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सऊदी अरब का कड़ा ऐलान: “वेस्ट बैंक पर इज़राइल की दावेदारी गैरकानूनी और अस्वीकार्य”

by Team TH · July 3, 2025

✍ रिपोर्ट: TribuneHindi डेस्क
📍 रियाद/यरुशलम | 2 जुलाई 2025

सऊदी अरब ने इज़राइल के वरिष्ठ मंत्री द्वारा दिए गए एक विवादास्पद बयान पर सख्त प्रतिक्रिया दी है।
इज़राइल के न्याय मंत्री यारिव लेविन ने हाल ही में कहा कि इज़राइल को वेस्ट बैंक पर पूरी संप्रभुता (sovereignty) लागू कर देनी चाहिए।

उनके इस बयान का आशय यह था कि वेस्ट बैंक को इज़राइल का आधिकारिक और कानूनी हिस्सा बना दिया जाए, जबकि यह इलाका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीनी क्षेत्र माना जाता है।

Arab News के अनुसार, इस पर सऊदी अरब ने कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि इस तरह के बयान:

  • अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हैं
  • मध्य-पूर्व में तनाव बढ़ाने वाले हैं
  • और फिलिस्तीनी जनता के अधिकारों को कुचलने की कोशिश हैं

सऊदी विदेश मंत्रालय का आधिकारिक बयान

सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा:

हम इज़राइली मंत्री के इस बयान की कड़ी निंदा करते हैं। वेस्ट बैंक पर संप्रभुता थोपना पूरी तरह से अस्वीकार्य है।

मंत्रालय ने यह भी कहा कि:

  • वेस्ट बैंक और यरुशलम में यहूदी बस्तियों का विस्तार स्पष्ट रूप से अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के खिलाफ है।
  • इज़राइल इस तरह के कदम उठाकर शांति प्रक्रिया को पूरी तरह खत्म कर रहा है।

वेस्ट बैंक: इतिहास और भूगोल

वेस्ट बैंक (West Bank) फिलिस्तीन का वह इलाका है जो जॉर्डन नदी के पश्चिम में स्थित है। यह क्षेत्र:

  • 1967 से पहले जॉर्डन के प्रशासन में था।
  • लेकिन 1967 के अरब-इज़राइल युद्ध के बाद इज़राइल ने इस पर कब्जा कर लिया।
  • तब से अब तक इज़राइल ने इस क्षेत्र में हजारों यहूदी बस्तियाँ (settlements) बसा दी हैं।
  • जबकि दुनिया के ज्यादातर देश और संयुक्त राष्ट्र, वेस्ट बैंक को अवैध कब्जा मानते हैं।

रायटर्स के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने कई प्रस्तावों में इस बात की पुष्टि की है कि:

“वेस्ट बैंक और यरुशलम पर इज़राइली कब्जा गैरकानूनी है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए।”


1967 की जंग और उसका प्रभाव

1967 का छह दिवसीय युद्ध (Six Day War) इज़राइल और अरब देशों (मिस्र, सीरिया, जॉर्डन) के बीच हुआ था। इस युद्ध में इज़राइल ने वेस्ट बैंक, यरुशलम, गाजा पट्टी, गोलन हाइट्स और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया।

वेस्ट बैंक और यरुशलम की स्थिति विशेष रूप से संवेदनशील रही है, क्योंकि इन्हें फिलिस्तीनी अपना ऐतिहासिक और धार्मिक क्षेत्र मानते हैं। युद्ध के बाद इज़राइल ने इस इलाके में बस्तियाँ बसानी शुरू कीं और धीरे-धीरे जमीन कब्जे में लेना शुरू कर दिया।


सऊदी अरब की ऐतिहासिक फिलिस्तीन नीति

सऊदी अरब 1948 से ही फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ा रहा है, जब इज़राइल की स्थापना हुई थी।

  • 1948, 1967 और 1973 के युद्धों में सऊदी अरब ने अरब देशों के पक्ष में भूमिका निभाई।
  • सऊदी अरब हमेशा यह मांग करता रहा है कि फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी जाए।
  • 2002 में सऊदी अरब ने ‘अरब शांति पहल’ (Arab Peace Initiative) प्रस्तुत की थी, जिसमें प्रस्ताव था कि अगर इज़राइल 1967 से पहले की सीमाओं में लौटता है, तो अरब देश उसे मान्यता देने को तैयार हो सकते हैं।

आज भी सऊदी अरब की यही मांग है: फिलिस्तीन को आज़ादी मिले और उसकी राजधानी यरुशलम हो।


इज़राइली मंत्री यारिव लेविन का बयान

इज़राइल के न्याय मंत्री यारिव लेविन ने कहा:

“अब समय आ गया है कि इज़राइल वेस्ट बैंक पर पूरी संप्रभुता लागू करे।”

यह बयान ऐसे समय आया है जब वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों का विस्तार हो रहा है और संघर्ष की स्थिति बनी हुई है।

रायटर्स के अनुसार, इस बयान को फिलिस्तीनी भूमि पर पूरी तरह कब्जे की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जो शांति की किसी भी कोशिश को खत्म कर सकता है।


अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका

  • संयुक्त राष्ट्र,
  • यूरोपीय संघ,
  • अमेरिका,
  • और अंतरराष्ट्रीय अदालतें — सभी मानते हैं कि यह क्षेत्र फिलिस्तीन का है।

रायटर्स के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह भी मानता है कि:

  • इस विवाद का समाधान “दो-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution)” के ज़रिये होना चाहिए।
  • जिसमें इज़राइल और फिलिस्तीन दोनों को अपने-अपने सीमित क्षेत्र और अधिकार मिलें।
  • लेकिन इज़राइल की लगातार बस्तियाँ बसाने की नीति इस समाधान को असंभव बना रही है।

यरुशलम का सवाल

यरुशलम एक धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील शहर है।

  • यहूदियों, मुसलमानों और ईसाइयों तीनों के लिए पवित्र है।
  • यरुशलम फिलिस्तीन की राजधानी है।
  • लेकिन इज़राइल इसे अपनी एकीकृत राजधानी बनाना चाहता है।

इसलिए, जब भी इज़राइल वेस्ट बैंक या यरुशलम पर अधिकार की बात करता है, अरब और मुस्लिम देशों की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आती है।


सऊदी अरब और इज़राइल के बीच संबंधों की स्थिति

हाल के वर्षों में, कुछ अरब देशों — जैसे संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के तहत इज़राइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं।

हालांकि, सऊदी अरब ने अब तक इज़राइल को औपचारिक मान्यता नहीं दी है।
सऊदी सरकार बार-बार कह चुकी है कि:

“जब तक फिलिस्तीन को उसका अधिकार नहीं मिलता और 1967 की सीमाओं में वापस नहीं लौटा जाता, तब तक हम इज़राइल को मान्यता नहीं देंगे।”

Arab News और रायटर्स के अनुसार, सऊदी अरब पर अमेरिका का भारी दबाव रहा है, लेकिन उसने अब तक अपने स्टैंड से कदम पीछे नहीं हटाया।


फिलिस्तीन की मौजूदा स्थिति

  • गाज़ा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी जनता लगातार मानवीय संकट झेल रही है।
  • बिजली, पानी, दवाइयों और रोजगार की भारी कमी है।
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि फिलिस्तीन के बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।

सऊदी अरब सहित कई खाड़ी देश फिलिस्तीन को आर्थिक मदद भेजते हैं, लेकिन राजनैतिक समाधान न होने की वजह से स्थिति सुधर नहीं रही।


निष्कर्ष

सऊदी अरब ने यह बयान देकर इज़राइल और दुनिया को एक कड़ा संदेश दिया है।
इस समय जब इज़राइल वेस्ट बैंक पर कब्जा मजबूत करने की कोशिश में है, सऊदी अरब फिलिस्तीन के साथ खड़ा है।

रायटर्स के अनुसार, यह बयान न सिर्फ फिलिस्तीन के हक़ में है, बल्कि यह भी साबित करता है कि सऊदी अरब फिलिस्तीन को लेकर अपने पुराने स्टैंड से पीछे नहीं हटा है।

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