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किसानों के लिए क्यों जरूरी है MSP का कानूनी अधिकार

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Shivam Baghel

विवादित तीन कृषि बिल जो अब कानून बन गए हैं, इस मुद्दे पर सरकार बैकफुट में नजर आ रही है। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी जी को बार बार यह बोलना पड़ रहा है कि MSP यथावत बनी रहेगी। लेकिन मोदी जी के इस MSP के  यथावत वाले ब्यान से किसान क्या समझें और इस ब्यान का पर कितना भरोसा करें? कुछ प्रश्न और उनके उत्तर से इस बात को समझने की कोशशि करते हैं। पहला प्रश्न है क्या देश भर की उगाई जाने वाली सभी प्रकार की फसलें अब MSP में खरीदी जाएंगी या कहीं भी MSP के दाम से ऊपर ही बिकेंगी तो इसका उत्तर नहीं है? दूसरा प्रश्न क्या खरीफ और रबी सीजन की जिन 23 फसलों के लिए MSP घोषित की जाती है अब उन सभी  23 फसलों को MSP का दाम मिलना सुनिश्चित हो गया है तो? इसका भी उत्तर नहीं है। तीसरा प्रश्न अब भी पहले की तरह सिर्फ 4-5 राज्यों में धान और गेहूँ की फसल की MSP के दाम के तहत खरीदी की जाती है सिर्फ उतने में यथावत MSP की व्यवस्था चलती रहेगी ? जी हाँ मोदी जी के MSP के यथावत से यही मतलब है। मोदी सरकार जो कांग्रेस की सरकार के समय से व्यवस्था चलती आई है PDS के लिए धान और गेहूँ की खरीदी की सिर्फ उसे जैसे के तेसे चलाने के लिए प्रतिबद्धता दिखा रही है। जबकि देखा जाए तो किसानों की पहले से और अभी के आंदोलन में भी स्पष्ट मांग है कि सभी फसलों के MSP का कानूनी अधिकार उसे मिले। कोई भी फसल हो चाहे वह मंडी में बिके, चाहे मंडी से बाहर बिके या सरकार खुद खरीदी व्यवस्था करवाये। लेकिन यह सुनिश्चित हो कि कोई भी फसल MSP से कम में ना बिके।

MSP का किसानों को कानूनी अधिकार क्यों मिलना चाहिए इससे पहले हमें यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि अभी CACP की अनुशंसा और सिफारिश के मुताबिक केंद्र सरकार रबी और खरीफ सीजन की कुल 23 फसलों की MSP निर्धारित करती है ये 23 फसलें सम्पूर्ण भारत के लगभग 75 से 80% फसल एरिया को कवर करती हैं। मतलब 20 से 25% एरिया में लगने वाली और भी विभन्न फसलों जैसे आलू, प्याज, लहसुन जैसी सब्जियां, फल, फूल और कई सारी मसाले दार फसलें हैं जिनका कोई MSP निर्धारित और घोषित नहीं होती है। लेकिन यह बिना MSP घोषित होने वाली फसलों के किसानों को भी अपनी उपज कम दाम में बेंचना पड़ता है। यहां पर मैं एक उदाहरण देना चाहूँगा। इसी साल 2020 जून के महीना में मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में किसानों की प्याज बिकने के लिए बाजार में आई थी तब किसानों को 5 रुपया से 8 रुपया प्रति किलो का भाव मिल रहा था। लेकिन हमने मालवा के प्याज उगाने वाले और हमारे किसान सत्याग्रह के अलग अलग जिला के युवा किसान साथियों से बात करके प्याज की खेती में लगने वाले सभी प्रकार के खर्चों को जोड़कर लागत निकालने का एक प्रयास किए। इसमें हमने पूरी लागत के साथ जमीन का किराया भी लागत में जोड़ा था। तो हमें पाया कि किसानों को एक किलो प्याज उगाने की लागत 8 रुपया प्रति किलो आई थी और इस हिसाब से प्याज का डेढ़ गुना दाम यानी MSP 12 रुपया प्रति किलो हमने खुद निर्धारित किये और इस भाव में किसानों की प्याज बिके इसके लिए ऑनलाइन किसान सत्याग्रह प्लेटफार्म पर पूरी मुहिम भी चलाये थे। हमारी आवाज सुनी नहीं गई और कम दाम मिलने से होने वाले किसान के घाटे के लिए हम कोई कोर्ट भही नहीं जा पाए क्योंकि कारण साफ है आजाद देश में किसानों के लिए MSP का कोई वैधानिक कानून ही नहीं है। इसलिए प्याज के अलावा बाकी सभी तमाम फसलों का भी MSP निर्धारित करके उसका दाम किसान को दिलवाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

किसानों के लिए MSP का वैधानिक कानून क्यों बने इस बात को एक और उदाहरण से हम समझते हैं, इस साल मक्का का घोषित MSP 1850 रुपया प्रति कुंटल है।

अभी मक्का का वर्तमान भाव देखेंगे तो 700 रूपया से 1000 रुपया प्रति कुंटल है आने वाले कुछ दिनों में किसान की फसल बिकने के लिए बाजार में आने लगेगी तब भी भाव बढ़ने की उम्मीद नहीं है। जबकि इस साल का मक्का का MSP – 1850 रुपया निर्धारित है। लेकिन मक्का की MSP में खरीदी नहीं होती है। ऐसे में MSP खरीदी नहीं हुई या भरपाई नहीं हुई तो अक्टूबर में आने वाली मक्का में किसान को 900 से 1000 रुपया प्रति कुंटल का घाटा होना लगभग तय है। मतलब मोटे तौर में किसान को औसतन 15 हजार रुपया का घाटा एक एकड़ में हो सकता है। मैं भी एक किसान हूँ और मैंने इस बार 9 एकड़ जमीन में मक्का लगाया हूँ। यदि मक्का की खरीदी नहीं या मुझे MSP की भरपाई नहीं हुई तो इस हिसाब से मेरा घाटा 1 लाख 35 हजार रुपया का होता है।

  • मेरे गांव परासपानी में टोटल रकबा लगभग 1200 एकड़ का है। जिसमें इस साल करीब 1000 एकड़ में मक्का लगा हुआ है।
  • MSP ना मिलने से मेरे गांव का घाटा (15000×1000) यानी 1.50 करोड़ रुपया होने की संभावना है।
  • पूरे सिवनी जिला में खरीफ सीजन में लगभग 8 लाख एकड़ रकबा में खेती की जाती है। 2019 के राजस्व फसल गिरदावरी आंकड़े के अनुसार 4 लाख 35 हजार एकड़ में मक्का की खेती की गई थी इस साल भी लगभग 4 लाख एकड़ में मक्का बोया गया है।
  • MSP ना मिलने से एक एकड़ में 15 हजार का नुकशान होता है तो पूरे सिवनी जिला का नुकशान (400000×15000) = 600 करोड़ रुपया का हो जाएगा। यह 6 अरब रुपया का घाटा सिर्फ किसानों का बस नहीं है यह पूरे सिवनी का आर्थिक घाटा है। जो एक फसल में एक सीजन में एक ही जिला का घाटा है।

यह किसानों का तो प्रत्यक्ष घाटा है ही साथ ही यहां के समस्त व्यापारियों, यहां के समस्त कारीगरों, यहां के समस्त दुकानदारों और समस्त जनता का घाटा है। सिवनी जिला के किसानों के पास 600 करोड़ रुपया यदि और अधिक आते तो वो अपने लिए उसे पैसों को स्थानीय बाजार में ही लगाते, कपड़े, जूते, घर बनाने, सजावटी गहने, टीवी कूलर पंखे, गाड़ी खरीदने, फर्नीचर बनवाने इत्यादि विभिन्न रूप से खर्चा करते। इससे स्थानीय बाजार और अधिक गुलजार होता। सिवनी के बाजारों में तो कोई बड़ा उद्योगपति खरीदी करने तो कभी आता नहीं है ना कभी आएगा। इस प्रकार जिला की बाजार व्यवस्था पूरी तरह से कृषि और किसान की आमदनी पर ही आधारित है। 600 करोड़ रुपया से 50 हजार परिवारों को 10-10 हजार रुपया प्रति माह एक साल तक दिया जा सकता है।

सिवनी यहाँ उदाहरण है इसके जैसे देश भर प्रत्येक जिला के हर शहर, हर कस्बा, का बाजार किसानों और कृषि की आमदनी पर ही आधारित और निर्भर हैं। जो MSP में फसल न बिकने से और किसानों के घाटे में जाने से नुकसान उठा रहा है। गांवों से सस्ते मजदूर शहर पलायन कर रहे हैं, बेरोजगारों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। तो इतनी सारी समस्याओं की जड़ कम भाव में फसल बिकने के लिए किसान को MSP का कानूनी अधिकार  देना चाहिए।

आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (OECD-ICAIR) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2000 से 2017 के बीच किसानों को उत्पाद का सही मूल्य न मिल पाने के कारण 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। मतलब इन 17 वर्षों में औसतन 3 लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष देश के किसानों को MSP ना मिलने से घाटा हो रहा है। जबकि इन वर्षों में भी धान और गेहूँ की MSP में खरीदी हुई है। और इन वर्षों में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें केंद्र की पर सत्ता काबिज रही हैं।

वर्ष 2015 में भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पुनर्गठन का सुझाव देने के लिए बनी शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि MSP का लाभ सिर्फ 6 प्रतिशत किसानों को ही मिल पाता है जिसका सीधा मतलब है कि देश के 94 फीसदी किसान MSP के फायदे से दूर रहते हैं। सरकार के अनुसार देश में किसानों की संख्या 14.5 करोड़ है, इस लिहाज से 6 फीसदी किसान मतलब कुल संख्या 87 लाख हुई।

देश भर में इन्हीं 87 लाख किसानों को MSP का लाभ मिल रहा है और हमारे देश के प्रधानमंत्री जी इन्हीं 87 प्रतिशत किसानों को मिलने वाले MSP को यथावत मिलते रहने की ट्विटर में गारंटी दे रहे हैं। जबकि किसानों और किसान संगठनों की की मांग है कि देश भर के प्रत्येक फसल उगाने वाले सभी साढ़े चौदह करोड़ किसानों को उनकी  उगाई गई सभी फसलों के लिए MSP का लिखित कानूनी अधिकार मिलना चाहिए। किसानों को उनकी असली आजादी MSP का कानूनी अधिकार से ही मिलेगी।