विशेष – दिल्ली हिंसा में रागिनी तिवारी की भूमिका पर खामोशी क्यों ?

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23 फरवरी 2020 को जब कोरोना महामारी विश्व के कई देशों को अपनी चपेट में ले चुकी थी और भारत में भी केस रजिस्टर होने लगे थे, राजधानी दिल्ली में नागरिकता कानून के खिलाफ़ चल रहे प्रदर्शन दंगो का रूप ले रहे थे, इसी बीच शाम के लगभग 4:00-4:30 के करीब मौजपुर (जहां से दंगे शुरू हुए थे) से एक महिला ऊँची आवाज़ में चीखते हुए, प्रदर्शनकारियों को गालियाँ देते हुए और सनातनियों से जाग जाने की गुहार लगाते हुए फेसबुक लाइव करती है और यह लाइव वीडियो इंटरनेट पर तेजी से दौड़ने लगता है।  जी हां! यहां बात हो रही है, खुद को हिन्दू धर्म का ठेकेदार बताने वाली रागिनी तिवारी उर्फ जानकी बहन की।

कौन है रागिनी तिवारी?

हिन्दू धर्म को बचाने निकली यह महिला एक साधारण गृहणी जान पड़ती है, मूलतः बिहार की रहने वाली है, पति एक निजी कंपनी में काम करते हैं, दो बच्चे हैं जिसमें एक लड़का व एक लड़की हैं। (फेसबुक से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जिसे अब हटा दिया गया है)

पूछने पर कहती है कि किसी राजनैतिक दल से कोई लेना देना नहीं लेकिन भारतीय जनता पार्टी  के कई नेताओं के साथ फोटोज़ गूगल पर उपलब्ध हैं, हिंदूवादी संगठनों के साथ भी जुड़ी हुई है और साम्प्रदायिकता फैलाने का कोई मौका छोड़ते नहीं मालूम पड़ती।

क्या है मामला?

दरअसल दिल्ली में 23-24 फरवरी के दरमियान CAA/NRC को लेकर जब दंगे भड़के, रागिनी तिवारी उर्फ़ जानकी बहन, घटना स्थल से फेसबुक लाइव कर रही थी, जिसमें वो गुस्से में प्रचंड आवाज़ में कुछ इस तरह के नारे लगाती नज़र आ रही है:

“दिल्ली पुलिस लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, मोटे मोटे लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, लंबे लंबे लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, जरूरत पड़ी तो हमें बुलाओ, हम तुम्हारे साथ हैं।”

नारे लगाते हुए रागिनी तिवारी और उसे समर्थन देने आए लोग सड़क पर बैठ गए। जिसके बाद पुलिस के हटाने पर इन्होंने हटने से मना कर दिया और कहा,” जेल ले जाइए, जेल से फिर यहीं आएंगे। बहुत हो गया, शाहीन बाग में दिक्कत नहीं होगी, यहां दिक्कत होगी।” इसके बाद फिर से हंगामा, लगातार नारेबाजी होने लगी,

” मोदी जी तुम लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, मोटे मोटे लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, लंबे लंबे लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, जरूरत पड़ी तो हमें बुलाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, ” फिर भीड़ ने जय श्रीराम और वंदे मातरम के नारे लगाने शुरू कर दिए।

रागिनी तिवारी की शिकायत शायद प्रदर्शनकारियों से लेकर पुलिस और उन सभी लोगों से थी जो हाथापाई नहीं करना चाहते थे, कम से कम वायरल हुए वीडियोज़ से तो यही समझ आ रहा है, जिसमें रागिनी ने प्रदर्शनकारियों को तो गालियाँ दी ही, साथ ही पुलिस को भी बाक़ायदा चूड़ी देकर पहनने के लिए कहते हुए नज़र आई। आम भाषा में इसे उकसाना कहते हैं, इतना ही नहीं, अपने लाइव वीडियो के दौरान रागिनी तिवारी बार-बार सनातनियों को जगाने, उनमें जोश भरने और मुसलमानों को कुचल देने की बात भी कही।

भीम आर्मी के एक युवक को उसके सहयोगियों द्वारा पीटे जाने पर उसने यह भी कहा कि दलित मेरा भाई है, हाँलाकि भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर को उसने गाली दी साथ ही मुस्लिमों को तो वह सीधे तौर पर काटने का आह्वान करती रही, जिसे कई न्यूज़ चैनल्स ने कवर भी किया और चश्मदीदों ने भी बताया। हालाँकि ये पहली बार नहीं है जब रागिनी तिवारी के स्वर हिंदूवाद के प्रति मुखर हुए हैं, फेसबुक लाइव के माध्यम से वो लगातार इस तरह की नफ़रत फैलाती रही है और यूट्यूब पर भी चैनलों से बातचीत के दौरान हिन्दुराष्ट्र की उसकी चाहत और मांग के वीडियोज़ उपलब्ध हैं। रागिनी की मुसलमानों के प्रति नफ़रत उसके बयानों में साफ़ देखी जा सकती है, जब वो यह कहती है कि गाँधी के युग का अंत हो चुका है और अब अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः पर ही हम जिएंगे, जिसका मतलब वह बताती है कि धर्म की रक्षा के लिए हिंसा जायज़ है।

रागिनी तिवारी के व्यक्तित्व के बारे में हम अगर बात करें तो हम पाएंगे कि ये उनमें से है जिसे हिंदुत्व के नाम की पट्टी आँखों पर पहना दी गयी है, जिसे विश्वास है कि भारत जल्द ही एक हिन्दू राष्ट्र बन जायेगा और व्हाट्सएप्प की खबरों को इसने रट्टा मार लिया है। सीधे तौर पर कहें तो रागिनी तिवारी उन्मादी प्रवत्ति की महिला है, जो मानसिक दिवालियापन का शिकार है और उसके लिए किसी की जान लेने से भी गुरेज़ नहीं करती। यहां पर जो सबसे बड़ा प्रश्न है वो यह है कि रागिनी तिवारी को इतनी हिम्मत मिल कहाँ से रही है कि वो फेसबुक लाइव के जरिये कुछ भी कह देती है, पूरी मुस्लिम कौम को गाली के साथ ही धमकी देती है, वो भी बिना किसी डर के?

बहरहाल, अब बात करते हैं इस पूरे मामले में पुलिसिया कार्यवाही की तो पुलिस की भूमिका पर यहां सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह है। जिस रागिनी तिवारी ने बार-बार फेसबुक लाइव के जरिये नफरत फैलाई, जिसके पूरे सोशल मीडिया पर नफ़रत का कंटेंट भरा पड़ा है, जिसने घटनास्थल पर जाकर लाईव किया और लोगों को उकसाने वाले नारे लगाए, पुलिस से भिड़ी, रास्ता जाम किया, उस रागिनी तिवारी की गिरफ्तारी तो दूर दिल्ली पुलिस की चार्जशीट पर उसका नाम तक नहीं है, जबकि दंगो के वक़्त और उसके बाद भी मीडिया लगातार रागिनी की खबरें दिखाता रहा है।

क्विंट हिंदी वेब समाचार पत्र ने तो चश्मदीद से मुलाकात कर उसका बयान व पूरी जानकारी तक अपलोड की, जिसमें यह भी बताया गया है कि रागिनी तिवारी व उसके सहयोगियों ने घटनास्थल पर हवाई फायरिंग भी की। लेकिन पुलिस हर चीज़ को, हर खबर को, हर सबूत को अनदेखा क्यों कर रही है यह समझ से परे है, जबकि दिल्ली दंगों के बाद से लगातार UAPA कानून के तहत लोगों की गिरफ्तारी जारी है और एक्टिविस्ट और पत्रकारों तक को गिरफ्तार किया गया है। आख़िर ये बिना किसी राजनीतिक समर्थन के कैसे संभव है कि इतने सबूत होने के बावजूद रागिनी तिवारी बेखौफ़ घूम रही है। यहां पर यह प्रश्न उठना भी जायज़ है कि क्या UAPA कानून सिर्फ़ पत्रकारों व एक्टिविस्ट जैसे लोगों के लिए बनाया गया है?

राजनीतिक परिदृश्य

रागिनी तिवारी पर दिल्ली दंगों को लेकर अब तक कोई कार्यवाही न होना इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि इस मामले में राजनीतिक दख़ल बहुत ज़्यादा है। यदि हम पूरे दिल्ली दंगों की बात करें तो जिस तरह का माहौल मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये बनाया गया है, उसमें हो ये रहा है कि सरकार के समर्थक भी मुस्लिम एक्टिविस्ट्स का नाम ले रहे हैं और एक्टिविस्ट्स के समर्थक भी उनके लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, जो जायज़ भी है, लेकिन जो महत्वपूर्ण बात यह छूट रही हैं, वो यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में रागिनी तिवारी जैसे उन्मादी लोगों पर कहीं कोई बात हो ही नहीं रही है, इनकी भूमिका पर कोई सवाल उठ ही नहीं पा रहा है और ये लोग बिना किसी डर के आराम से घूम रहे हैं और जहां भी हैं पूरी ताकत से साम्प्रदायिकता और धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं। और यह बिना किसी राजनीतिक सपोर्ट के मेरी समझ में संभव नहीं है और इस मामले की निष्पक्ष रूप से कड़ी जाँच होनी चाहिए, कि जब रागिनी तिवारी के खिलाफ़ इतने मजबूत और स्पष्ट सबूत हैं तो वह अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर क्यों है और दिल्ली दंगों की चार्जशीट पर उसका नाम क्यों नहीं है?

रागिनी तिवारी जैसे लोग इस समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुके हैं, वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखते हुए ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि हमारा समाज बुरी तरह से हिन्दू मुस्लिम में बंट चुका है, देश से बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसे मुद्दों को ग़ायब कर दिया गया है और हम हर चीज़ को, हर परिस्थिति को, हर स्थिति को केवल हिन्दू-मुस्लिम के चश्में से देखने लगे हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना के दौरान जमातियों पर प्रश्न उठने के बाद मुस्लिमों के साथ किया गया सुलूक है।

कोई एक ख़बर मीडिया पर गलत चल गई, जिसका खंडन बाद में कोर्ट ने किया लेकिन इस बीच के वक़्त में रागिनी तिवारी जैसे उन्मादियों के चलते सोशल मीडिया पर लगातार यह भ्रम फैलता रहा और स्थिति यहां तक पहुँच गयी कि फल और सब्जी के ठेलों पर भी हिन्दू झंडे नज़र आने लगे, जो हिन्दू नहीं थे उनके साथ मार-पीट की गई उनकी रोज़ी रोटी पर लात मारी गयी। इस महामारी काल में जब पूरी दुनिया एकजुट होकर कोरोना वायरस के खिलाफ़ लड़ रही थी, भारत में धर्म का वायरस तेजी से फैला, जिसकी दवा इस देश में सदियों से ढूंढी जा रही है, लेकिन राजनीति के चलते यह धर्म नाम का वायरस दिन दूना, रात चौगुना बढ़ रहा है और उसका सीधा कारण रागिनी तिवारी जैसे लोगों को संरक्षण मिलना है।

यकीन मानिए, ये वक़्त अपनी कौम के या अपनी जाति के साथ खड़े होने का नहीं, सही के साथ और ग़लत के खिलाफ़ खड़े होने का है। वर्तमान सत्त्ताधारियों ने केवल और केवल अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए धर्म और जाति की ओछी राजनीति का सहारा लिया है जो देश को दीमक की तरह खा रहा है। मैंने अपने पूरे जीवन में राजनीति का इतना गिरा हुआ स्तर नहीं देखा, गुंडा प्रवत्ति के लोगों को, जान से मारने की धमकी देने वालों को ऐसा संरक्षण मिलते हुए नहीं देखा और पत्रकारों व सरकार की नीतियों से सहमत न होकर विरोध प्रदर्शन करने वालों के साथ इतना बुरा सलूक होते देखा।

रागिनी तिवारी उन्मादी है इसमें कोई शक नहीं है और उसे संरक्षण मिल रहा है ये बात भी छिपी नहीं है, स्त्री होकर भी जिसके अंदर करुणा की भावना नहीं है और जो दिन-रात धार्मिक उन्माद फैलाने का काम कर रही है, जिसके खिलाफ़ गूगल से लेकर यू-ट्यूब तक तमाम सबूत मौजूद हैं। इसके बाद भी रागिनी तिवारी जेल की सलाखों के पीछे क्यों नहीं है? क्या उसे धर्म विशेष से संबंधित होने का लाभ मिल रहा है? क्या राजनीतिक पकड़ मजबूत होने के चलते लोग उसके बारे में कुछ भी कहने से डर रहे हैं? आख़िर क्या वजह है कि जहां उमर खालिद का नाम मीडिया के गलियारों में गूंज रहा है, वहीं रागिनी तिवारी के नाम पर गहरा सन्नाटा है। ये मुर्दा चुप्पी आख़िर कब तक और क्यों? क्या ग़लत के खिलाफ़ बोलने की हमारी हिम्मत ख़त्म हो चुकी है? क्या हम धर्म और जाति को लेकर इतने अंधे हो चुके हैं कि गुंडे बदमाशों का साथ देने से भी परहेज़ नहीं कर रहे? सनद रहे, जिन्हें मारना सिखाया जाता है, वो किसी टारगेट को मारकर रुकेगा नहीं वो सबको मारेगा और सबको मारते-मारते अंत में उसे भी मार देगा जिसने उसे मारना सिखाया।

 

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