28 साल के इस युवा ने वैज्ञानिक क्षेत्र में जो इबारत लिखी, उसका कर्जदार देश आज भी है

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भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई खगोलविद और भौतिकविद भी थे। इनका जन्म 12 अगस्त 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था। इंडस्ट्रियल खानदान में जन्में विक्रम साराभाई को किसी चीज़ की कमी नहीं थी। लेकिन, उनका दिल गरीब लोगों के लिए धड़कता था। बचपन से ही विक्रम साराभाई को विज्ञान और मशीनों में रुचि थी और विज्ञान के ही बलबूते वो गरीबो के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने ऐसा किया भी, आज देश मे स्थित सभी बड़े संस्थान जो विज्ञान से सम्बंध रखते है वो विक्रम साराभाई की ही देन है।

नेचुरल साइंस में किया था स्नातक

विक्रम साराभाई की शुरुआती पढ़ाई अहमदाबाद में हुई, जिसके बाद वो 1940 में इंग्लैंड चले गए। वहां की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नेचुरल साइंस में अपनी स्नातक पूरी कर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें भारत आना पड़ा, लेकिन कुछ ही समय के बाद 1945 में ही वापस इंग्लैंड जाकर उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई की और पीएचडी करके 1947 में “कॉस्मिक रे इन्वेस्टिगेशन इन ट्रॉपिकल लैटिट्यूडस” पर थीसिस लिखी।

देश में स्थापित किये विज्ञान से जुड़े प्रसिद्ध संस्थान

डॉ साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष संस्थान के पिता की संज्ञा तो दी ही जाती है,लेकिन भारत मे प्रसिद्ध संस्थानों की स्थापना का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। Isro.gov के अनुसार मेहज़ 28 वर्ष की उम्र में साराभाई ने 11 नवंबर 1947 को अहमदाबाद में पहली भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) की स्थापना की।

इसके अलावा अहमदाबाद में ही भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), सामुदायिक विज्ञान केंद्र,अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद ,कलपक्कम में फ़ास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (FBTR),कलकत्ता में परिवर्तनीय ऊर्जा साइक्लोट्रोन परियोजना और जदुगुड़ा बिहार में यूरेनियम कॉर्पोरेशन औफ इणिडया लिमिटेड (UCIL) की भी स्थापना की।

ISRO के पहले चैयरमेन रहे थे डॉ साराभाई

70 के दशक में जब रूस ने सफलतापूर्वक अपना स्पुतनिक लॉन्च किया तो साराभाई ने भी भारतीय सरकार को अंतरिक्ष कार्यक्रम का महत्त्व समझाते हुए भारत मे एक स्पेस एजेंसी बनाने को राजी कर लिया। 15 अगस्त 1969 वो दिन था जब डॉ विक्रम अंबालाल साराभाई ने भारत मे ISRO (indian space research organization) की स्थापना की। वो इसरो के पहले चेयरमैन भी रहे।

पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन किया था स्थापित

भारत मे पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाने की वकालत भी सबसे पहले साराभाई ने ही कि थी,उन्हें इस मामले में परमाणु विशेषज्ञ होमी जहांगीर भाभा का भी समर्थन मिला था। इसके बाद 21 नवंबर 1963 में अरब सागर के तट पर तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा में पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाया गया। हालांकि भारत का पहला उपग्रह “आर्यभट्ट” साराभाई की मृत्यु के बाद रूसी कॉस्मोड्रोम की सहायता से 1975 में कक्षा में स्थापित किया गया।

साराभाई को प्राप्त है ये उपलब्धि

डॉ साराभाई को 1966 में पद्म भूषण और मरणोपरांत 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। news18 की रिपोर्ट के मुताबिक 1974 में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में स्थित इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने चंद्रमा के क्रेटर को साराभाई का नाम देते हुए उन्हें सम्मानित किया। 2019 में इसरो ने चंद्रयान 2 के लैंडर का नाम भी विक्रम साराभाई के नाम पर “विक्रम लैंडर” रखा गया। इसके अलावा उनकी पहली पुण्यतिथि पर डाकविभाग ने उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था। साराभाई ने PRL में 1966 से 1971 तक काम किया था, वहीं परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी रहे थे।

मरने से पहले फ़ोन पर की थी बात

30 दिसंबर 1971 की रात साराभाई ने एसएलवी के डिज़ाइन की समीक्षा करने के लिए ए पी जे अब्दुल कलाम से फ़ोन पर बात की थी। ये बातचीत करीब एक घंटा चली। जिसके कुछ समय बाद ह्रदय गति रुकने से तिरुवनंतपुरम में उनकी मौत हो गयी। उनका अंतिम संस्कार अहमदाबाद में ही किया गया था।

महान व्यक्तित्व के साथ अच्छे पिता भी थे साराभाई

बीबीसी के हवाले से विक्रम साराभाई की बेटी मल्लिका साराभाई ने बताया कि उनके पिता एक अच्छे साइंटिस्ट तो थे ही साथ ही अच्छे पिता भी थे।कभी काम के लिए उन्होंने अपने परिवार को अनदेखा नहीं किया। 1942 में विक्रम साराभाई ने शास्त्रीय नृत्यंग्ना मृणालिनी से शादी की थी,जिससे उन्हें एक बेटा (कार्तिकेय) और एक बेटी (मल्लिका) हैं।