पेट्रोल (petrol) और डीज़ल (diesel) के लगातार बढ़ते दाम अब चिंता का विषय बन चुके हैं। भारत के अधिकतर राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 100 का आंकड़ा पार कर गयीं हैं। खाने का तेल हो या डीज़ल-पेट्रोल, सब्ज़ियां या फ़ल सबकी कीमतों में इज़ाफ़ा हो रहा है। इस बढ़ती महंगाई में जनता बेहाल है और रोज़ाना इस जद्दोजहद में लगी है कि क्या खाए और क्या बचाए।
अक्टूबर महीने के अंतिम शनिवार (30 October 2021) को राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 108.99 रुपए प्रति लीटर देखी गयी। वहीं अन्य महानगरों में जिनमे मुंबई में 114.18 रुपए , कोलकाता में 110 रुपए और चेन्नई में 105.74 रुपए प्रति लीटर पेट्रोल खरीदा गया।
Price of petrol & diesel in #Delhi at Rs 108.99 per litre (up by Rs 0.35)& Rs 97.72 per litre (up by Rs 0.35) respectively today
— ANI (@ANI) October 30, 2021
Petrol&diesel prices per litre-Rs 114.81 & Rs 105.86 in #Mumbai, Rs 109.46 & Rs 100.84 in #Kolkata; Rs 105.74& Rs 101.92 in #Chennai respectively pic.twitter.com/QBUZLVvVTG
एक हफ्ते पहले दिल्ली में यही कीमत 105 रुपए प्रति लीटर थी। सबसे अधिक जनसंख्या वाले यूपी की बात करे तो बीते 10 दिनों में यूपी ने 103 रुपए से 105 रुपए प्रति लीटर पेट्रोल का सफर किया है। 20 अक्टूबर को यूपी में पेट्रोल की कीमत 103.14 रुपए थी जो 23 अक्टूबर को 104.16 हो गयी। वहीं शुक्रवार (29 October) को ये कीमत बढ़कर 105.52 हो गयी।
क्यों बढ़ रही हैं पेट्रोल- डीज़ल की कीमतें :
मीडिया जानकारी के मुताबिक पेट्रोल और डीजल की कीमतें लगातार बढ़ने का सिलसिला मार्च 2020 से शुरू हुआ। ये वही समय था जब भारत में कोरोना (corona) के मामले मिलने शुरू हुए। विशेषग्यों और अर्थशास्त्रियों ने पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों का कारण कोरोना और लॉक डाउन को माना है। विशेषग्यों के मुताबिक लॉक डाउन में सब बन्द होने के कारण वाहनों का आवागमन भी प्रभावित हुआ। जिससे पेट्रोल और डीज़ल की मांग पर असर पड़ा।
पेट्रोल और डीज़ल केंद्र सरकार और राज्य सरकार के लिए टैक्स कलेक्शन का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। पेट्रोल की मांग घटने पर दोनों सरकारों के राजस्व पर इनका असर पड़ा। जिसके बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकरों द्वारा पेट्रोल और डील पर लगाए जाने वाले टैक्स में वृद्धि हुई। मालूम हो कि भारत में केंद्र सरकार पेट्रोलियम पर एक्साइज ड्यूटी (टैक्स) लगाती है वहीं हर राज्य सरकार अपने-अपने राज्य में अपने अनुसार पेट्रोलियम पर वैट (टैक्स) लगाती है।
कब और कितनी बड़ी पेट्रोल और डीज़ल कि कीमतें :
मार्च 2020 से पेट्रोलियम की कीमतों में लगातार इजाफा हुआ है। हालांकि, इस साल अगस्त के महीने में ये कीमतें कुछ हद तक स्थिर रही या थोड़ी बहुत गिरावट देखने को मिली। bbc की मार्च 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 14 मार्च को पेट्रोल और डीज़ल कि कीमत में 3 रुपए की बढ़त देखी गयी। ऐसे ही 6 मई को दोनों की कीमत 10 रुपए प्रति लीटर बढ़ गयी। 7 और 8 जून को दोनों की कीमत में 60 पैसे बढ़ गए। इसके बाद जून महीने में ही दोनों की कीमतों में कभी 40 पैसे की तो कभी 57 पैसे की बढ़ोतरी देखी गयी।
आंकड़ो से समझा जाए तो :
1 मार्च 2020 को दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में पेट्रोल की कीमतें 71.71, 77.40, 74.51, 74.38 थी। जनवरी 2021 तक ये कीमतें 83.71, 90.43 , 86.51 और 85.19 हो गयी थी।
अगस्त महीने में थोड़ी गिरावट के बाद सितंबर महीने के अंतिम हफ्ते से कीमतों में फिर से उछाल देखा गया। अकेले दिल्ली की बात की जाए तो एक साल पहले पेट्रोल की कीमत 81.12 थी। यही कीमत 6 महीने पहले 90.6, 3 महीने पहले 98.87, एक महीने पहले 101.55 और वर्तमान में 108.99 रुपए प्रति लीटर है।
भारत मे पेट्रोलियम की कीमतें कैसे डिसाइड होती है :
भारत पेट्रोलियम आयात करने वाला देश है। आबादी के कारण पेट्रोल और डिज़ल कि मांग भी खासी है। ऐसे में भारत सरकार खड़ी देशों से कच्चा तेल खरीदती है। फिर उसे देश की बड़ी बड़ी रिफायनरी में भेजा जाता है। यहाँ रिफायनरी में कच्चे तेल से पेट्रोल , डिज़ल और अन्य पेट्रोलियम निकाले जाते हैं। फिर पेट्रोल और डिज़ल को पेट्रोल पंप पर भेजा जाता है जहां से ग्राहक पेट्रोल और डिज़ल खरीदते हैं।
कच्चे तेल से पेट्रोल निकलने वाली कंपनी सबसे पहले अपना कमीशन जोड़ती हैं। फिर पेट्रोल पंप का मालिक अपना कमीशन जोड़ता है। यहीं केंद्र सरकार अपनी एक्साइज ड्यूटी और राज्य सरकार अपना (वैल्यू ऐडेड टैक्स) वैट लगाती है। अंत मे ग्राहक ये सारा पैसा देकर पेट्रोल खरीदता है।
क्या होती है एक्साइज ड्यूटी और वैल्यू एडेड टैक्स :
कच्चे तेल से पेट्रोल बनने तक इसमें चार चरणों मे अलग अलग कीमतें जोड़ी जाती हैं। इस दौरन कच्चे तेल का दाम, रिफायनरी कंपनी की कॉस्ट, पंप मालिको का मार्जन और केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी के साथ साथ राज्य सरकार का वैट लगाया जाता है।
एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया टैक्स है, ये कंपनियां देश में बनी चीज़ों पर सरकार को देती हैं। वहीं वैट राज्य सरकार द्वारा लगाया गया टैक्स है
जो उत्पाद के अलग अलग चरण पर चुकाना होता है।
कच्चे तेल की कीमत कम होने पर भी, भारत मे पेट्रोल का दाम अधिक क्यों :
अंतराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत कम होने के बावजूद भी भारत में पेट्रोल की कीमत अधिक होने का एक कारण यही है कि यहाँ कच्चे तेल से पेट्रोल बनाकर ग्राहक के पास जाने तक इसमें चार बार अलग अलग लागत जोड़ी जाती है।
भारत बास्केट के अनुसार 29 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर थी। वहीं खाड़ी देशों से तेल लीटर में नहीं बल्कि बैरल में लिया जाता है। और एक बैरल कच्चे तेल का मतलब है 159 लीटर कच्चा तेल।
दूसरा कारण है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपने अनुसार (मनमाना) टैक्स लगाती है, क्योंकि दोनों स्तरों पर राजस्व का बड़ा स्रोत पेट्रोल और डिज़ल पर दिया जाने वाला टैक्स ही है। जानकारी के मुताबिक जब एक ग्राहक एक लीटर पेट्रोल खरीदता है तो उसकी कीमत का 50 प्रतिशत सिर्फ टैक्स देता है।
बीते एक साल में पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों पर बड़े बड़े मीडिया संस्थानों के चैनलों पर पैनल डिस्कशन कराई जा चुकी है। यहाँ एक ही बात सुनने में आई कि या तो केंद्र सरकार अपना टैक्स छोड़ दे या राज्य सरकार टैक्स कम लगाए। लेकिन नतीजा सामने है कीमतें लगातार बढ़ रही है और महंगाई का बोझ जनता के सर पर है।