का कब्जा हो गया था। तभी से पूरी दुनिया का एक अहम मुद्दा बन चुका है। जिसमें अफगानिस्तान में रह रहे सभी लोग देश छोड़कर जा रहे हैं। इसी बीच भारत में भी अपने नागरिकों को वहां से निकाल लिया है और भी अन्य देश अपने लोगों को जितना जल्दी हो सके वहां से निकालना चाहते हैं।
यह बात भी हम सभी जानते हैं कि भारत और अफगानिस्तान के शुरू से ही रिश्ते दोस्ताना रहे हैं। इसी बीच एक मुद्दा विवादों से घिर गया है। क्योंकि यह मुद्दा अफगानिस्तान की महिला सांसद को वापस भेजने पर उठा है । जिसमें भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर नहीं कुछ इस तरह से मुद्दे को दबाने की कोशिश की।
19 अगस्त को ही भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत का फोकस अफगानिस्तान और उसके लोगों के साथ ऐतिहासिक रिश्ते को बचाए रखने पर होगा इंडियन एक्सप्रेस ने विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि उन्हें रंगीना कारगर मामले की जानकारी नहीं थी।
दरअसल केंद्र सरकार ने गुरुवार को कहा भी है कि 20 अगस्त को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से अफगान संसद की एक महिला सदस्या को डिपोर्ट किए जाने का आदेश गलती से जारी हो गया था। सरकार ने फरयाब प्रांत का प्रतिनिधित्व करने वाली सदस्य रंगीना कारगर से भी संपर्क किया और जो कुछ हुआ उसके लिए माफी भी मांग ली है।
सरकार ने बताया कि कारगर को आपातकालीन वीजा के लिए आवेदन करने को भी कहा गया था। अफगानिस्तान की स्थिति पर विपक्ष को जानकारी देने के लिए सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में यह मुद्दा उठाया गया था।
आपको बता दें कि यह मुद्दा कांग्रेस के नेताओं में मलिकार्जुन खडगे, आनंद शर्मा और अधीर रंजन चौधरी ने सर्वदलीय बैठक में यह मुद्दा उठाया है। इस मामले को लेकर विपक्ष पार्टी के नेताओं ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से पूछा कि विदेश मंत्रालय ने अफगानिस्तान की एक अनुभवी राजनेता के खिलाफ ऐसा कदम क्यों उठाया। विपक्ष पार्टी के नेताओं का कहना है कि हमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
जब हमारे पड़ोसी देश की एक महिला सांसद शुरू से ही भारत की यात्रा करती आई है। और उनके पास राजनयिक पासपोर्ट भी था। यह हमारे लिए एक बहुत ही निंदनीय बात है। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मलिकार्जुन खडगे ने कहां की अफगानिस्तान की महिला सांसद को दिल्ली हवाई अड्डे से वापस भेजे जाने पर अपनी गलती को स्वीकार करना चाहिए और उनसे माफी मांगनी चाहिए।
अब आपको बता दें कि दरअसल पूरा मामला है क्या-
अफगान महिला सांसद रंगीना कारगर ने कहा कि उन्होंने दिल्ली हवाई अड्डे पर 20 अगस्त को सुबह 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक 16 घंटे इंतजार किया। उन्होंने बताया कि वह हमेशा से ही भारत आती-जाती रही है । परन्तु उनके साथ कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं किया गया, जैसा 20 अगस्त को उनके साथ हुआ है। उन्होंने कहा है कि उन्हें गांधी के भारत से ऐसी कोई भी उम्मीद नहीं थी। कि उनके साथ मुजरिम जैसा व्यवहार किया जाएगा।
उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस न्यू इंटरव्यू देते हुए कहा कि
मैंने इस्तानबुल से भारत के लिए उड़ान भरी थी और दक्षिणी दिल्ली के मैक्स अस्पताल में 11:00 बजे उनका एक डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट था। 20 अगस्त को घंटों इंतजार के बाद उन्हें अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से वापस भेज दिया गया। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कारगर के पास 22 अगस्त को इस्तानबुल जाने का टिकट भी था।
वो दावा करते हुए कहती हैं कि उन्हें इमीग्रेशन अधिकारियों ने रोक लिया और एयरपोर्ट से बाहर जाने नहीं दिया गया। जिसमें वे अपने परिजनों से भी संपर्क नहीं कर पा रही थी क्योंकि वहां पर उनका नेट भी नहीं चल रहा था। उन्होंने एक अधिकारी से यह भी कहा कि वे हमेशा से ही भारत अपने राजनयिक पासपोर्ट के जरिए ही आती रही है।
लेकिन अधिकारी ने उनसे माफी मांगते हुए कहा कि आपको वापस जाना पड़ेगा इसमें हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं।उन्हें भारत से डिपोर्ट कर दिया गया और उनके साथ एक अपराधी जैसा व्यवहार किया गया। उन्होंने कहा कि दुबई में उन्हें पासपोर्ट नहीं दिया गया। इस्तानबुल पहुंचने के बाद ही वापस दिया गया। रंगीना ने कहा है कि मुझे गांधी के भारत से इसकी कभी उम्मीद नहीं थी। हम शुरू से ही भारत के दोस्त रहे हैं। हमारी राजनीतिक संबंध भी बहुत अच्छे रहे हैं।
गांधीजी के देश से ऐसी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी-
रंगीना ने अपने बयान में यह भी कहा कि उनका भारत में रुकने का कोई भी इरादा नहीं था उन्होंने वापसी की भी टिकट करा रखी थी। उनको वापस भेजे जाने के बाद कथित तौर पर भारत ने दो अफगान सिख सांसद, नरेंद्र सिंह खालसा और अनारकली कोर होनारयार को अफगानिस्तान से निकाला और दोनों भारत भी पहुंचे हैं। वे पहले भी भारत की यात्रा इसी पासपोर्ट के जरिए चुकी हैं।
वे कहती हैं कि हम जानते हैं कि फिलहाल अफगानिस्तान की स्थिति राजनैतिक और आर्थिक तौर पर सही नहीं है और वहां की सत्ता भी अभी बदल चुकी है। इसी वजह से उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया इन सभी को वे राजनैतिक करण बताती हैं। साथ में उन्होंने कहा कि भारत को अफगान महिलाओं की मदद करनी चाहिए ना कि उन्हें इस तरह से घंटों इंतजार करा कर वापस भेज देना चाहिए को यहां बसने नहीं एक अपॉइंटमेंट के लिए ही आई थी।
अफगानिस्तान में जब से तालिबान का कब्जा हुआ है तब से वहां की स्थिति या पूरी तरीके से बदल चुकी है और वहां के लोग भाग रहे हैं और जो रुके हैं वह खौफ के साए में हर हर पल काट रहे हैं। क्योंकि उन लोगों को हमेशा यही डर सताता रहता है कि पता नहीं अब कौन मारा जाएगा। इसी बीच अफगान के रहने वाले लोग भारत की ओर आस लगाए देख रहे हैं।
काबुल नहीं लौट सकती
1985 में मजार ए शरीफ में पैदा हुई वह एक तुर्कमेन है और किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं है। वह खुद को एक महिला अधिकार कार्यकर्ता मानती हैं। वह कहती हैं कि वह काबुल नहीं लौट सकती, क्योंकि वहां स्थिति बदल चुकी है। उन्होंने कहा कि वो इस्तानबुल में ही रहेंगी इंतजार करेंगी कि आगे क्या होता है। तालिबान की सरकार में महिलाओं को संसद में बैठने की इजाजत मिली है या नहीं।
इस मामले को लेकर एक और कहानी सामने आ रही है सूत्रों के मुताबिक की रंगीना कारगर राजनयिक पासपोर्ट पर भारत की यात्रा करना चाहती थी और उनके पास मौजूदा प्रावधानों के तहत कोई यात्रा दस्तावेज नहीं था। गौरतलब है कि कारगर मीडिया में आरोप लगाया है कि ब्रिटिश पासपोर्ट पर पहले कई बार भारत आ चुकी है ।लेकिन इस बार उन्हें उसके आधार पर एयरपोर्ट से बड़ा जाने की इजाजत नहीं मिली और डिपोर्ट कर दिया गया कारगर 2010 से अफगानिस्तान में सांसद हैं।
माफीनामा
रिपोर्ट के अनुसार देखे तो कारगर ने बताया कि सरकार ने उनसे संपर्क किया और जेपी सिंह (विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के संयुक्त सचिव प्रभारी) ने मुझसे बात की. और जो भी कुछ हुआ उसके लिए उन्होंने माफी मांगी और मुझे ई- आपातकालीन वीजा के लिए आवेदन करने को कहा।
उन्होंने बताया कि मैंने उनसे यह भी पूछा कि जिस वीजा पर मैं शुरू से ही भारत आती-जाती रही हूं क्या वो वैध नहीं है, जिस पर कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी बेटी के लिए ई-वीज़ा की कोशिश की थी लेकिन मुझे कोई भी जवाब नहीं मिला।