कौन थी गंगू बाई, जिस पर भंसाली ने बनाई है फ़िल्म ?

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संजय लीला भंसाली जो अक्सर अपने बड़े फिल्मों के लिए जाने जाते है, उनकी एक और फिल्म काफी चर्चा में है। भंसाली के इस फिल्म का नाम है – गंगूबाई काठियावाड़ी। ये फिल्म 25 फरवरी को रिलीज़ होती है और बॉक्स ऑफिस पर छा जाती है। आलिया भट्ट, जो की फिल्म की मुख्य अभिनेत्री है वो गंगुबाई की जीवनी को बड़े पर्दे पर प्रदर्शित करने में सफल होती है, और कई बड़ी हस्ती उनकी प्रशंसा भी करते है। तो आज हम बात करेंगे इस मूवी की असली कहानी की, कौन थी गंगुबाई? गंगुबाई ने ऐसा क्या किया की उन पर डेढ़ घंटे की फिल्म बन गई?

कहानी शुरू होती है 1939 में, गुजरात के एक छोटे से गांव कट्ठियावाड के एक गरीब परिवार में जन्म होता है गंगुबाई हरजीवनदास का। परिवार काफी मुश्किल से पाल पोस कर इन्हे बड़ा करता है, मगर इनके ख्वाब काफी बड़े होते है। हेमा मालिनी के गानों पर थिरकना, आईने के सामने अभिनय करने में गंगू की काफी रुचि थी। मगर गंगुबाई प्रेम मे पड़ जाती है, और रमनीत नाम के लड़के से मात्र 16 साल की उमर में भाग कर शादी कर लेती है। 16, आज के लिए बाली उमर है मगर उस ज़माने में कई लड़कियों की शादी हो जाया करती थी, और कई तो 3–4 बच्चों की मां भी बन जाति थी। खैर, गंगू रमनीत के साथ अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने और फिल्मी दुनिया का सपना लिए बंबई आती है। लेकिन शायद गंगू की किस्मत में कुछ और हीं लिखा होता है।

रमनीत एक दिन गंगू से कहता है की वो एक अच्छे से घर की तलाश में जा रहा है और उसे उसकी मौसी के साथ रहने को कहता है। चोटी सी गंगू बंबई जैसे बड़े शहर में जाती तो कहा जाति, अकेले रहना भी ठीक नही, तो वो मौसी के साथ उनके घर जाने के लिए टैक्सी में बैठ जाती है। मगर मौसी उसे एक ऐसी जगह ले जाती है जहा कोई लड़की जाना नही चाहेगी।

कमाठीपुरा

कमाठीपुरा, बंबई के रेड लाइट जोन में आता है और ये इलाका आज भी जिस्म के व्यापार के लिए जाना जाता हैं।
गंगू को जबरदस्ती बंदी बना लिया जाता है, और वो शुरुआत में कुछ दिन रमनीत का इंतजार करती है लेकिन रमनीत ने तो असल में 500 रुपए के लालच में उसका मोल भाव कर दिया होता है।

वो वापस घर जा नही सकती थी, क्योंकि रमनीत के साथ उसने भाग कर शादी की थी, तो घर वाले उसे वापस अपनाते भी तो क्यों?

इन सब के बाद गंगू को समझ में आ गया की वो अब इस जंजाल से नही निकल सकती, अंततः वो अपने हालातों से समझौता कर लेती है। एक दिन शौकत नाम का एक लंबे कद का व्यक्ति अपनी जिस्मानी भूख मिटाने के लिए गंगू के पास आता है, और गंगू को बुरी तरह जख्मी कर देता है। ये बस एक बार तक सीमित नहीं रहता, बल्कि हर हफ्ते गंगू शौकत के चंगुल में आजाती है और एक बार तो शौकत उसके जिस्म को इतने ज़ख्म देता है की गंगू अस्पताल तक पहुंच जाती है।

लेकिन अस्पताल से निकलने के बाद वो ये ठान लेती है की अब ऐसा दुबारा नहीं होगा। पता लगाने पर मालूम होता है की शौकत करीम लाला नाम के एक डॉन का आदमी है। गंगू अगले हीं दिन करीम लाला के यहां पहुंचती है और करीम उसे छत पर बिठा देता है। करीम अपने नौकरों से गंगू के लिए खाना भी भिजवाता है मगर गंगू उसे मना कर देती है। करीम के कारण पूछने पर गंगू बताती है की वो एक वैश्या है और इसीलिए उसे घर के अंदर नही बल्कि घर के छत पर जगह दी गई है, वो इस का कारण बखूबी जानती है इसलिए वो करीम के घर का खाना खा कर उसके बर्तन अशुद्ध नही करना चाहती। ये कारण सुन कर करीम समझ जाता है की गंगू कोई आम लड़की नही है, वो उसके आने का कारण पूछता है जिस पर गंगू शौकत की शिकायत कर बैठती हैं। पूरी बात सुनने के बाद लाला हिदायत देता है की अगर शौकत दुबारा आए तो बस उसे खबर देदे। कुछ दिनों बाद शौकत वापस आता है तो वहा करीम भी पहुंच जाता है और शौकत को प्रताड़ित करके सजा देता है साथ हीं वो कमाठीपुरा में ऐलान कर देता है की गंगू उसकी राखी बहन है, और गंगू से जिसने भी बदसलूकी की वो करीम का दुश्मन।

इसके बाद गंगू की नई कहानी शुरू हो जाती है और गंगू एक  समाज सेविका के रूप में उभरती है। बंबई की वैश्याओं के लिए सामाजिक काम शुरू कर देती है, अनाथ बच्चों को शरण देना, कमाठीपुरा की लड़कियों को पढ़ाने लिखाने का कार्यभार गंगू अपने ज़िम्मे लेती है। यहां तक की वो कमाठीपुरा की वैश्याओं के हक़ के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से भी भिड़ गई। कुछ इन सामाजिक कारणों की वजह से गंगू 2008 में गुज़र जाने के बाद भी आज तक कमाठीपुरा में याद की जाती है, और उसकी तस्वीर हर एक सेक्स वर्कर के घर में टंगी होती है।