जब पाकिस्तान ने भारत के सामने घुटने टेक दिए

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  • 1972 में आज ही के दिन भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
  • यह समझौता जुल्फिकार अली भुट्टो और श्रीमती इंदिरा गांधी के बीच हुआ था।

शिमला समझौता ( Shimla Samjhauta or Shimla Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद हुआ। इस युद्ध में पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के साथ भारतीय सेना के सामने अपना आत्मसमर्पण किया।

इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए पाकिस्तान के तात्कालिक राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ( Zulfiqar Ali Bhutto) अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो ( Benazeer Bhutto) के साथ भारत के शिमला में 28 जुलाई को ही पहुंच गए थे।

शिमला समझौते का वह वादा जो पाकिस्तान आज तक नहीं निभा पाया

वैसे तो शिमला समझौते में कई बातों पर हस्ताक्षर हुए। जिनमें पाकिस्तान के आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों को सुरक्षित वापस लौटना,कश्मीर की वह जमीन जो कि युद्ध से पहले पाकिस्तान के पास थी, उसे वापस करना और बांग्लादेश को अलग देश की मान्यता देना।

इसी के साथ पाकिस्तान ने समझौते में यह भी स्वीकार करा था कि कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान द्विपक्षीय वार्ता करेंगे और कभी भी अंतरराष्ट्रीय पटल पर इस मुद्दे को नहीं उठाएंगे। परंतु पाकिस्तान ने सैकड़ों बार बड़ी ही बेशर्मी से इस समझौते की धज्जियां उड़ाई हैं। अब इस समझौते का कोई मतलब नहीं रह गया है।

इस समझौते पर आज तक इंदिरा गांधी की आलोचना की जाती है

कई लोग इंदिरा गांधी की इस समझौते पर आलोचना करते हुए यह कहते हैं कि यह पाकिस्तान का समर्पण नहीं था बल्कि भारत का समर्पण था। क्योंकि भारत ने पाकिस्तान के सभी सैनिकों को वापस लौटा दिया और युद्ध में पाकिस्तान से जीती हुई जमीन को भी उसे वापस सौंप दिया था।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत पाकिस्तान पर दबाव बनाकर कश्मीर की जमीन को वापस ले सकता है। परंतु इंदिरा गांधी ने ऐसा नहीं किया।

जब भारत के लिए आधी दुनिया से लड़ गया सोवियत संघ रूस

3 दिसंबर को शुरू हुए इस युद्ध में भारत की तीनों सेनाओं ने एक साथ मिलकर युद्ध लड़ा। युद्ध की शुरुआत से ही भारत पाकिस्तान पर हावी रहा परंतु यह बात अमेरिका को रास नहीं आ रही थी। अमेरिका ने 9 दिसंबर को अपने युद्धपोत एंटरप्राइजेज को बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया।

इससे अमेरिका भारत पर दबाव बनाते हुए पाकिस्तान की मदद करना चाहता था। इस समय भारत विश्व में अकेला पड़ गया परंतु सोवियत संघ रूस ने भारत का साथ दिया और अपना जंगी बेड़ा अमेरिका के युद्धपोत के पीछे तब तक लगा दिया जब तक की अमेरिका का युद्ध पोत जनवरी के पहले हफ्ते में वापस नहीं चला गया ।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है की यदि सोवियत संघ भारत का साथ नहीं देता तो युद्ध के परिणाम कुछ और हो सकते थे।